टेक्निकल एनालिसिस व चार्ट वाले इस समय खुश तो बहुत होंगे क्योंकि वे लंबे अरसे से निफ्टी के 4800 से नीचे जाने की भविष्यवाणी किए पड़े थे और ऐसा हो चुका है। अब इसके 4500 ही नहीं, 4200 तक गिरने की बात कही जा रही है। इधर आप में कुछ लोगों ने हिंदी में टेक्निकल एनालिसिस सिखाना शुरू करने की सलाह दी है। लेकिन टेक्निकल एनालिसिस क्या कोई विज्ञान है, विज्ञान व आस्था का मिलेजुले रूप ज्योतिष जैसा है, मामला ‘लग गया तो तीर नहीं तो तुक्का’ या ‘महाजनो येन गतो सः पंथा’ का है। आइए देखते हैं।
सबसे पहले हमें स्वीकार करना पड़ेगा कि शेयर बाजार में सबसे ज्यादा अनुयायी टेक्निकल एनालिसिस के ही हैं। इसमें बाजार की हलचलों का अध्ययन किया जाता है और अभी तक के भावों के आधार पर नए भावों की भविष्यवाणी की जाती है। असल में कहा जाता है कि टेक्निकल एनालिसिस बाजार और शेयरों को प्रभावित करनेवाले प्रत्येक कारक को ध्यान में रखती है। वह कंपनियों व उद्योग के मूलभूत पक्षों (फंडामेंटल्स) से लेकर, खबरों, राजनीतिक घटनाओं, निवेशकों की मनोवैज्ञानिक बुनावट और यहां तक कि प्राकृतिक आपदाओं तक के प्रभाव का आकलन करती है।
काश! ऐसा होता तो क्या बात होती!! नाम से भले ही यह विज्ञान जैसा नजर आए, लेकिन यह सड़क-छाप ज्योतिषों, तोते से कागज निकलवाने या टैरट कार्ड पढ़नेवालों से बेहतर नहीं है। ये तथाकथिक विश्लेषक मूलतः शेयर या बाजार के अभी तक के स्तर में पैटर्न खोजते हैं। वे इनसे बने चार्टों के आधार पर किसी स्टॉक या सूचकांक के बारे में पूरे बाजार का मनोविज्ञान समझने का दावा करते हैं।
टेक्निकल एनालिसिस का कोई सुपरिभाषित स्वरूप नहीं है। लेकिन वहां इलियट वेव, लॉगरिदमिक चार्ट, गैन फैन, ज्यामितीय कोण, ऑन-बैलेंस वोल्यूम, आइलैंड रिवर्सल, रिलेटिव स्ट्रेन्थ इंडेक्स, सपोर्ट/रजिस्टेंस, ऑसिलेटर, रिग्रेशनल लाइन, मूविंग औसत, बोलिंगर बैंड, कप एंड हैंडल और हेड एंड शोल्डर जैसे सैकडों संकेतक फेंके जाते हैं। सालों पहले जब मैं हिंदी के पहले आर्थिक अखबार अमर उजाला कारोबार में समाचार संपादक हुआ करता था, तब विपुल वर्मा ने हमारे लिए टेक्निकल एनालिसिस लिखने की शुरुआत की थी। मुझे उससे पढ़ते हुए सबसे ज्यादा मजा ‘कैंडल स्टिक पैटर्न’ पर आता था क्योंकि वे बार-बार इसका इस्तेमाल करते थे। विपुल वर्मा अब काफी बड़े कॉलमनिस्ट हो चुके हैं।
टेक्निकल विश्लेषण की तीन धारणाएं काफी आम हैं। सपोर्ट या समर्थन, रजिस्टेंस या प्रतिरोध और ट्रेंड या रुझान। कहा जाता है कि यह समर्थन का बिंदु है तो मतलब होता है कि खास शेयर या बाजार अब गिरना रोककर बढ़ने लगेगा। प्रतिरोध वह स्तर है जिसको पार करना बड़ा ही मुश्किल होता है। स्टॉक वहां से टकराकर बार-बार वापस लौट सकता है। रुझान के तहत शेयर की पुरानी चाल के आधार पर कुछ बोला जाता है। इसी का हिस्सा है मूविंग एवरेज या औसत। 100 दिनों का मूविंग औसत (डीएमए), 200 डीएमए, 500 डीएमए, सिंपल मूविंग एवरेज या एसएमए आदि इत्यादि।
असल में टेक्निकल एनालिसिस की हकीकत आदर्श से आदर्श स्थिति में एक्स-रे जैसी है। वह बाजार की सतह के नीचे चल रही धारा की तस्वीर पेश करती है। लेकिन पहली बात। हमारे आप जैसा साधारण आदमी एक्स-रे को देखकर कुछ नहीं समझ सकता। दूसरे, कोई डॉक्टर सारा निदान एक्स-रे देखकर नहीं करता। वह बहुत सारे अन्य पक्षों के आधार पर इलाज करता है। इसलिए टेक्निकल एनालिसिस अपने-आप में कतई पर्याप्त नहीं है। फिर इसके लिए फॉर्मूलों में सारे प्रासंगिक आंकड़े डालने जरूरी होते हैं। क्या हमारे बाजार में ऐसे तमाम जरूरी आंकड़े उपलब्ध हैं? तीसरे, यह सारा एनालिसिस उस बाजार के लिए हैं जो आदर्श व विकसित अवस्था में है। हमारे जैसे बाजार में जहां आम निवेशकों की भागीदारी 1.7 फीसदी पर अटकी हो, जहां निहित स्वार्थ बाजार को अपने इशारों पर उठाते-गिराते हैं, वहां टेक्निकल एनालिसिस ‘हां तो साहबान, मेहरबान, कदरदान’ कहकर किसी गोह जैसी छिपकली का तेल बेचने के धंधे से ज्यादा कुछ नहीं है।
माना जाता है कि 200 डीएमए की लाइन तेजी के बाजार को मंदी के बाजार से अलग करती है। अगर किसी स्टॉक का भाव 200 डीएमए से नीचे चला गया तो उसके उठने की गुंजाइश नहीं रहती और उस पर ऋणात्मक रिटर्न ही मिल सकता है। लेकिन औसत के इस खेल की हकीकत ‘हिसाब ज्यों का त्यों, कुनबा डूबा क्यों’ की कथा जैसी है। हां, इन औसतों का इस्तेमाल निवेश के जोखिम को समझने के लिए जरूर किया जा सकता है।
सवाल उठता है कि इतना ऊंटपटांग होने के बावजूद टेक्निकल एनालिसिस बाजार में सबसे ज्यादा लोकप्रिय क्यों है? पहली बात कि यह आपको शॉर्ट-कट देती है कि आप कंपनी या उद्योग के बारे में बिना जाने बस भावों के रुझान के आधार पर निवेश कर सकते हैं। तो आसान रास्ता किसको पसंद नहीं आता। दूसरी बात, सारी टेक्निकल एनालिस्ट किसी न किसी ब्रोकरेज फर्म से जुड़े रहते हैं। ब्रोकरेज फर्मों का धंधा इसी बात से बढ़ता है कि ज्यादा से ज्यादा सौदे हों। लोगबाग फटाफट खरीदें-बेचें। इसलिए ब्रोकरेज फर्में अपना धंधा चटकाने के लिए टेक्निकल एनालिसिस पेश करती-करवाती रहती हैं। तीसरी बात, टेक्निकल एनालिस्ट न रहें तो हमारे बिजनेस चैनल सुबह से शाम तक करेंगे क्या? जरा सोचिए कि जो एनालिस्ट सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे तक सीएनबीएसी टीवी-18, आवाज़, ज़ी बिजनेस, ब्लूमबर्ग टीवी या ईटी नाऊ पर बैठा रहता है, वह और क्या करता होगा? उसका दाना-पानी इन चैनलों से चलता है और इन चैनलों का धंधा उनकी बदौलत।
अंत में। क्या हमें टेक्निकल एनालिसिस को अंधविश्वास मानकर नजरअंदाज कर देना चाहिए? दूरगानी निवेशकों के लिए यही रवैया अपनाना सबसे सही रहेगा। लेकिन छोटी अवधि के निवेशकों और ट्रेडरों का काम टेक्निकल एनालिसिस के बिना नहीं चल सकता। असल में बाजार के ज्यादातर कारोबारी और फंड मैनेजर रोज-ब-रोज टेक्निकल एनालिसिस व चार्ट का ही अनुसरण करते हैं। चूंकि ज्यादातर कारोबारी इसी से हिसाब से चलते हैं तो बाजार की खरीद-फरोख्त इसी नजरिए से निर्धारित होने लगती है। इसलिए जिन्हें बाजार के रुख को समझना और उसके साथ चलना है, वैसे अल्पकालिक निवेशकों व ट्रेडरों के लिए टेक्निकल एनासिलिस अपरिहार्य बन जाती है।
ek analyst ney cnbc awaaz par india securities ko 60 rs par bech daalney kee salaah
sirf chart dekh kar dey daali . analyst kunal saraogi ney india sec k fundamental bhaav
k baarey mey kuch bhi nahi bola , jab k analyst ko india sec ka fundamental bhaav
kya hona chahiye yeah bolna chahiye tha par saraogi sahab ney toh india sec ka sirf
chart dekh kar ” bhavishyani ” kar daali k niveshak 60 rs par nikal ley .
wah wah ! kya analyst hai ? arey bhai india sec ka chaalu market cap kareeb 5200 cr
ka hai jo k company k net worth k 50 % baraabar hai abhi ismey badhat kee aur
gunjaaish baaki hai aisa mujey lagtaa hai . india sec k paas 5050 cr cash aur
vodafone essar mey 11 % hissey ka bhaav 5600 cr k upar hai , aab aap he bataye
k kya current m-cap par (5200 cr ) ya 60 rs prati share k bhaav par humey india sec
bech daalna chahiye ?? mai cnbc awaaz k technical analyst kee baat sey sahamat
nahi hu anil jee aap ney bilkul sahi kahaa sirf x ray dekh kar ilaaj nahi kiya ja
saktaa mai yaha uss analyst dwraa kee gayee bhavishyani kee link nichey copy paste
kar raha hu aap sabhi kee jaankaari k liye . aur haa aakhir mey bolna chahunga
k india sec par koi karz nahi hai. aap iss analyst kee naa suney aur apnaa abhyaas
khud karey .
http://www.moneycontrol.com/news/views/book-profitindia-securities-kunal-saraogi_575555.html
dhanyawaad
amit
टेक. एनालिसिस अवश्य ही कोई sure shot साइंस नहीं है लेकिन इसे आप सिरे से नहीं नकार सकते. कैंडलस्टिक का इतिहास कोई २०-२५ साल पुराना नहीं ४०० साल पुराना है. हर दौर में उससे अवश्य ही पैसे कमाए गए होंगे तभी वो इतने साल से चलती आ रही है.फ्लॉप आइटम को कोई फॉलो नहीं करता. लोग कामयाब चीज़ के पीछे ही भागते हैं . मै मानता हूँ जो पैसा हम टेक अनालिस्ट से काल लेने में खर्च करते हैं , उतने पैसे खर्च करके इन्वेस्टर को स्वयं एनालिसिस सीख लेनी चाहिए (मेहनत से बचने वालों की इस संसार में कोई जगह नहीं ) . सीखने से सबसे बड़ा फायदा ये होता है कि हम अपनी ट्रेडिंग STRETEGY डेवलप कर पाते हैं. कम से कम हम अँधेरे में हाथ पैर मारना तो बंद कर ही देते हैं. जब डाक्टर इंजिनियर बनने में लोग ५-५ साल पढाई करते हैं तब डाक्टर बनते ,इंजिनियर हैं तो हम रात को ट्रेडर/इन्वेस्टर बनने का विचार करके सुबह एक अखबार खरीद कर या वेबसाइट देखकर ट्रेडर/इन्वेस्टर कैसे बन सकते हैं. शेयर इन्वेस्टिंग/ट्रेडिंग कोई बच्चों का खेल नहीं और न ही ये जुआ है . अनालिसिस सिखने का सबसे बड़ा फायदा ये है कि आप अपने नुक्सान को कम कर सकते हैं. आलोचना करना सबसे आसान चीज़ है. इस पर न कोई टैक्स है न रोक टोक.
himanshu tumney bilkul sahi kahaa , mai iss vichaar aur mat ka hu k humey
technical aur fundamental dono ka balance kar k stock ka abhyaas karnaa hogaa
agar maan lo ko ghatiya stock technical break out upar jaaney k liye deta bhi hai
lekeen agar uss company ka fundamental bohat he ghatiya hai jo k uss break out
ko bhi justify nahi kartaa toh humey aise ghatiya fundamental waaley stock sey
teji aaney par bech he daalna chahiye ” tel leny gayaa break out ” kyoki mainey dekha
hai k aise stocks mey teji tikaau nahi rahati aur giraawat badi bhayankar hoti hai
jismey niveshak pooraa dub jaataa hai . isliye technical k saath fundamental k paksh
ko bhi dhyaan rakhana zaroori hai .
क्या जरुरत है ऐसे स्टॉक में ट्रेड करने का जिसके न बाप का पता हो न माँ का. NSE & BSE के इतने सारे इंडेक्सेस हैं. उनमे से शेयर छांट कर अपने पैरामीटर फिक्स करके काम किया जाए तो पैसा कमाया जा सकता है. इंसान दो हाथ दो पैरों वाला जीव है ओक्टोपस नहीं. ओर्थोपेडिक सर्जन आँख का ओप्रशन नहीं कर सकता. हर इंसान की निश्चित क्षमताएं हैं. टेक्निकल एनालिसिस अपने आप में इतना गहरा समंदर है कि शायद फंडामेंटल्स सिखने का वक्त ही न बचे. मै नहीं कहता कि सब मुझ से सहमत होंगे लेकिन मेरी नजर में स्टॉक निवेश के मुकाबले ट्रेड करने के लिए बेहतर होते हैं. मै मानता हूँ कि स्टॉक सिर्फ चार्ट के आधार पर खरीदना चाहिए और चार्ट के आधार पर ही बेचना चाहिए. इसमें समय सीमा रखना नासमझी होगी क्योंकि इस बाजार में कल क्या होगा किसी को नहीं पाता स्वयं अनिल रघुराज जी को भी नहीं जो कि हर समय सिर्फ लेकर सो जाने की बात करते हैं. सोचिये क्या हुआ होगा उस बेचारे का जिसने ठीक चार महीने पहले स्टेट बैंक ख़रीदा होगा ये सोच कर कि मै इसे साल भर बाद बेचूंगा. यहाँ टाइम फ्रेम काम नहीं करता इसलिए मेरी नजर में ये बाजार निवेश का नहीं ट्रेड का है . ये बाजार है और बाजार में निवेश नहीं ट्रेड होता है. ये शेयर बेटी की शादी को ले लो, इसे बेटे हो एमबीए करवाने को रख लो. कल का पता. उम्मीद करते हैं बीस साल बाद क्या होगा और दुहाई देंगे एसबीआई टाइटन की. पूरी कार्टल है जनता का पैसा लॉन्ग टर्म लगवाने को क्योंकि आखिर पैसा वो नहीं लगायेगा तो फिर सौदा महंगा करके किसके हाथ बेचेंगे.