देश में आ रहे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की दिशा बदलने लगी है। बीते वित्त वर्ष 2010-11 में देश में आया एफडीआई साल भर पहले से 25 फीसदी घट गया था। लेकिन चालू वित्त वर्ष 2011-12 के पहले दो महीनों में इसमें 77.25 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है।
सोमवार को सरकार की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल-मई 2011 में देश में आया एफडीआई 778.5 करोड़ डॉलर का रहा है, जबकि पिछले साल के इन्हीं दो महीनों में यह 439.2 करोड़ डॉलर था। खास बात यह है कि यह सारा निवेश पूंजी के रूप में आया है, ऋण के रूप में नहीं।
इसमें भी मई 2011 में देश में आए विदेशी पूंजी निवेश की रकम 466.4 करोड़ डॉलर है। यह मई 2010 में आए 221.3 करोड़ डॉलर के एफडीआई से 110.75 फीसदी ज्यादा है। यही नहीं, यह अप्रैल 2000 के बाद के पिछले 11 वित्तीय वर्षों में किसी भी महीने में आया दूसरा सबसे ज्यादा एफडीआई है। मई महीने में तो इतना एफडीआई 2000-01 के बाद से कभी नहीं आया था।
असल में आगे का रुझान भी एफडीआई के बढ़ते जाने का है। इसके पीछे कुछ खास करार हैं। जैसे, बीपी और रिलायंस में हुआ करार ही 700 करोड़ डॉलर से ज्यादा का है। इसी तरह वोडाफोन एस्सार की हिस्सेदारी खरीदने पर करीब 500 करोड़ डॉलर लगाएगी। पोस्को परियोजना और वेदांता समूह द्वारा केयर्न के अधिग्रहण को भी सरकार एफडीआई के अच्छे स्रोत के रूप में देखती है।
सरकार इधर विदेशी निवेश के लिए इतनी व्यग्र हो गई है कि वह विवादास्पद कदम भी चुपके से उठा ले रही है। जैसे, उसने बीज और पौध-सामग्रियों के विकास व उत्पादन में एफडीआई को अबाधित छूट दे दी है। पहले शर्त यह थी कि विदेशी कंपनियां ‘नियंत्रित परिस्थितियों’ में ही ऐसा निवेश कर सकती हैं। इसीलिए मोनसैंटो से लेकर कारगिल सीड्स जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियां प्रयोगशालाओं में बीज विकसित कर रही थीं। लेकिन अब उन पर ऐसी कोई बंदिश नहीं है।