कब कौन-सा शेयर क्यों बढ़ जाएगा, कोई ठीक से नहीं बता सकता है। हमारे पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम भी एक बार ऐसी बात कह चुके हैं कि हमारा शेयर बाजार क्यों बढ़ जाता है, गिर जाता है, पता नहीं। उन्होंने यह भी कहा था कि शेयरों के बढ़ने-गिरने के इस खेल में कोई बेचता है तभी तो कोई खरीदता है। एक का घाटा दूसरे का फायदा होता है। लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि दूसरे बाजारों की तरह शेयर बाजार में ‘ज़ीरो-सम गेम नहीं’ चलता। यहां एक या सबका नुकसान दूसरे या बाकी के फायदे के एकदम बराबर नहीं होता। यहां तो बेचनेवाला और खरीदनेवाला दोनों ही फायदा कमा सकते हैं, लेकिन अलग-अलग समय पर।
असल में हमें समझ लेना चाहिए कि शेयर बाजार न तो ‘ज़ीरो-सम’ है और न ही यह किसी तरह का ‘गेम’ है। कैसे? जानते हैं। साल-दर-साल कंपनी के मूल्य में वृद्धि उसके शेयरों के मूल्य में झलकती है। मान लीजिए, पांच साल पहले आपने किसी कंपनी का शेयर 20 रुपए में खरीदा था और तब कंपनी का प्रति शेयर शुद्ध लाभ (ईपीएस) 2 रुपए था। इसका मतलब आपने ईपीएस से दस गुनी कीमत में शेयर को खरीदा। अब मान लीजिए कि उसी कंपनी का ईपीएस 5 रुपए हो गया है तो आपको उस शेयर का दाम 50 रुपए मिलना चाहिए।
अगर आप इस वक्त उस शेयर को बेचते हैं कि आपको प्रति शेयर 30 रुपए का फायदा होगा। मैंने आपसे यह शेयर इतने भाव पर खरीदे तब भी मुझे घाटा नहीं होगा। मैं तो यही सोचकर खरीदूंगा कि अगले पांच साल में कंपनी का ईपीएस 10 रुपए और शेयर का भाव 100 रुपए हो जाएगा। उस वक्त मैं भी इसे बेचकर फायदा कमा लूंगा। यह सच है कि शेयर बाजार में भी हर खरीदार के लिए कोई न कोई विक्रेता तो रहता ही है। लेकिन यहां हम किसी जिंस नहीं, बल्कि कंपनी की साख व समृद्धि का सौदा कर रहे होते हैं जिसमें समय का मजबूत तत्व शामिल रहता है। हम शेयर बाजार में सौदे आज कर रहे होते हैं, लेकिन दिमाग में कंपनी की भावी संभावनाओं को आधार बनाकर। इसलिए यहां अलग-अलग वक्त पर क्रेता-विक्रेता दोनों ही मुनाफा कमा सकते हैं। हां, ऋण प्रपत्रों के बाजार में ‘ज़ीरो-सम गेम’ ही चलता है। यानी, एक का नफा दूसरे का नुकसान होता है।