प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में मंगलवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में कंपनी अधिनियम, 2013 में कुछ संशोधन करने के लिए कंपनी (संशोधन) विधेयक, 2014 को संसद में पेश करने को मंजूरी दे दी गई।
सरकार ने इसका मकसद देश में बिजनेस करने की प्रक्रिया को आसान बताना बताया है। मालूम हो कि विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक बिजनेस करने की आसानी के बारे में दुनिया के 189 देशों में भारत की रैंकिंग साल भर के भीतर दो पायदान और नीचे खिसककर 142वें नंबर पर आ गई है। मोदी सरकार का दावा है कि वो कुछ सालों में उठाकर इसे 50वें नंबर पर ले आएगी।
इस दिशा में उसने जो दो खास कदम उठाए हैं, उन पर गौर करने की जरूरत है। पहला यह कि अभी तक कंपनी के खातों का ऑडिट करनेवाले को किसी भी स्तर के फ्रॉड की सूचना कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय के सचिव को देनी अनिवार्य थी। अब संशोधन करके तय किया गया है कि एक निश्चित प्रतिशत या रकम से ज्यादा के ही फ्रॉड की सूचना सरकार को देनी होगी। अभी यह स्तर घोषित नहीं किया गया है। लेकिन इतना तो साफ है कि सरकार ने बिजनेस करने की आसानी के लिए कंपनियों को छोटे-मोटे फ्रॉड करने की ढील दे दी है।
दूसरा संशोधन का वास्ता नाते-रिश्तेदारों को लाभ पहुंचाने के मामले से जुड़ा है। अभी कंपनी अधिनियम की धारा 188 (1) में प्रावधान है कि संबंधित पक्षों के सौदों (Related Party Transactions या RPT) में विशेष तरह के लेनदेन को कंपनी के निदेशक बोर्ड से मंजूरी लेनी पड़ती है। इसमें कंपनी के संबंधित पक्ष के सदस्य को बोर्ड में आए प्रस्ताव पर वोट देने का अधिकार नहीं है। यह एक तरह की बंदिश थी कि प्रवर्तक अपने नाते-रिश्तेदारों या होल्डिंग कंपनियों व सब्सिडियरी इकाइयों को अन्य शेयरधारकों की कीमत पर नाजायज फायदा न पहुंचा सकें। मंगलवार को कैबिनेट में पारित संशोधन में इस प्रावधान को खत्म कर दिया गया है।
कोई भी बता सकता है कि बिजनेस करने की आसानी के लिए सबसे ज़रूरी शर्त है पारदर्शिता। लेकिन मोदी सरकार ने यह न करके छोटे-मोटे फ्रॉड को दरी के नीचे दबाने और कंपनियों को भाई-भतीजावाद करने की सुविधा दे दी है। सवाल उठता है कि क्या इससे देश में स्वस्थ बिजनेस का विकास हो पाएगा?
मालूम हो कि नए कंपनी अधिनियम 2013 को पिछले साल 20 अगस्त को अधिसूचित किया गया था। अधिनियम की कुल 470 धाराओं में से 283 धाराओं और उनसे संबंधित नियमों के 22 समूहों को अब तक लागू किया गया है।
कैबिनेट ने कंपनी अधिनियम में कुल 15 संशोधनों को मंजूरी दी है। इनमें से कुछ अन्य इस प्रकार हैं: न्यूनतम चुकता पूंजी की आवश्यकता को समाप्त करना, रजिस्ट्री में दायर बोर्ड प्रस्तावों के सार्वजनिक निरीक्षण को समाप्त करना, बिना दावे वाले और गैर चुकता लाभांशों के स्थानांतरण संबंधी नियमों को दुरूस्त करना, , धारा 185 के तहत निदेशकों को प्राप्त होनेवाले कर्ज को मुक्त करना, सालाना आधार पर लेनदेन संबंधी स्वीकृति देने के लिए लेखा समिति को शक्तिसंपन्न करना, धारा 447 के तहत घोटाले संबंधी अपराधों तक ही जमानत प्रतिबंधों को लागू करना।