इधर पिछले कई महीनों से मिड कैप और स्माल कैप कंपनियों के शेयरों में ट्रेडिंग बढ़ती गई है। इसके बावजूद अब भी बाजार के कुल पूंजीकरण का करीब 70 फीसदी हिस्सा लार्ज कैप कंपनियों से आता है। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में ऐसी लार्ज कैप कंपनियों की सख्या महज 77 है। दूसरी तरफ मिड कैप कंपनियों में होनेवाला कारोबार बाजार के कुल पूंजीकरण का 20 फीसदी है और ऐसी कंपनियों की संख्या 209 है। लेकिन स्मॉल कैप कंपनियों की सख्या 2899 होने के बावजूद इनमें होनेवाले कारोबार की मात्रा कुल बाजार पूंजीकरण का मात्र 10 फीसदी है। यह बात म्यूचुअल फंड व निवेश प्रबंधन से जुड़ी संस्था वैल्यू रिसर्च के एक ताजा अध्ययन में सामने आई है।
इस बारे में वैल्यू रिसर्च के सीईओ धीरेंद्र कुमार का कहना है कि स्मॉल कैप कंपनियों की लंबी-चौड़ी सूची में हो सकता है कि कुछ छिपे हुए हीरे हों, लेकिन ज्यादातर की हालत कचरे जैसी है। इसमें से सही स्टॉक को सही समय पर चुन लेना निवेशकों के लिए बेहद मुश्किल काम है। जब कभी बाजार गिरने लगता है तो स्मॉल और मिड कैप शेयरों में ट्रेडिंग की मात्रा एकदम खत्म-सी हो जाती है। उनसे आप बाहर निकलना भी चाहें तो नहीं निकल पाते। वहीं अगर ऐसी कंपनियों में किसी म्यूचुअल फंड की ओपन एंड स्कीम के जरिए निवेश किया गया होता है तो आप एक दिन की नोटिस पर उनसे बाहर निकल सकते हैं। ओपन एंड स्कीम म्यूचुअल फंडों की सतत खुली रहनेवाली स्कीम होती है जिसमें कभी भी एनएवी (शुद्ध आस्ति मूल्य) पर निवेश किया जा सकता है।
उनका कहना है कि अगर स्मॉल व मिड कैप स्टॉक बेहतर प्रगति कर रहे हों, उनके भाव बढ़ रहे हों तो यकीनन इसमें निवेशकों को पैसा लगाना चाहिए। लेकिन इनमें लिक्विडिटी या बाजार में खरीद-फरोख्त का मौका सूख जाने का बड़ा भारी जोखिम होता है। इसलिए इनमें निवेश से पहले इस जोखिम को जरूर दिमाग में रखना चाहिए।
वैसे, बाजार के कुछ जानकार मानते हैं कि अब भी बाजार से रिटेल निवेशक काफी हद तक गायब हैं और स्मॉल व मिड कैप शेयरों में जो सौदे हो रहे हैं, उनका बड़ा हिस्सा ब्रोकर फर्मों के अपने खाते में या म्यूचुअल फंडों द्वारा खरीदा जा रहा है और इन्होंने अपना ध्यान ऊपर की कंपनियों से थोड़ा पीछे खींच लिया है। शायद इसीलिए पिछले कुछ महीनों में टॉप 100 कंपनियों में कारोबार की मात्रा घटी है। नवंबर 2009 में टॉप 100 कंपनियों के शेयरों का बाजार पूंजीकरण बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) में 2860 करोड़ रुपए और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) में 11,300 करोड़ रुपए था, वहीं मार्च 2010 में यह घटकर बीएसई में 1875 करोड़ रुपए और एनएसई में 8100 करोड़ रुपए पर आ गया है।
इस दौरान बीएसई में टॉप 500 से 5000 कंपनियों के शेयरों का बाजार पूंजीकरण 550 करोड़ रुपए से बढ़कर 822 करोड़ रुपए और एनएसई में टॉप 500 कंपनियों के शेयरों का कारोबार 400 करोड़ रुपए से 785 करोड़ रुपए हो गया है। बता दें कि इस समय बीएसई में लिस्टेड कंपनियों की संख्या 4977 है जिनमें से 1513 कंपनियों में ट्रेडिंग पिछले कई महीनों से बंद है। इसी तरह एनएसई में लिस्टेड कंपनियों की संख्या 1453 है जिसमें से 158 में ट्रेडिंग सस्पेंड है।
गौततलब है किसी शेयर का बाजार पूंजीकरण उसके शेयर के ताजा बाजार भाव को ट्रेडिंग के लिए उपलब्ध (प्रवर्तकों के हिस्से से बचे) शेयरों की संख्या से गुणा करके निकाला जाता है। अपने यहां 250 करोड़ रुपए तक के बाजार पूंजीकरण वाली कपंनियों को स्मॉल कैप और 250 करोड़ रुपए से 4000 करोड़ रुपए तक के बाजार पूंजीकरण वाली कंपनियों को मिड कैप कहा जाता है। इससे ज्यादा के बाजार पूंजीकरण वाली कंपनियां लार्ज कैप की श्रेणी में आ जाती हैं। वैसे, अमेरिका में मिड कैप कंपनियों का बाजार पूंजीकरण भारतीय मुद्रा में 9000 करोड़ रुपए से शुरू होकर 45,000 करोड़ रुपए तक जाता है।
achchi jaankari uplabdh karwayi………shukriya.
अच्छी जानकारी दी है। आशा है कि आपके ब्लॉग पर आकर अपने संशय व समस्याएँ सुलझाने में सहायता मिलेगी।
घुघूती बासूती