डॉ. डी सुब्बाराव
दुनिया का शायद ही कोई देश होगा जिसकी अर्थव्यवस्था वित्तीय बाजार की व्यापक पहुंच व विस्तार के बिना मजबूत और विकसित हुई हो। और, वित्तीय बाजार का ऐसा विस्तार तभी संभव है जब घर-परिवार व उसके सदस्य वित्तीय रूप से साक्षर हों और बचत से लेकर उधार लेने व निवेश करने के बारे में पूरी जानकारी के साथ सोच-समझकर फैसला कर सकें। यहां यह भी कहा जा सकता है कि अगर अमेरिका के लोग वित्तीय रूप से ज्यादा ‘साक्षर’ रहे होते तो शायद सब-प्राइम संकट से बचा जा सकता था।
इसके साथ ही यह पहलू भी अहम है कि अधिक वित्तीय साक्षरता संसाधनों के बेहतर आवंटन में मददगार होती है जिससे अर्थव्यवस्था के दीर्घकालिक विकास की संभावना मजबूत होती है। भारत ने वैश्विक वित्तीय संकट की बाधा आने से पहले 2004-08 के दरमियान औसतन लगभग 9 फीसदी की विकास दर हासिल की थी। इस विकास को संभव बनाने में अहम योगदान अर्थव्यवस्था में बढ़ी हुई बचत का रहा जो संकट शुरू होने के साल भर पहले 2007-08 में 36 फीसदी की ऊंचाई तक जा पहुंची थी।
बचत दर का यह बढ़ना खुद आबादी की संरचना में आए बदलाव और घरेलू बचत में बढ़त के रुझान का नतीजा है। फिर भी हमारी तकरीबन आधी आबादी बैंकिंग व दूसरी वित्तीय सेवाओं से महरूम है। अगर हम इसका निदान निकाल सकें, पीछे छूट गई आबादी को बैंकिंग सेवाओं के व्यापक दायरे में ला सकें तो हम घरेलू व कुल राष्ट्रीय बचत को और भी बढ़ा सकते हैं। इससे हम 10-12 फीसदी आर्थिक विकास की महत्वाकांक्षा को हासिल करने की जरूरी शर्त पूरी कर लेंगे।
इसे संभव बनाने के लिए हमें वित्तीय सेवाओं के दायरे को समाज के सभी हिस्सों और देश के सभी क्षेत्रों तक सार्थक रूप से पहुंचाना होगा। खासकर, हमें आर्थिक पिरामिड के सबसे निचले स्तर पर मौजूद लोगों तक पहुंचना होगा। वित्तीय जागरूकता और साक्षरता का अभाव वित्तीय उत्पादों की पहुंच की सीमा या उपलब्ध होने के बावजूद उनका इस्तेमाल न कर पाने की एक प्रमुख वजह है। एनसीएईआर और मैक्स न्यूयॉर्क लाइफ के सर्वेक्षण से पता चला है कि भारत में लगभग 60 फीसदी कामगार नकद रकम घर पर रखते हैं, वहीं भारी ब्याज दर सूदखोरों से धन उधार पर लेते हैं। यह आदत या स्वभाव का ढर्रा उनके वित्तीय सुरक्षा कवच को बेहद नाजुक बना देता है।
वित्तीय साक्षरता और जागरूकता इस तरह वित्तीय सुरक्षा के दायरे में सबको लाने की मंजिल का अभिन्न हिस्सा है। यह महज वित्तीय ज्ञान और जानकारियां देने तक सीमित नहीं है। इसका वास्ता आदत और स्वभाव को बदलने से भी है। अंतिम लक्ष्य है अवाम को इतना सक्षम बना देना कि वे अपने हित को पूरा करनेवाले फैसले कर सकें, उसके अनुकूल कदम उठा सकें। जब खरीदनेवाला तमाम उपलब्ध वित्तीय उत्पादों के बारे में जानेगा, हर उत्पाद की कमी-बेशी का आकलन कर पाएगा, जो चाहता है उसके लिए मोलतोल कर पाएगा, तब उसे लगेगा कि वह वाकई काबिल और सबल हो गया है। तब वे इतना जान जाएंगे कि जवाबदेही मांगेंगे, अपनी शिकायतों का निदान तलाशेंगे। हमने दूरदराज के इलाकों तक पहुंचने के अपने कार्यक्रमों से बड़ा सबक यह सीखा है कि वित्तीय साक्षरता महज सार्वजनिक हित के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे समाज के हित जरूरी है। वित्तीय साक्षरता के विस्तार से व्यक्तियों या घर-परिवार का ही नहीं, समूचे समाज का भला होगा।
रिजर्व बैंक में हम वित्तीय समावेश और वित्तीय साक्षरता को दो स्तंभ मानते हैं। वित्तीय साक्षरता से मांग का पक्ष सक्रिय होता है। लोगों को पता चलता है कि वे क्या मांग कर सकते हैं और क्या उन्हें करनी चाहिए। दूसरी तरफ वित्तीय समावेश आपूर्ति के पक्ष में काम करता है। यह लोगों की मांग के अनुरूप वित्तीय बाजार उपलब्ध कराता है। हम पारंपरिक तौर पर आपूर्ति से संबंधित तमाम उपायों के जरिए वित्तीय समावेश को हासिल करने पर ज्यादा ध्यान देते रहे हैं ताकि लोगों को बैंकिंग प्रणाली से जुड़ने में मदद मिले। लेकिन मांग से जुड़ा पहलू भी समझ में आया है कि वित्तीय सेवाओं की पहुंच बढ़ाने के साथ-साथ वित्तीय साक्षरता और शिक्षा को विकसित किया जाना चाहिए।
हम इस दिशा में तीन खास चीजें करने जा रहे हैं। एक, हर जिले के लीड बैंक से कहा गया है कि वह रोडमैप बनाए कि कैसे मार्च 2012 तक 2000 से ज्यादा आबादी वाले हर गांव तक बैंकिंग आउटलेट के जरिए वित्तीय सेवाओं की पहुंच सुनिश्चित की जाएगी। जरूरी नहीं है कि यह आउटलेट कोई बैंक शाखा ही हो। बैंकों को यह लक्ष्य हासिल करने के लिए टेक्नोलॉजी लानी पड़ेगी, कम लागत का बिजनेस मॉडल तलाशना होगा। दो, सभी घरेलू सार्वजिनक व निजी क्षेत्र के वाणिज्यिक बैंक इस बात पर रजामंद हो गए हैं कि वे मार्च 2010 के अंत तक अपने बोर्ड से अनुमोदित वित्तीय समावेशन योजना (एफआईपी) पेश करेंगे, जिसे अगले तीन सालो में लागू किया जाएगा। तीन, हमने सभी बैंकों से गुजारिश की है कि वे अपने फील्ड स्टाफ के कामकाज के आकलन के लिए वित्तीय साक्षरता और वित्तीय समाविष्टता को मानदंड बनाएं।
हम रिजर्व बैंक में वित्तीय साक्षरता को नीचे तक पहुंचाने को काफी अहमियत और प्राथमिकता देते हैं। हम जानते हैं कि यह एक कठिन चुनौती है, लेकिन यह विराट अवसर भी दे रही है। हमारे पास सभी उत्तर नहीं हैं। मुझे यह भी पक्का नहीं है कि हम सभी उत्तर निकाल भी पाएंगे या नहीं। लेकिन हम इन्हें तलाशने और सीखने को व्यग्र हैं। टेक्नोलॉजी में वित्तीय साक्षरता को बढ़ाने की सामर्थ्य है। इंटरनेट जैसे डिलीवरी चैनल और अध्ययन प्रक्रिया में इंस्ट्रक्शनल कंप्यूटर जैसे अभिन्न साधन, दोनों ही रूपों में। लोग जानकारियों को अलग-अलग तरीकों से लेते, जानते और जज्ब करते हैं। इसलिए संप्रेषण के हरसंभव माध्यम को आजमाना जरूरी है ताकि हम लोगों के ध्यान व दिलचस्पी को खींचने का सबसे अच्छा तरीका निकाल सकें।
ओईसीडी की वर्कशॉप में 22 मार्च को रिजर्व बैंक गवर्नर के उद्घाटन भाषण के प्रमुख अंश