आमतौर पर जीवन बीमा का फॉर्म हम खुद नहीं भरते। एजेंट निशान बनाकर देता है कि यहां-यहां आपको दस्तखत करने हैं और हम कर देते हैं। हम शर्तों को तो क्या, फॉर्म तक को ठीक से पढ़ने की जहमत नहीं उठाते। लेकिन यह कानूनन गलत है। कानून के मुताबिक जीवन बीमा का फॉर्म बीमाधारक की अपनी हैंडराइटिंग में भरा जाना जरूरी है। नहीं तो बीमा कंपनी इसी बात को आधार बनाकर उसका क्लेम खारिज कर सकती है। वैसे, गलत पॉलिसी मिल गई हो तो हम बिना किसी शुल्क के 15 दिन में उसे खारिज भी करवा सकते हैं।
2011-05-24
जहाँ तक मेरा अनुभव है, न सिर्फ़ फ़ॉर्म ही एजेण्ट भर रहे हैं, बल्कि हस्ताक्षर भी वही कर रहे हैं। अधिकांश फ़ॉर्म इस प्रकार भरे जा रहे हैं कि उनमें बहुत सी अति महत्वपूर्ण जानकारी या तो ग़ायब है या फिर ग़लत । पॉलिसी के अधिकांश लाभों, अधिकारों और शर्तों के बारे में धारक बिल्कुल अनजान है । सभी ऑप्शंस इस प्रकार भरे जाते हैं कि कम्पनी की ज़िम्मेदारियाँ कम से कम और अधिकार अधिक से अधिक हो जाते हैं । ऐसा इसलिए भी है कि एजेंटों की ट्रैनिंग भी इसी प्रकार से की गयी है, वे अपनी समझ में धारक को अधिकतम लाभ ही दिला रहे हैं । सेल्स टार्गेट के चक्कर में बीमा कम्पनियों के अधिकारी इस ओर से आँखें मूँदे हुए हैं और न ही इरडा (IRDA) अधिकारी ही इस पर ध्यान दे रहे हैं। आने वाले समय में इन पॉलिसियों के क्लेम थोक के भाव में मना होना तय है। उस समय पॉलिसीधारक को पकड़ने को अव्वल तो कोई मिलेगा नहीं, अगर मिला तो ठेंगा दिखा देगा।
तिस पर आदमी की लिखावट सालों के अरसे बाद अमूमन बदल जाती है।