सार्वजनिक क्षेत्र की शीर्ष तेल उत्खनन कंपनी ओएनजीसी का एफपीओ (फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर) लगता है कि अगस्त में ही नहीं आ पाएगा। इसका लगभग 11,500 करोड़ रुपए का एफपीओ इस साल मार्च से पहले ही आना था। फिर कहा गया कि यह अप्रैल में आएगा। इसके बाद टाल कर जुलाई किया गया। और, अब कहा जा रहा है कि जून 2011 की तिमाही के नतीजों की घोषणा के बाद ही इस पर विचार किया जा सकता है।
इसमें दो दिक्कतें हैं। एक तो यह कि ओएनजीसी के निदेशक बोर्ड में अब भी आधे स्वतंत्र निदेशक नहीं हैं, जबकि सेबी के अनुसार एफपीओ लाने से पहले इस शर्त को पूरा करना जरूरी है। दूसरी दिक्कत यह है कि सरकार ने अभी तक यह तय नहीं किया है कि तेल मार्केटिंग कंपनियों – इंडियन ऑयल, एचपीसीएल और बीपीसीएल को दी जानेवाले सब्सिडी का कितना बोझ वह खुद उठाएगी और कितना अपस्ट्रीम कंपनियों – ओएनजीसी, ऑयल इंडिया और गैल इडिया को उठाना पड़ेगा। अभी तक सब्सिडी के बंटवारे की कोई पक्की व्यवस्था नहीं है और तिमाही-तिमाही आधार पर इसे तय किया जाता है।
तेल मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार ‘पूरी व्यवस्था तदर्थ तरीके से चल रही है और इसमें पारदर्शिता का अभाव है। निवेशकों के लिए यह व्यवस्था चिंता की बात है। इस पर स्पष्टता के अभाव में पूंजी बाजार में उतरना काफी मुश्किल काम होगा।’
बता दें कि सरकार ने विनिवेश कार्यक्रम के तहत पिछले साल ही सार्वजनिक क्षेत्र की इस महारत्न कंपनी में अपनी पांच फीसदी हिस्सेदारी बेचने का निर्णय किया था। लेकिन किसी न किसी वजह से यह काम टलता जा रहा है। एफपीओ के बाद ओएनजीसी में सरकार की हिस्सेदारी अभी के 74.14 फीसदी से घटकर 69.14 फीसदी रह जाएगी।