आप सभी को चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा यानी, नव संवत्सर के पहले दिन गुड़ी पडवा के साथ ही उगाड़ी, चेटीचंद, नवरेह और साजिबू चेइराओबा पर्व की बहुत-बहुत बधाइयां। वाकई, अपने देश की इतनी विविधता देख मन मगन हो जाता है। लेकिन आज का दिन थोड़े दुख का दिन भी है। आज भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहादत का दिन है। यूं तो शहीदों का बलिदान दिवस दुख मनाने का नहीं, बल्ले-बल्ले करने का होता है। लेकिन भगत सिंह के सपने अधूरे हैं। जिस बंधन-मुक्त भारत का ख्बाव उन्होंने देखा था, वह अभी पूरा नहीं हुआ है। इसका प्रमाण और क्या हो सकता है कि देश से अंग्रेज़ों के जाने के 64 सालों बाद भी फर्राटेदार अंग्रेज़ी ज्ञान-विज्ञान और धंधे से लेकर जीवन तक में फलने-फूलने की आवश्यक शर्त बनी हुई है। अगर इस विविधता भरे देश में हमारी अपनी-अपनी मातृभाषाएं ज्ञान, सृजन और विकास का माध्यम नहीं बन पाई हैं तो समझ लीजिए कि अंग्रेज़ों से हासिल सत्ता तंत्र में कोई तो ऐसा हठी प्रेत बैठा है जो पूरे राष्ट्र को पंगु बनाए रखना चाहता है। ध्यान रखें, राष्ट्र का मतलब अवाम होता है, सरकार या सत्ता प्रतिष्ठान नहीं।
खैर, शुरू करते हैं आज की चर्चा। मुथूत फाइनेंस का शेयर कल, 22 मार्च को 130.30 रुपए की नई तलहटी बनाने के बाद 9.89 फीसदी की गिरावट के साथ 146.65 रुपए पर बंद हुआ है। वहीं, मणप्पुरम फाइनेंस भी 36.70 रुपए पर नई तलहटी बनाने के बाद 18.54 फीसदी की गिरावट के साथ 36.90 रुपए पर बंद हुआ। कल सेंसेक्स के 2.30 फीसदी गिरने की जो भी वजह रही है, लेकिन सोने के बदले ऋण देनेवाली इन दोनों ही गैर-बैकिंग फाइनेंस कंपनियों (एनबीएफसी) के शेयर इसलिए धड़ाम हो गए क्योंकि रिजर्व बैंक ने इन्हें भविष्य में डूबने से बचाने के लिए कुछ मानक कड़े कर दिए हैं।
बुधवार, 21 मार्च को जारी अधिसूचना में रिजर्व बैंक ने तय किया है कि इस तरह के धंधे में लगी फाइनेंस कंपनियां केवल सोने के गहनों के बदले ऋण दे सकती हैं, सोने की छड़ों या बिस्किट जैसे रूपों के बदले नहीं। साथ ही यह भी कि वे सोने के गहनों के मूल्य का 60 फीसदी से ज्यादा हिस्सा बतौर ऋण नहीं दे सकतीं। तीसरी शर्त यह है कि जिन कंपनियों ने अपने ऋणों का आधा या उससे ज्यादा हिस्सा सोने के बदले बांट रखा है, उनकी इक्विटी पूंजी मार्च 2014 तक कुल आस्तियों या दूसरे शब्दों में वितरित ऋणों का कम से कम 14 फीसदी होनी चाहिए।
मुथूत फाइनेंस और मणप्पुरम फाइनेंस इन शर्तों को पूरा नहीं करतीं और इसे पूरा करने के लिए उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ेगी तो किसी अनिष्ट की आशंका में निवेशकों ने इनके शेयरों को बेचना शुरू कर दिया और ये धड़ाम हो गए। अभी ये कंपनियां सोने के मूल्य का 70 से 75 फीसदी हिस्सा ऋण के रूप में दे रही हैं। सोचिए, किसी वजह से सोने का मूल्य अचानक गिर गया तो कंपनियों के लिए अपना ऋण वसूलना दूभर हो जाएगा। रिजर्व बैंक को ग्राहकों से ज्यादा चिंता इन कंपनियों को किसी भावी अनिष्ट से बचाने की है, इसलिए उसने इन पर बैंकों की तरह कड़े मानक लागू कर दिए हैं।
दिक्कत यह भी है कि ये फाइनेंस कंपनियां अपने धन का आधे से ज्यादा हिस्सा खुद बैंकों से कर्ज लेकर या बांड (एनसीडी वगैरह) जारी करके जुटाती हैं। इसलिए ये डूबेंगी तो बैंकों के साथ ही बांडों के निवेशकों को भी ले डूबेंगी। असल में मुथूत और मणप्पुरम फाइनेंस का बिजनेस मॉडल इतनी कच्ची दीवार पर खड़ा है कि वह कभी भी भसक सकता है। इसलिए इनसे दूर ही रहना चाहिए। हमने मुथूत फाइनेंस के आईपीओ के वक्त भी आपको चेतावनी दी। आपने उसे सुना होगा तो अच्छा हैं। नहीं तो 175 रुपए पर जारी शेयर अब तक 20 फीसदी से ज्यादा का फटका लगा चुके हैं। आगे का कोई भरोसा नहीं।
बाकी ज्यादा कुछ नहीं कहना। आप खुद समझदार हैं। शुरुआत में कही बात से अंत भी करना चाहता हूं। महज 23 साल का नौजवान राष्ट्र की मुक्ति का मासूम ख्वाब लिए फांसी चढ़ गया। लेकिन वह मरा नहीं। हमारे-आपके दिलों में सच की धधकती ज्वाला बनकर जिंदा है। हमारी गुजारिश है कि उसे मरने मत दीजिए। इतिहास गवाह है कि भगत सिंह रहते तो गांधी नहीं चलते। इसलिए गांधी-इरविन समझौता हुआ और कांग्रेस के अधिवेशन से पहले भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव को रातोंरात फांसी लगा दी गई।
खैर, राजनीति में सब चलता है। यहां खेमे होते हैं, जान ली जाती है, जान दी जाती है। हां, हमें यह जरूर सुनिश्चित करना होगा कि गांधी जैसा कोई घाघ भगत सिंह जैसे मासूम पर अब हावी न होने पाए। नहीं तो इसका खामियाजा आनेवाली पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा, जैसे हम भुगत रहे हैं। यह सच है कि अंग्रेज़ों के जमाने में भ्रष्टाचार नहीं था। इसलिए, क्योंकि सारी लूट अकेले ले जाने के पुख्ता इंतजाम उन्होंने कर रखे थे। आजादी मिली, लेकिन सत्ता से निकलती लूट के वे परनाले बनाए रखे गए। पहले एक लूटता था, अब लूट की बंदरबांट हो गई है। यही तो भ्रष्टाचार और उसका उत्स है! और क्या?