बजट का तड़का, ये भड़का, वो अटका

चुनाव न होते तो बजट का रहस्य 16 दिन पहले ही खुल जाता। चलिए, इससे वित्त मंत्री और उनके अमले को अपने प्रस्तावों को ठोंक-बजाकर दुरुस्त करने के लिए ज्यादा वक्त मिल गया। लेकिन हम तो उन्हीं के भरोसे हैं तो हमें क्या वक्त मिलना और क्या न मिलना! इतना तय है कि बजट की एक-एक लाइन किसी न किसी रूप में कंपनियों के धंधे पर असर डालती है और इसका सीधा असर उनके शेयरों पर पड़ेगा। सामाजिक स्कीमें बहुत बड़े परिजीवी तबके का ‘धंधा-पानी’ चलाती हैं तो आम लोगों की करमुक्त आय के बढ़ने और टैक्स की दरों के फर्क से कंपनियां प्रभावित होती हैं। हां, जिन लोगों को भ्रम है कि हज़ारों करोड़ की कल्याणकारी स्कीमें लक्षित समूहों के लिए चलाई जाती हैं, वे अपना माथा साफकर गांठ बांठ लें कि इनका मकसद राजनीतिक तंत्र के लाव-लश्कर को बनाए रखना है। ये हमारे वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी भी जानते हैं और उनकी आका सोनिया गांधी भी।

आज भी किसी स्टॉक विशेष की चर्चा का कोई मतलब नहीं है। आपको भी ‘बजट से बजट तक’ की टिप्स के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि इनके जरिए बहुत से धंधेबाज़ अपना जंक माल ठिकाने लगाने की कोशिश करते हैं। कुछ बातें बजट के बारे में मोटामोटी साफ हैं। करमुक्त आय की सीमा बढ़ाई जानी है। आयकर के कुछ स्लैब भी बदले जाएंगे। हाउसिंग को बढ़ावा देने के लिए होमलोन के ब्याज पर कर-छूट बरकरार रखी जाएगी। इंफ्रास्ट्रकर बांडों में कर-छूट की सीमा को 20,000 रुपए से बढ़ाकर 50,000 रुपए कर दिया जाएगा। शायद सिक्यूरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स (एसटीटी) खत्म कर दिया जाए। वैसे भी, सरकार को इससे कुछ खास मिलता-मिलाता तो है नहीं।

सरकार का राजकोषीय घाटा जीडीपी के 4.6 फीसदी के बजट अनुमान के बजाय 5.5-5.6 फीसदी रहेगा। लेकिन लक्ष्य इसे घटाकर 4.1 फीसदी पर लाना है। पिछले साल वित्त मंत्री ने ऐसा ही कहा था और कल पेश आर्थिक समीक्षा ने भी यही सदिच्छा दोहराई है। इसलिए सरकार परोक्ष करों की दरें बढ़ाएगी। सबसे पहले तो वह एक्साइज ड्यूटी को 10 से बढ़ाकर 12 फीसदी के पुराने स्तर पर ले आएगी। सिगरेट व तंबाकू उत्पादों पर ड्यूटी का बढ़ना तय है। लेकिन किताबों वगैरह पर शुल्क घटाया जा सकता है। इसका असर आईटीसी और नवनीत पब्लिकेशंस जैसी कंपनियों के शेयरों पर देखा जा सकता है। टेक्सटाइल सेक्टर को कुछ प्रोत्साहन दिया जाएगा तो आलोक इंडस्ट्रीजअरविंद जैसे स्टॉक्स पर हमें उचक-उचक कर नजर रखनी चाहिए।

वित्त मंत्री ने कुछ दिन पहले ही कहा था कि 2012-13 में सरकारी कंपनियों के विनिवेश से पूर्व घोषणा के मुताबिक 30,000 करोड़ रुपए जुटाए जाने हैं। लेकिन धन जुटाने की समस्या के मद्देनजर इसे 50,000 करोड़ रुपए किया जा सकता है। इस तरह आम निवेशकों को मजबूत कंपनियों में धन लगाने का ज्यादा मौका मिलेगा। लेकिन साल-दो साल में पुरानी लिस्टेड सरकारी कंपनियों ने न तो अच्छा रिटर्न दिया है और न ही नई लिस्ट होनेवाली कंपनियों से ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए।

इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च का बढ़ना तय है। बिजली कंपनियों की शांति के लिए कोयले पर आयात शुल्क का घटाया जाना भी तय है। इसलिए इंफास्ट्रक्चर कंपनियों के शेयरों पर नजर रखी जानी चाहिए। कोल इंडिया और एनटीपीसी को एक साथ देखा जाना चाहिए। वित्त मंत्री जाहिरा तौर पर बड़े दबाव में हैं। लेकिन यह दबाव समाज के मुखर तबके का ज्यादा प्रबल है। इसलिए लोकलुभावन नहीं, बल्कि खास लुभावन घोषणाएं वे कर सकते हैं। जैसे, बीमा में एफडीआई की सीमा 26 फीसदी से बढ़ाकर 49 फीसदी करना, घरेलू एयरलाइन कंपनियों में विदेशी एयरलाइन कंपनियों को 49 फीसदी तक इक्विटी निवेश की इजाजत, बैंकिंग क्षेत्र के कुछ अटके प्रस्ताव और सबसे खास कि मल्टी ब्रांड रिटेल को एफडीआई के लिए खोलने की प्रतिबद्धता को दोहराना। इससे पैंटालून रिटेलशॉपर्स स्टॉप जैसे स्टॉक में क्षणिक हलचल आ सकती है। इसमें कुछ नया नहीं, आप जानते ही हैं।

हां, इस बार सूचना प्रौद्योगिकी और संचार उद्योग में बड़ी ठंडक रहने की आशा है। न सावन हरे, न भादों सूखे। उनके लिए इस बजट में खास कुछ नहीं होना-जाना है। इसलिए जबरदस्ती किसी ने उन्हें चढ़ाया तो चढेंगे। नहीं तो अजगर की तरह जहां हैं, वहीं ठस पड़े रहेंगे। डीजल पर सब्सिडी घटाने के उपाय हो सकते हैं तो ऑटो कंपनियों पर इसका बुरा असर और सरकारी तेल कंपनियों पर अच्छा असर पड़ेगा।

हिंदुस्तान लीवर, आईटीसी, गोदरेज कंज्यूमर मैरिको जैसी एफएमसीजी कंपनियों के लिए परेशानी का सबब यह है कि उपभोक्ता मामलात मंत्रालय ने 19 उत्पादों पर समान पैकेजिंग का नियम बांध दिया है जो 1 जुलाई 2012 से लागू होगा तो अब ये कंपनियां वजन घटाकर दाम वही रखने की सुविधा से वंचित हो जाएंगी। इसलिए उनके स्टॉक्स पर दबाव अभी से देखा सकता है। लेकिन सरकार इस बार कृषि ऋण का लक्ष्य 4.75 लाख करोड़ से 25 फीसदी बढ़ाने जा रही है तो इसका सकारात्मक असर भी इन कंपनियों पर पड़ेगा।

बातें तो बहुत सारी हैं। देखिए, परखिए और समझिए। वित्त मंत्री पांच साल की जगह अब तीन साल की सावधि जमा (एफडी) को 80सी के तहत कर-छूट देने की घोषणा कर सकते हैं। इससे बैंकों के शेयरों में इजाफा हो सकता है। बाकी क्या कहना! वही कहावत कि नाई-नाई कितने बाल! आगे गिरेंगे, देख लीजिएगा। 11 बजे से वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी अपना भाषण पढ़ना शुरू कर देंगे। सुनिए और गुनिए।

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