95% अर्थव्यवस्था, वास्ता 1.5% का

महीने के शुरू में एनालिस्ट समुदाय में भारी कयासबाजी चल रही थी कि दिसंबर का महीना ऐतिहासिक रूप से तेजी लेकर आता है और इस बार 4 से 10 फीसदी तेजी आ सकती है। लेकिन महीना खत्म होने को है और अभी तक ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है।

आज समाचार एजेंसी ब्लूमबर्ग ने भी एक कयास भरी रिपोर्ट चलाई है कि जनवरी ऐतिहासिक रूप से बाजार के धसकने का महीना है और इस बार सेंसेक्स 10 फीसदी गिर सकता है। तर्क है कि इस दौरान विदेशी निवेशक अपना निवेश बाहर निकालेंगे। लेकिन ऐसा भी होने की कोई गुंजाइश नहीं दिख रही।

असल में बाजार का असाध्य रोग है – भेदभावपूर्ण बर्ताव और रिटेल निवेशकों को न्यूनतम तरजीह। हाल ही खबर आई है कि अब स्कूल स्तर पर ही बच्चों को नया अध्याय पढ़ाया जाएगा कि पैसा कैसे गंवाएं? क्या इतना काफी नहीं था कि केवल वयस्क लोग ही ट्रेडिंग कर रहे थे और सदमा लगने पर अस्पतालों में भर्ती हो रहे थे? क्या अब अस्पताओं में नौजवान मरीजों को डालने की तैयारी है?

खैर, सब सरकार का शिगूफा है। चलता रहता है। वैसे, गलत या सही, सत्ताधारी पार्टी को अण्णा हज़ारे के दबाव के चलते लोकपाल विधेयक संसद में लाने के लिए बाध्य होना पड़ा। मतलब यह कि सरकार चाह ले तो कुछ भी कर सकती है। लेकिन हमारी पूरी राजनीति ही भ्रष्टाचार की चासनी में रची-बसी है। सीएजी ने शरद पवार के खाद्य व उपभोक्ता मंत्री रहने के दौरान सरकारी खजाने को 1200 करोड़ रुपए का नुकसान होने का आरोप लगाया है। इतना संगीन आरोप उन्होंने क्यों लगाया? इसका आशय क्या है? है किसी को कोई अंदाज!

आप जरूर सोच रहे होंगे कि लोकपाल और बाजार में क्या रिश्ता है? अगर लोकपाल बिल लाने के लिए सरकार को बाध्य किया जा सकता है तो वाजिब मूल्य पर ‘बाल्को व हिंदुस्तान ज़िंक की बची हिस्सेदारी बेचकर’ 32,000 करोड़ रुपए जुटाने के लिए क्यों नहीं? शेयर बाजार में अपनी दौलत गंवाने के चलते इसमें दिलचस्पी खो रहे तमाम निवेशकों की तरफ से कुछ और दिलचस्प सवाल सवाल उछाले जा रहे हैं। जैसे, आवश्यक वस्तुओं की ट्रेडिंग पर बंदिश क्यों नहीं लगा दी जाती? अगर चीन गोल्ड एक्सचेंजों पर बंधन लगा सकता है तो हमने कमोडिटी, इक्विटी व करेंसी में अतिशय सट्टेबाजी से पूरी व्यवस्था को जोखिम में पड़ने से रोकने के उपाय क्यों नहीं किए हैं? अगर सरकार में राजनीतिक इच्छाशक्ति होती तो वह ट्रेडिंग को स्वस्थ बनाने के लिए तमाम अंकुश लगा सकती थी।

देश में साक्षरता का स्तर 75 फीसदी पर पहुंच चुका है। इसमें से माना जा सकता है कि 40 फीसदी आबादी कायदे से पढ़ी-लिखी और शिक्षित है, लेकिन इस तबके के लोग कभी वोट नहीं देते। बाकी 60 फीसदी लोग चुनावों में अपनी तात्कालिक जरूरत का तात्कालिक समाधान खोजते हैं। अलाव के इसी ढर्रे से हमारी राजनीति की मुख्यधारा तय होती है। वहीं, शेयर बाजार की बात करें तो यह नितांत अल्पमत का मसला है क्योंकि इससे केवल 1.5 फीसदी भारतीय ही जुड़े हैं, जबकि 95 फीसदी अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य का रिश्ता शेयर बाजार से जुड़ा है। इससे बनती है वह ‘वितरण व्यवस्था जिसमें 99 फीसदी दौलत पर 1 फीसदी आबादी का नियंत्रण’ चलता है। आपने अमेरिका के ऑक्यूपाई वॉल स्ट्रीट (OWS) आंदोलन के सिलसिले में 1 फीसदी बनाम 99 फीसदी का यह जुमला सुना ही होगा।

निफ्टी आज 4756.20 पर खुला और वही उसका दिन का उच्चतम स्तर भी रहा। गिरते-गिरते आखिर में वह 0.94 फीसदी की गिरावट के साथ 4705.80 पर बंद हुआ। कल डेरिवेटिव सौदों में सेटलमेंट का आखिरी दिन है। इसलिए अपनी सांसें थामकर रखिए क्योंकि जो गिर रहा है, वह और गिरेगा और जो बढ़ रहा है, वह और बढ़ जाएगा। कैश सेटलमेंट की व्यवस्था का यही निष्कर्ष और तजुर्बा है। वीआईपी इंडस्ट्रीज, वोल्टाज, जेपी एसोसिएट्स, डेल्टा, सेंचुरी, जेट एयरवेज व पैंटालून में से सारे के सारे कल धूल चाट रहे होंगे, जबकि आईएफसीआई, इनफोसिस व एसीसी अच्छी-खासी बढ़त लेकर बंद होंगे।

म्यूचुअल फंडों के एनएवी के खेल के चलते शुक्रवार को नए सेटलमेंट के पहले दिन फटाफट कुछ खरीद हो सकती है। एसीसी, इनफोसिस, आईटीसी, टीसीएस, हिंदुस्तान यूनिलीवर, हीरो मोटोकॉर्प व बजाज ऑटो ही कुछ स्टॉक्स हैं जिनमें एनएवी के खेल की गुंजाइश है।

जीवन के हर क्षेत्र में हमेशा श्रेष्ठतम बनने का अभ्यास करें। मुश्किल यह है कि कुछ लोग ऐसे माहौल के अभ्यस्त नहीं होते जहां श्रेष्ठता की अपेक्षा की जाती है।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं पड़ना चाहता। इसलिए अनाम है। वह अंदर की बातें आपके सामने रखता है। लेकिन उसमें बड़बोलापन हो सकता है। आपके निवेश फैसलों के लिए अर्थकाम किसी भी हाल में जिम्मेदार नहीं होगा। यह मूलत: सीएनआई रिसर्च का कॉलम है, जिसे हम यहां आपकी शिक्षा के लिए पेश कर रहे हैं)

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