सेंसेक्स 19,000 के ऊपर और निफ्टी 5800 के पार। यही नहीं, बी ग्रुप के शेयर जिस तरह बढ़े हैं, उसे बाजार में रिटेल निवेशकों की वापसी का संकेत माना जा रहा है। ब्रोकर गदगद हैं। औरों को झांसा देकर अपनी जेब भरनेवाले धंधेबाज अब सड़क चलते लोगों को भी यकीन दिलाने में लग गए कि यही सही वक्त है शेयरों में पूंजी लगाने का। लेकिन आंख पर पट्टी बांधकर निवेश करनेवाला शेयर बाजार में हमेशा गच्चा खाता है। बाजार बढ़ने पर भी उसे तगड़ी चपत लगती है। इंडियन बिजनेस स्कूल के एक ताजा अध्ययन से साफ हुआ है कि जनवरी 2005 से जून 2006 तक के 18 महीनों में सेंसेक्स 60.59 फीसदी बढ़कर 6602 से 10,609 अंक पर पहुंच गया था। लेकिन इसी दरमियान देश के 24.6 लाख रिटेल निवेशकों के 8376 करोड़ रुपए स्वाहा हो गए। इस तरह गणना करें तो इन 18 महीनों में 0.20 फीसदी भारतीयों ने शेयर बाजार में सकल घरेलू बचत का 0.77 फीसदी हिस्सा गंवा दिया।
यह होता है कि चुटकी बजाकर अमीर बनने की ललक का हश्र। शेयर बाजार से वे ही कमाते हैं जो समझदारी से निवेश करते हैं। बाकी लोग अपनी गाढ़ी कमाई दूसरों के हवाले करने का काम ही करते हैं। असल में एफआईआई और डीआईआई के अलावा अपने बाजार में एचएनआई (हाई नेटवर्थ इंडीविजुअल्स) भी बहुत सक्रिय हैं। फ्यूचर्स व ऑफ्शंस या डेरिवेटिव ट्रेडिंग में तो उनकी सक्रियता और दबदबा एफआईआई और डीआईआई से कहीं ज्यादा है। हर्षद मेहता और केतन पारेख टाइप लोगों की यह श्रेणी हमेशा रिटेल निवेशकों के लालच का फायदा उठाकर उन्हें कंगाल बनाने में लगी रहती है। अनिरुद्ध शेट्टी टाइप लोग भी इसी श्रेणी में आते हैं।
बाजार बढ़ रहा है। उम्मीद है कि अगले साल, 2013 में भारतीय अर्थव्यवस्था पटरी पर आ जाएगी। आर्थिक सुधारों का हाल में शुरू हुआ नया सिलसिला भी किसी अंजाम तक पहुंच जाएगा। इसलिए लगता है कि सेंसेक्स 25,000 पर पहुंच सकता है। कम से कम वह जनवरी 2008 के शीर्ष स्तर 21,200 को पार कर सकता है। लेकिन इस आशावाद में हम चुन-चुनकर बुद्धिमत्ता से निवेश करने की राह से भटक गए तो हर हाल में गच्चा खाएंगे। म्यूचुअल फंड, एफआईआई, बीमा कंपनियां, सरकार और एचएनआई जैसे महारथी मौज करेंगे, लेकिन रिटेल निवेशक/अभिमन्यु फिर मारा जाएगा।
इससे बचना है तो ज्ञान का सहारा लेना पड़ेगा। यकीन मानिए, हम ज़रा-सी सावधानी बरतें तो बाजार तक को मात कर सकते हैं। इसके लिए फाइनेंस में एमबीए करने की कतई जरूरत नहीं है। यह भी सच है कि बाजार को मात देने का कोई जादुई फॉर्मूला नहीं है। न अभी तक था और न ही आगे कभी होगा। कोई अगर ऐसे फॉर्मूले का दावा करता है तो वह ठग नहीं, महाठग है। बाजार के रिटर्न का मतलब ही औसत रिटर्न होता है। किसी से कमाया तो किसी ने गंवाया। औसत हुआ बाजार का रिटर्न। ऐसे में किसी के लिए इस औसत को मात करना बेहद कठिन है। इतना औसत भी हासिल कर लिया तो ब्रोकरेज व एसटीटी जैसे टैक्स घटाने के बाद आम निवेशक को घाटा ही होता है।
इस सूरत में अगर बाजार को लगातार मात करना है तो तीन चीजें जरूरी हैं। एक, खुद अपनी रिसर्च करके निवेश और ट्रेड के अच्छे अवसरों का पता लगाएं। भेड़चाल या ‘महाजनो येन गतो सः पंथा’ की नीति घातक होगी। किसी भी टिप या किसी के कहे के झांसे में कतई नहीं आना चाहिए। दो, हमेशा स्टॉप लॉस लगाकर चलना चाहिए। तमाम अच्छे ट्रेड के लाभ को एक गलत ट्रेड का घाटा धो-पोंछ सकता है। निवेश में रिस्क को संतुलित रखने की भारी अहमियत है। तीन, खुद को लगातार शिक्षित करते रहें। जितना ही हम समझ पाएंगे कि बाजार कैसे काम करता है, बाजार से हमारी उपलब्धि उतनी ही बढ़ती जाएगी। इसमें आपकी अपनी भाषा में मदद करने के लिए अर्थकाम हाजिर है। हम जल्दी ही ‘फाइनेंस की पाठशाला’ की सीरीज शुरू करने जा रहे हैं।
आखिर में निवेश की छोटी-सी सलाह। शेयरों में निवेश कीजिए तो यह पहलू भी देखिए कि कंपनी कितना लाभांश या डिविडेंड देती रही है। असल में किसी स्टॉक के मूल्यांकन का अहम पहलू होता है उसका कैश फ्लो और कैश फ्लो को दर्शाता है उसके द्वारा दिया जानेवाला लाभांश। लाभांश का एक हिस्सा कंपनी अपने शेयरधारकों में बांट देती है और एक हिस्सा वह अपनी भावी योजनाओं में निवेश करती है। लाभ का कितना हिस्सा कंपनी ने डिविडेंड दिया और कितना भावी योजनाओं पर निवेश किया, इसका सीधा असर उसके शेयरों के बाजार मूल्य पर पड़ता है। लेकिन यह असर कैसा होगा, यह उस उद्योग में रिटर्न के स्तर की तुलना से तय होता है। अगर कंपनी का रिटर्न उद्योग के औसत से ज्यादा है तो उसका शेयर बढ़ेगा। अन्यथा, भावी योजनाओं में निवेश के बावजूद शेयर धड़ाम से नीचे आ जाएगा। यह सब कैसे होता है, हम फाइनेंस की पाठशाला में तफ्सील से जानेंगे।
इस हफ्ते के निवेश के लिए हम क्लैरिएंट केमिकल्स (इंडिया) लिमिटेड की संस्तुति करते हैं। यह स्विटजरलैंड से संचालित होनेवाली बहुराष्ट्रीय कंपनी क्लैरिएंट की भारतीय इकाई है। इसका दस रुपए अंकित मूल्य का शेयर शुक्रवार, 28 नवंबर को बीएसई (कोड – 506390) में 625 रुपए और एनएसई (कोड – CLNINDIA) में 622.85 रुपए पर बंद हुआ है। यूं तो इसे बहुत सस्ता नहीं कहा जा सकता। लेकिन ज्यादा महंगा भी नहीं है। इसका 52 हफ्ते का न्यूनतम स्तर 556.15 रुपए (6 जनवरी 2012) और उच्चतम स्तर 683.70 रुपए (3 अप्रैल 2012) का रहा है। कंपनी की 26.66 करोड़ रुपए की इक्विटी में विदेशी प्रवर्तक क्लैरिएंट ग्रुप का हिस्सा 63.40 फीसदी है। यूटीआई म्यूचुअल फंड और एचडीएफसी म्यूचुअल फंड ने कुल मिलाकर इसके 5.61 फीसदी शेयर ले रखे हैं।
कंपनी रंग-रोगन, डाइज और स्पेशलियटी केमिकल बनाती है। यह समूह बड़ा ऐतिहासिक और पुराना है। कंपनी का प्रबंधन बड़ा ही चौकस है। इधर कंपनी का धंधा थोड़ा मंदा चल रहा है। पिछली पांच तिमाहियों में उसकी बिक्री के बढ़ने की औसत रफ्तार केवल 4.47 फीसदी रही है। लेकिन इसी दौरान उसका नेटवर्थ पर रिटर्न 62.68 फीसदी और निवेशित पूंजी पर रिटर्न 26.63 फीसदी है। इन आंकड़ों की सार्थकता और चमक इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि ये इसी उद्योग की दूसरी कंपनियों की बनिस्बत काफी ज्यादा है। कंपनी एक तरह से ऋण-मुक्त है। उसका ऋण-इक्विटी अनुपात मात्र 0.02 है।
इसलिए इस शेयर का बढ़ना लगभग तय है। लेकिन हम दूसरी वजह से इसमें निवेश करना सुरक्षित मानते हैं। वह यह कि कंपनी लगातार लाभांश देती रही है। उसका मौजूदा लाभांश यील्ड (शेयर के बाजार भाव पर दिए गए लाभांश का अनुपात) 9.62 फीसदी है। दूसरे शब्दों में अकेले लाभांश में ही कंपनी बैंक की एफडी को मात कर रही है। बाकी, निवेश करने के पहले खुद पूरी तहकीकात कर लें। इसे जितनी जल्दी अपनी आदत में शुमार कर लेंगे, उतना ही आप और देश के आर्थिक विकास के लिए बेहतर होगा।