भगवान ने इंसान को बनाया या इंसान ने भगवान को – यह बात मैं दावे के साथ नहीं कह सकता। लेकिन इतना दावे के साथ जरूर कह सकता हूं कि दस के चक्र/क्रम में चलनेवाली गिनतियों को इंसान ने ही बनाया है। इंसान की दस उंगलियां है तो यह चक्र दस का है। उन्नीस होतीं तो यह चक्र उन्नीस का होता। ज्योतिष और अंकों में दिलचस्पी रखनेवाले इस पर सोचें। हम तो फिलहाल यह देखते हैं कि क्या शेयर बाजार मंदड़ियों के चंगुल से निकलकर तेजी के दौर में चला गया है? वैसे मंदड़िया शब्द बड़ा विचित्र लगता है। इससे मदारी की ध्वनि आती है। लेकिन क्या करें बियर और बुल को हम भालू और सांड तो कह नहीं सकते!!
खैर, बाजार मंदी या मदारियों के हलके से निकला है या नहीं, इसे परखने के तीन तराजू हैं। पहला यह कि इस दौर को चलते कितना वक्त हो चुका है। 5 नवंबर 2010 को 21,108.64 पर जाने के बाद से ही सेंसेक्स गिर रहा है। 11 फरवरी 2011 को वह 17,295.62 तक चला गया। तीन महीनों में 18.06 फीसदी का धक्का! इस साल की शुरुआत से भी सेंसेक्स का सिर झुका जा रहा है। 3 जनवरी को 20,561.05 पर था। पिछले कुछ दिनों से बढ़ने के बाद कल, शुक्रवार 8 जुलाई को 18,858.04 रहा है। छह महीनों में 8.28 फीसदी की गिरावट। क्या आठ महीने चली मंदी का यह दौर पर्याप्त नहीं है? 1998 में तो ऐसा दौर सात महीने चला था! लेकिन 2008-09 में तो 15 महीने खिंच गया था!!
मंदी का चक्र बीता है कि नहीं, कोई साफ नहीं बता सकता। जैसे ही बढ़त आती है, बिकवाली या मुनाफावसूली की लहर उसे बहा ले जाती है। बेचनेवाले ज्यादा और खरीदनेवाले कम। लेकिन यह संतुलन बदल रहा है। मंदड़िये भी अब थकते से दिख रहे हैं। रिटेल निवेशकों की वापसी की आहट मिल रही है। इसलिए पक्का तो नहीं, पर माना जा सकता है कि मंदी का चक्र अब खत्म हो रहा है, मंदड़ियों का वक्त अब जा रहा है। मंदड़ियों के कमजोर पड़ने और तेजड़ियों के मजबूत होने का दूसरा तराजू यह है कि क्या जितनी भी नकारात्मक हकीकत है, बाजार उसे जज्ब कर चुका है।
शिव ने गरल पी लिया। गले में रोक लिया है। भले ही इससे वे नीलकंठ हो गए हों, लेकिन इससे न तो उनकी सेहत पर कोई फर्क पड़ेगा और न ही संसार की गति पर। मुझे लगता है कि शेयर बाजार की मौजूदा स्थिति यही है। भ्रष्टाचार में जो होना था, सारा पतन सामने आ चुका है। अब पतित-पावन या सुधार का दौर चल पड़ा है – लोकपाल विधेयक से लेकर बिना मांगे दयानिधि मारन के इस्तीफे के रूप में। खाद्य मुद्रास्फीति कितनी भी बढ़ी, लेकिन एक तो वह हमेशा 2010 से कम ही रही और दूसरे अब नीचे आने लगी है। एचडीएफसी और इंडसबैंक जैसी कंपनियों की पहली तिमाही के अभी तक के फुटकर नतीजों का संकेत है कि कॉरपोरेट क्षेत्र का धंधा चौकस रहा है।
इसमें सबसे बड़ी बात है कि लाख हल्ले के बावजूद ब्याज दरों के बढ़ने का सिलसिला थमने जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक 26 जुलाई 2011 को मौद्रिक नीति की पहली त्रैमासिक समीक्षा में रिजर्व बैंक इस बार ब्याज दरों को जस का तस रहने देगा। सितंबर के बाद मुद्रास्फीति का ग्राफ नीचे आएगा तो ब्याज दरों का ठहरना या गिर जाना स्वाभाविक है। मुद्रास्फीति और ब्याज दरों पर लगाम लगते ही सरकार के कुशासन से जुड़े तमाम सवाल पृष्ठभूमि में चले जाएंगे और बाजार यकीनन तेजी की राह पकड़ सकता है।
तीसरा और अहम तराजू यह है कि क्या बाजार का मौजूदा मूल्य स्तर आकर्षक है या नहीं। बीएसई की गणना के मुताबिक उसका संवेदी सूचकांक सेंसेक्स कल 8 जुलाई को 19.96 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हुआ है। इसका मतलब यह हुआ कि सेंसेक्स की 30 कंपनियों का 2010-11 में औसत ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 945 रुपए है। जानकारों का आकलन है कि यह ईपीएस 2011-12 में 1150 रुपए रहेगा। उस हिसाब से सेंसेक्स अभी 16.39 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। भावी ईपीएस के आधार पर 15 के पी/ई अनुपात को सस्ता माना जाता है और सेंसेक्स 20 जुलाई 2011 को 17314.38 अंक पर 15.05 के पी/ई तक जा चुका है। मतलब, अब यहां से वापसी का सिलसिला शुरू हो चुका है और हम मंदड़ियों के चंगुल से निकलकर तेजड़ियों के हलके में प्रवेश कर चुके हैं।
फिर भी अपने बाजार में निवेशकों का जो संतुलन है – प्रवर्तकों से लेकर ऑपरेटरों, घरेलू निवेश संस्थाओं (डीआईआई), विदेशी निवेशक सस्थाओं (एफआईआई) और हमारे-आप जैसे फुटकर यानी रिटेल निवेशकों का, उनके बीच एफआईआई का पलड़ा काफी भारी है। उनका निवेश का मूड हो गया तो बाजार बढ़ेगा, नहीं तो सारी मजबूतियों, संभावनाओं और खूबियों के बावजूद ठंडक छाई रहेगी।
उनका रुख कैसे तय हो सकता है, इसके बारे में चलते-चलते एक तथ्य फेंक देना चाहता हूं। उभरते देशों के माथे पर दुनिया के कुल ऋण का 10 फीसदी बोझ है, जबकि वे दुनिया के जीडीपी या अर्थव्यवस्था में 40 फीसदी योगदान करते हैं। दूसरी तरफ अमेरिका, जापान, ब्रिटेन, फ्रांस व जर्मनी के ऊपर दुनिया का 70 फीसदी कर्ज है और विश्व अर्थव्यवस्था में उनका भी योगदान 40 फीसदी है। एफआईआई कर्ज के बोझ में दबे देशों को चुनेंगे, ऐसा मुमिकन नहीं। इसलिए भारत जैसे उभरते देशों में एफआईआई निवेश आना ही है। उनका निवेश आएगा तो सेंसेक्स भी बढ़ेगा और निफ्टी भी। और, इनके बढ़ने से मिड कैप व स्मॉल कैप कंपनियों के शेयर कहीं ज्यादा तेजी से उछलकूद मचाने लगते हैं।
anil ji jaise srushti ko tredev bramha ,vishnu, mahesh chalatey hai
thik waise he hindustan k share market key trimurti hai
—- company promoter , stock operator ( bull )
stock destroyer (bear) , jaise brahma ji is generator (duniya ko banaaney waaley )
so is promoter generator of wealth for share holder ,
vishnu ji operator of this universe so is bull’s operator of stock market
lord shiva (mahesh ) is destroyer of this mrutyuloka so is bear in stock market
this three promoter operator and bear has became god of stock market who decides the fate
of small investor !