जैन इरिगेशन सिस्टम्स ड्रिप व स्प्रिंकल सिंचाई उपकरणों के अलावा पीवीसी, पोलि इथिलीन व पॉलि प्रोपिलीन पाइप सिस्टम, प्लास्टिक शीट, डिहाइड्रेटेड प्याज व सब्जियां, टिश्यू कल्चर, बायो फर्टिलाइजर, सोलर वॉटर हीटिंग सिस्टम और सोलर फोटो वोल्टिक उपकरण भी बनाती है। वह फसलों के चयन से लेकर बंजर व असिंचित भूमि के समुचित उपयोग से जुड़ी सलाहकार सेवाएं भी देती है। राजस्थान से निकलकर महाराष्ट्र के जलगांव में बसे जैन परिवार ने व्यापार से शुरू कर ईंट-दर-ईंट इस कंपनी का ढांचा खड़ा किया है। पूरा इतिहास सौ साल से भी ज्यादा पुराना है।
कंपनी के दिन इधर अच्छे नहीं चल रहे। करीब दो हफ्ते पहले 10 दिसंबर को जलगांव में उसके प्लास्टिक पाइप स्टोरेज यार्ड में आग लग गई। उसके एक दिन पहले 9 दिसंबर को उसका दो रुपए अंकित मूल्य का शेयर 114.75 रुपए पर बंद हुआ था। कल 21 दिसंबर को वह बीएसई (कोड – 500219) में 81.65 रुपए और एनएसई (कोड – JISLJALEQS) में 81.40 रुपए पर बंद हुआ है। वह भी करीब 7 फीसदी बढ़ने के बाद। फिर भी आग लगने के बाद से यह करीब 29 फीसदी नीचे है। एक दिन पहले 20 दिसंबर तक यह गिरावट 33.6 फीसदी थी। जुलाई में यह शेयर 183.70 रुपए तक ऊंचा चला गया था, जहां से वो अब तक 56 फीसदी से ज्यादा नीचे आ चुका है। जबकि इसी दौरान बीएसई-200 सूचकांक, जिसमें यह स्टॉक शामिल है, जुलाई के शिखर से करीब 21 फीसदी नीचे उतरा है।
आग से कंपनी को 10-15 करोड़ रुपए का ही नुकसान हुआ है और इन नुकसान की भरपाई बीमा कवर से हो जाएगी। इसलिए उससे शेयर पर 30 फीसदी से ज्यादा चोट लगने का वाजिब आधार नहीं है। बस माहौल और मानसिकता की बात है। यह भी सच है कि डॉलर के मुकाबले रुपए के इस तरह गिर जाने के चलते कंपनी को सितंबर 2011 की तिमाही में 59 करोड़ रुपए का एमटूएम (मार्क टू मार्केट) विदेशी मुद्रा नुकसान हुआ है। यही वजह है कि साल की दूसरी तिमाही में बिक्री के 17.82 फीसदी बढ़कर 750.31 करोड़ रुपए हो जाने के बावजूद उसका शुद्ध लाभ 81.34 फीसदी घटकर 11.57 करोड़ रुपए पर आ गया। कंपनी के प्रबंध निदेशक अनिल जैन का मानना है कि अगर 31 मार्च 2012 को डॉलर 54 रुपए का रहा तो साल की आखिरी तिमाही में भी उसे इसी तरह का विदेशी मुद्रा नुकसान हो सकता है।
वैसे, एक बात ध्यान रखें कि एमटूएम नुकसान मूलतः सांकेतिक होते हैं। असली बात यह है कि कंपनी का धंधा चल कैसा रहा है। पिछले तीन सालों में उसकी बिक्री 22.42 फीसदी और शुद्ध लाभ 28.12 फीसदी की सालाना चक्रवृद्धि दर से बढ़ा है। कंपनी का इक्विटी पर रिटर्न 20.01 फीसदी और नियोजित पूंजी पर रिटर्न 16.35 फीसदी है। हां, उस पर ऋण का बोझ अपेक्षाकृत ज्यादा है। उसका ऋण-इक्विटी अनुपात 1.89 है। उसके ऊपर 2988.78 करोड़ रुपए का ऋण है। सितंबर तिमाही में उसने शुद्ध लाभ के सात गुने से ज्यादा 81.44 करोड़ रुपए का ब्याज चुकाया है।
लेकिन कंपनी प्रबंधन इस दिक्कतों से हम से ज्यादा चिंतित है। वह अपना बिजनेस मॉडल बदल रहा है। असल में कंपनी को तमाम कृषि उत्पादों पर सरकार से सब्सिडी मिलती है जिसके भुगतान में देरी से मुश्किल होती रहती है। इससे निपटने के लिए वह अब एक गैर-बैंकिंग फाइनेंस कंपनी (एनबीएफसी) बना रही है जो किसानों को सिंचाई उपकरण खरीदने के लिए फाइनेंस मुहैया कराएगी। इसके बाद सरकारी सब्सिडी सीधे किसानों के खाते में जाएगी और कंपनी उसे निकलवाने के झंझट से बच जाएगी। सरकार भी सब्सिडी सीधे किसानों तक पहुंचाने की कोशिश में लगी है। इसलिए कंपनी व सरकार के प्रयासों में एक तरह का साम्य है।
ऐसी तमाम वजहों से बहुत सारे जानकार जैन इरिगेशन सिस्टम्स को लेकर उत्साहित नहीं हैं। लेकिन हमें लगता है कि उसका जिस तरह हाल के महीनों में 50 फीसदी से ज्यादा गिरा है, वैसे में इसमें निवेश करना लाभप्रद रहेगा। इस समय कंपनी का ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 6.88 रुपए है और उसका शेयर फिलहाल 11.87 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। पूरी संभावना है कि दो साल में कंपनी का सारा दुर्दिन कट जाएगा। शेयरों के भाव चूंकि साल भर बाद की स्थिति को पहले ही दिखाने लगते हैं। इसलिए यह स्टॉक अगले साल दिसंबर तक कम से कम 150 रुपए पर पहुंच जाना चाहिए। यानी, 80 फीसदी से ज्यादा रिटर्न की उम्मीद।
कंपनी की इक्विटी 77.18 करोड़ रुपए है। इसका 69.65 फीसदी पब्लिक के पास है। इसमें से भी एफआईआई का निवेश 56.44 फीसदी है, जबकि डीआईआई का निवेश मात्र 1.71 फीसदी है। कंपनी पर प्रवर्तकों से ज्यादा एफआईआई भारी हैं क्योंकि प्रवर्तकों की हिस्सेदारी उनसे कम 30.35 फीसदी है। इसका भी 11.44 फीसदी (कंपनी की कुल इक्विटी का 3.47 फीसदी) उन्होंने गिरवी रखा हुआ है। खैर, यह सब तो चलता रहता है। जैन इरिगेशन डूबनेवाली कंपनी नहीं है। ग्रीन और कृषि को प्रोत्साहन के इस दौर में वह अपना पुख्ता आधार फिर से हासिल कर लेगी। वैसे, एफआईआई ने इतना निवेश किया है तो वे उसे चढ़ाएंगे जरूर क्योंकि वे भारत में कंपनी चलाने नहीं, बल्कि निवेश से नोट कमाने आए हैं।