तमाम बुरी खबरें पचा गया बाजार। इसमें इनफोसिस के खराब नतीजे, औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) की कमतर वृद्धि और इन सबके ऊपर मुंबई के झावेरी बाजार, ओपेरा हाउस और दादर में हुए सीरियल बम धमाके। बाजार ने साबित कर दिया कि निफ्टी में 5500 का स्तर बहुत मजबूत स्तर है जहां बाजार ने पर्याप्त पकड़ दिखाई है। कुल मिलाकर बाजार थोड़ा गिरकर बंद हुआ क्योंकि सबको इंतजार था कि यूरोप में बैंकों के स्ट्रेस टेस्ट का नतीजा क्या निकलता है। व्यापक धारणा इस बात की है कि 15 बैंकों में ज्यादा रकम डालने की जरूरत होगी क्योंकि यूरोप के जिस देशों से इनका ताल्लुक है, उनकी अर्थव्यवस्था की हालत अभी बहुत कमजोर है।
अभी तक सामने आए कंपनियों के नतीजे मिले-जुले रहे हैं। इनफोसिस का आंकड़ा खराब रहा तो टीसीएस ने जबरदस्त नतीजे पेश कर दिए। यह साफ दिखाता है कि पहली तिमाही में कुल मिलाकर कॉरपोरेट क्षेत्र का प्रदर्शन बाजार के अनुमान से बेहतर रहेगा। बाजार में आम धारणा है कि कंपनियों का लाभ इस बार 11 फीसदी बढ़ेगा, जबकि हमारा मानना है कि यह 15 फीसदी से ज्यादा रहेगा और बाजार के लिए सही तान खींचने का आधार बनेगा।
सरकार के रुख की चर्चा करें तो हम चालू वित्त वर्ष के चार महीने गंवा चुके हैं। इसलिए सरकार पर सारा दारोमदार है कि वह बाकी बचे आठ महीनों में क्या करती है। विनिनेश से 40,000 करोड़ रुपए की रकम कैसे जुटाती है या कौन-कौन से आर्थिक सुधार वह करने जा रही है। वैसे, मानसून सत्र में इस सिलसिले में कुछ अहम कदम उठाए जाने हैं।
बाजार को सरकार से बड़ी अपेक्षा भी है। हालांकि सरकार ने काफी सकारात्मक रवैया अपना रखा है। डीजल, रसोई गैस व केरोसिन के दामों का वास्तविक मूल्य के करीब लाना, वेदांता और केयर्न के सौदे को कैबिनेट की मंजूरी, रिलायंस-बीपी के करार को भी प्रारंभिक मंजूरी और मंत्रिमंडल का पुनर्गठन इसकी तस्दीक करते हैं। हालांकि एम्बिट कैपिटल जैसे कुछ नामी ब्रोकरेज हाउस गिनाने में लगे हैं कि सरकार कैसे तमाम मोर्चों पर नाकाम रही है और आगे की दशा-दिशा भी साफ नहीं है।
फिलहाल अधिकांश एफआईआई कैश के जखीरे पर बैठे हैं और मौहाल में स्पष्टता की बाट जोह रहे हैं। वहीं स्मार्ट किस्म के निवेशक अपना काम शुरू कर चुके हैं। यह बीते हफ्ते बी ग्रुप के शेयरों में बढ़ी सक्रियता से देखा जा सकता है। खासकर, ऑपरेटर काफी तेजी से तमाम शेयरों को पकड़ रहे हैं। उनका मानना है कि एफआईआई को खरीद के लिए आगे आना ही है। और, जब भी ऐसा होगा तो वे उन्हें बेचकर भावों के अंतर से अच्छी कमाई कर लेंगे।
फिर, अगर 2003 में मुंबई में हुए बम धमाकों के बाद के पैटर्न पर गौर करें तो साफ दिखता है कि बाजार तब मजबूती से तेजी की राह पर चल पड़ा था। आठ साल बाद वही पैटर्न एक बार फिर खुद को दोहरा सकता है। फिलहाल अपने पाठकों व निवेशकों को हमारी सलाह है कि सांसों को विचलित मत होने दीजिए। डेरिवेटिव्स में दांव लगाने के बजाय डिलीवरी आधारित सौदों से अपना पोर्टफोलियो मजबूत कीजिए। कमाई का पहला मौका अगले छह महीने में आ सकता है। बहुत संभव है कि सेंसेक्स तब तक 22,000 पर होगा। उसके बाद कम से कम दो साल तक बाजार पीछे मुड़कर नहीं देखेगा।
मेरा कहना है कि अभी ट्रेडिंग से छोटे समय की कमाई के चक्कर में न पड़ें। आपके पास जो है, उसे भी खोने से बचें। किसी भी हालत में बेचने से बचें। नई खरीद न सकें तो कम से कम जो है, उसे बचाकर रखें। बाजार में बहुत से स्टॉक्स हैं जो इस समय अपनी बुक वैल्यू व अंतर्निहित मूल्य से नीचे चल रहे हैं जो अपने-आप में निवेश का शानदार मौका पेश कर रहे हैं।