इस समय सब-ब्रोकर भले ही किसी न किसी ब्रोकर के साथ जुड़ कर काम करते हैं। लेकिन उनका स्वतंत्र वजूद होता है। पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी के पास उन्हें पंजीकरण कराना पड़ता है। लेकिन अगर सेबी की विशेषज्ञ समिति की सिफारिश मान ली गई तो पूंजी बाजार के मध्यवर्ती के रूप में सब ब्रोकर के नाम को ही खत्म कर दिया जाएगा और वे ब्रोकरों के एजेंट या कर्मचारी बन कर रह जाएंगे।
सेबी ने पूंजी बाजार के विभिन्न मध्यवर्तियों के मानकों वगैरह की समीक्षा के लिए 18 विशेषज्ञों की एक समिति बनाई थी। इस समिति के चार उप-समूह बनाए गए। इसी में एक उप-समूह का कहना है, “सब-ब्रोकर इस समय कमोबेश ब्रोकर की शाखा की तरह काम करते हैं। उनके पास फंड या सिक्यूरिटी (प्रतिभूति) में सीधे सौदे करने का अधिकार नहीं होता। इसलिए सब-ब्रोकर को मध्यवर्ती के रूप में आगे नहीं चलाना चाहिए। उप-समूह की सिफारिश है कि सब-ब्रोकर को अलग अस्मिता के रूप में खत्म कर दिया जाए।”
जिस उप-समूह ने यह सिफारिश की है उसकी अध्यक्ष ब्रोकर फर्म असित सी मेहता की प्रबंध निदेशक दीना मेहता रही हैं और इसके पांच सदस्यों में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के प्रमुख रवि नारायण भी एक हैं। गौरतलब है कि सेबी के पास पंजीकृत सब-ब्रोकरों की संख्या मार्च 2009 के अंत तक 62,471 रही है, जबकि मार्च 2008 तक यह संख्या 43,874 थी। इस तरह साल भर में इसमें 42.38 फीसदी की वृद्धि हुई है। यह बढ़त वैश्विक मंदी के साल की है। फिर भी इतनी ही वृद्धि दर मानें तो आज की तारीख में देश में पंजीकृत सब-ब्रोकरों की संख्या 88,700 से ज्यादा चुकी होगी।
सेबी की विशेषज्ञ समिति के चौथी उप-समूह ने थोडा ज्यादा व्यावहारिक नजरिया अपनाया है। उसका कहना है कि सब-ब्रोकरों को तब तक पंजीकरण की जरूरत नहीं होनी चाहिए जब तक उन्हें अपने नाम से कांट्रैक्ट नोट जारी करने का अधिकार नहीं मिल जाता। अभी की हालत में सेबी को सब-ब्रोकरों को नियंत्रित करने का अधिकार ब्रोकरों को दे देना चाहिए। हालांकि उसका यह भी कहना है कि सब-ब्रोकरों के पंजीकरण की व्यवस्था तत्काल खत्म नहीं की जा सकती क्योंकि इसके लिए कानून बदलना पड़ेगा। बता दें कि अभी भले ही सब-ब्रोकर किसी न किसी बड़े ब्रोकर के साथ जुडकर काम करते हैं, लेकिन उनका एकदम स्वतंत्र वजूद और रजिस्ट्रेशन नंबर होता है। ब्रोकर का रजिस्ट्रेशन नंबर जहां आईएनबी से शुरू होता है, वही सब-ब्रोकर का नंबर आईएनएस से शुरू होता है।
सेबी की विशेषज्ञ समिति ने ब्रोकर, म्यूचुअल फंड, डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट, क्रेडिट एजेंसी, डिबेंचर ट्रस्टी व कस्टोडियन जैसे पूंजी बाजार के सभी मध्यवर्तियों के लिए नेटवर्थ और कामकाज के तमाम मानकों की सिफारिश की है। 1992 के बाद पहली बार इन्हें इतने बड़े पैमाने पर बदलने की बात की जा रही है। इसकी रिपोर्ट 53 पन्नों की है जिस पर आम लोगों से 14 जून तक प्रतिक्रिया मांगी गई है। इनके मिलने के बाद और इन पर विचार करने के बाद ही सेबी कोई अंतिम फैसला करेगी।