शेयर बाजार बुधवार, 28 अप्रैल को अच्छी-खासी गिरावट का शिकार हो गया। वजह बताई गई कि स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने ग्रीस की रेटिंग को कचरे में डाल दिया है और पुर्तगाल की रेटिंग दो पायदान नीचे कर दी है। इससे चिंता छा गई है कि यूरोप का कर्ज संकट और गहरा हो गया है। अमेरिका में गोल्डमैन सैक्स की पूछताछ से वित्तीय क्षेत्र के उलझे हुए पेंच खुलते जा रहे हैं। अमेरिका से लेकर एशियाई बाजारों की गिरावट ने हमारे बाजार पर असर डाला है। यह वजहें एकहद तक मायने रखती हैं क्योंकि भारतीय शेयर बाजार के सौदों में इस समय तकरीबन 70 फीसदी हिस्सेदारी एफआईआई (विदेशी संस्थागत निवेशकों) की है जो जाहिर है विदेश की हर आर्थिक व वित्तीय हलचल से सीधे प्रभावित होते हैं।
लेकिन इसके साथ कुछ सकारात्मक खबरें भी हमारे बाजार के लिए थीं। जैसे, योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया ने कहा कि देश में अगले कुछ महीनों में ब्याज दर बढ़ने की संभावना नहीं है, भले ही मुद्रास्फीति की दर काफी ज्यादा हो गई हो। वित्त मंत्रालय के सलाहकार ने कह दिया है कि अप्रैल में मुद्रास्फीति की दर 9 फीसदी रहेगी और इसके बाद के महीनों में और नीचे आने लगेगी। खुद वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति के घटने की बात कही। वाणिज्य व उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने कहा कि पिछले साल घोषित की गई विदेश व्यापार नीति को बदला जा सकता है। जीडीएफटी (विदेश व्यापार महानिदेशालय) एक-एक निर्यात क्षेत्र की समीक्षा कर रहा है और उसकी रिपोर्ट अगस्त 2010 में आ जाएगी। इसके बाद सरकार की नीति बदली जा सकती है। आईआरडीए ने बीमा कंपनियों को कह दिया है कि जुलाई से उन्हें ग्राहकों को जानकारी देनी होगी कि किसी यूलिप पॉलिसी में वे एजेंट को कितना कमीशन दे रही हैं।
सवाल उठता है कि बाजार ने इतनी नजदीक की अच्छी खबरों पर गौर न करके दूर की उन खबरों को तवज्जो क्यों दी जो असल में खबर ही नहीं हैं क्योंकि यूरोप के कर्ज संकट और गोल्डमैन सैक्स की बात हफ्तों पुरानी हो चुकी है। असल में खबरों के शोर में बाजार की वास्तविक तस्वीर को ढंक दिया जाता है और कुछ ठग टाइप लोगों के कहने पर सभी लोग उनके सुर में सुर मिलाकर कहने लगते हैं कि कौआ कान ले गया।
पहली बात हम देखें कि बीएसई सेंसेक्स में जो 310.54 अंकों की गिरावट आई है, उसमें किसका कितना योगदान है। रिलायंस इंडस्ट्रीज का शेयर 44.10 रुपए गिरा तो सेंसेक्स में उसने दोगुने से भी ज्यादा 94.93 अंक का फटका लगा दिया। आईसीआईसीआई बैंक 27.70 रुपए गिरा तो सेंसेक्स को 40.64 अंकों का धक्का लगा। लेकिन इनफोसिस में 41.10 रुपए की गिरावट आई तो सेंसेक्स को गिराने में उसका योगदान 26.40 अंक का रहा।
अगर इन तीन कंपनियों के साथ एल एंड टी, टाटा स्टील, एचडीएफसी और टीसीएस को मिला दें तो इनके चलते सेंसेक्स 231.47 अंक गिरा है। दूसरे शब्दों में सेंसेक्स में बुधवार को आई 310.54 अंकों की गिरावट में इनका योगदान 74.54 फीसदी, यानी लगभग तीन चौथाई है। सेंसेक्स में शामिल 30 शेयरों में से पांच ने बढ़त हासिल की है। ये शेयर हैं – हिंदुस्तान यूनिलीवर, सनफार्मा, एसबीआई, एसीसी और एनटीपीसी।
बात यह पता लगानी चाहिए कि रिलायंस और दूसरे वजनी शेयर क्यों गिरे, या एसबीआई व एनटीपीसी क्यों बढ़ गए? ज्यादा बिक्री से शेयर गिरते हैं और ज्यादा खरीद से शेयर बढ़ते हैं। तो, कौन-कौन हैं जिन्होंने रिलायंस वगैरह में बिक्री की और कौन हैं जिन्होंने एसबीआई, एनटीपीसी या सनफार्मा को खरीदा? इसी बात से पता चलेगा कि बाजार को गिरानेवाले शेयरों को आखिर किन लोगों ने गिराया है। आखिर सेंसेक्स की गिरावट में अकेले रिलायंस का योगदान 30.50 फीसदी का है!
दूसरी बात, कल 29 अप्रैल है और यह इस महीने के फ्यूचर व ऑप्शन सौदों को रोलओवर करने का आखिरी दिन है। इसलिए मौजूदा सौदे काटे गए ताकि अगले सौदों की जगह बनाई जा सके। फ्यूचर सौदे केवल सूचकांक से जुड़े शेयरों में ही होते हैं तो इनमें बिक्री का मतलब ही था कि बाजार गिरेगा। इसीलिए सारे के सारे सेक्टरों से जुड़े सूचकांक नीचे गिरे हैं। सूचकांक गिरे तो अपने साथ पूरे बाजार को बहा ले गए। बीएसई में जिन 2980 शेयरों में ट्रेडिंग हुई, उसमें से 2176 शेयरों में गिरावट दर्ज की गई, 720 शेयरों के भाव बढ़े और 84 के भावों में कोई तब्दीली नहीं आई।
अंत में मेरा यही कहना है कि बाजार पर नजर रखनेवाले सभी लोगों को निराकार नहीं, साकार वजहों की सूचना देनी चाहिए। अभी तो यही हो रहा है कि वे ऊपर-ऊपर दिखाते कुछ हैं, जबकि बाजार की असली कहानी सतह के नीचे बह रही होती और असली खिलाड़ी कहीं पब या क्लबों में बैठे ठहाके मार रहे होते हैं। बाजार के विस्तार के लिए पारदर्शिता जरूरी है और यह पारदर्शिता सच्ची बातों को ही सामने लाने से आ सकती है।
बाजार फायनेशियल फिगर की जगह पूरी तरह सेन्टीमेन्टस पर चल रहा है, ऐसे में आम निवेशकों को संयम और विवेक का पालन करना होगा.