बड़े-बड़े विद्वानों और अर्थशास्त्रियों का अनुमान था कि जनवरी में भारत का औद्योगिक उत्पादन बहुत बढ़ा तो साल भर पहले की अपेक्षा 2.1 फीसदी ही बढ़ेगा। इस निराशा की वजह थी कि अक्टूबर 2011 में औद्योगिक उद्पादन बढ़ने के बजाय 5.1 फीसदी घट गया था। इसके अगले महीने नवंबर में यह 5.9 फीसदी बढ़ा, पर दिसंबर में फिर बढ़ने की रफ्तार घटकर 1.8 फीसदी पर आ गई।
लेकिन केंद्र सरकार की तरफ से सोमवार को जारी त्वरित अनुमान के मुताबिक जनवरी 2012 में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) साल भर पहले की तुलना में 6.8 फीसदी बढ़ा है। साथ ही दिसंबर 2011 में आईआईपी की वृद्धि का संशोधित आंकड़ा अब पहले से बेहतर 2.5 फीसदी है। आईआईपी से पता चलता है कि देश की फैक्ट्रियों, खदानों और सेवा क्षेत्र में कैसा कामकाज चल रहा है। आईआईपी में 6.8 फीसदी की वृद्धि दर जून 2011 के बाद का सर्वोच्च स्तर है।
आईआईपी के ताजा आंकड़ों के जारी होने के बाद मुंबई में एक्सिस बैंक के प्रतिनिधि अशोक गौतम का कहना था, “निश्चित रूप से रिजर्व बैंक अब नए वित्त वर्ष के बजट और सरकार के उधारी कार्यक्रम का इंतजार करेगा। स ब्याज दर में कटौती होने की गुंजाइश अप्रैल से पहले नहीं है।” परसों, बुधवार को फरवरी महीने की सकल मुद्रास्फीति के आंकड़े जारी किए जाएंगे। उससे भी तय होगा कि रिजर्व बैंक गुरुवार, 15 मार्च को मौद्रिक नीति की मध्य-तिमाही समीक्षा में क्या कदम उठाता है।
इस बीच सरकार के ताजा आंकड़ों के अनुसार जनवरी 2012 में मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र का उत्पादन 8.5 फीसदी बढ़ गया है, लेकिन इसी दौरान खनन क्षेत्र में उत्पादन 2.7 फीसदी घट गया है। जहां गैर-टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन 42.1 फीसदी बढ़ गया है, वहीं टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन में 6.8 फीसदी की कमी आई है। इस दौरान पूंजीगत वस्तुओं का उत्पादन 1.5 फीसदी और मध्यवर्ती वस्तुओं का उत्पादन 3.2 फीसदी घटा है। इसलिए आईआईपी में वृद्धि को निवेश के माहौल के लिहाज से सतोषजनक नहीं माना जा सकता।
इस हकीकत के मद्देनजर वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी का कहना है कि खनन, पूंजीगत वस्तुओं और टिकाऊ उपभोक्ता उत्पादों को बनानेवाले उद्योगों को प्रोत्साहित करने के उपायों की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आंकड़ों का विश्लेषण करने से साफ होता है कि पूंजीगत उत्पाद क्षेत्र की स्थिति में ज्यादा सुधार नहीं है। यह चिंता का विषय है। गैर-टिकाऊ उपभोक्ता उत्पादों ने इस वृद्धि में उल्लेखनीय योगदान किया, लेकिन टिकाऊ उपभोक्ता क्षेत्र का योगदान बहुत नहीं रहा है।
उधर, औद्योगिक उत्पादन में आए सुधार पर संतोष जताते हुए योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा कि फरवरी के आंकड़े देख कर ही भविष्य के रुझान के बारे में कोई मजबूत राय बनाई जा सकती है। उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘‘एक महीने का आंकड़ा काफी नहीं है। अगर यह अगले महीने भी जारी रहता है तो इससे संकेत मिलेगा कि अर्थव्यवस्था अब सामान्य वृद्धि की राह पर वापस लौटने को तैयार है।’’