वक्त की जरूरत है कि देश में वित्तीय सुधार लागू किए जाएं और निवेशकों के हितों की हिफाजत की जाए। इस समय हमारे शेयर बाजार में करीब 1600 कंपनियां सस्पेंड पड़ी हैं। लेकिन उनके खिलाफ सेबी या कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की गई है। इससे बेहद गलत संकेत जा रहा है। सच कहें तो यह काफी बड़ा घोटाला है। इन सस्पेंड कंपनियों में रिटेल निवेशकों के करीब 58,000 करोड़ रुपए फंसे हैं। लेकिन पूरा देश 2जी स्पेक्ट्रम में डूबे 20,000-40,000 करोड़ के सरकारी राजस्व, कर्ज के लिए कंपनियों की तरफ से दी गई कुछ करोड़ की रिश्वत और आदर्श सोसायटी के 100 करोड़ रुपए के घोटाले की बात कर रहा है, जबकि रिटेल निवेशकों के डूबे हजारों करोड़ पर कोई गौर नहीं कर रहा। ध्यान देने की बात यह है कि देश के जीडीपी में बचत का 35 फीसदी हिस्सा इन्हीं रिटेल या आम लोगों की तरफ से आता है। इसलिए इन्हें व्यापक प्रोत्साहन देने की जरूरत है।
पिरामिड साईमीरा के प्रवर्तक पी एस सामीनाथन को ओपन ऑफर लाने के सेबी के आदेश ने अचानक रिटेल निवेशकों को इसके शेयरों की तरफ दौड़ा दिया है क्योंकि ओपन ऑफर का मूल्य मौजूदा बाजार भाव का 15 से 20 गुना हो सकता है। लेकिन अगर ओपन ऑफर ही न आया तो…? सबसे ज्यादा चपत रिटेल निवेशकों को लगेगी। यह एक तरीके से अच्छे धन को बुरे धन में लगाने जैसा है। अगर पिरामिड साईमीरा के प्रवर्तकों ने अपने वादे को नहीं निभाया तो रिटेल निवेश के पास क्या उपाय होगा? अभी कुछ भी साफ नहीं है। सेबी को अपना आदेश जारी करने में दो साल लग गए। इस बीच पिरामिड साईमीरा के निवेशकों की पूंजी उड़ती रही। अगर ओपन ऑफर न आया तो रिटेल निवेशकों के धन में और सेंध लग सकती है।
इसलिए जरूरी है कि निवेशकों के हितों की रक्षा की जाए, उनका भरोसा बाजार में जमाया जाए। अगर सस्पेंड की गई 1600 कंपनियों को फिर से ढर्रे पर लाया जाए और उनमें फंसे आम निवेशकों के 58,000 करोड़ रुपए को मुक्त किया जाए तो मुझे पक्का यकीन है कि शेयर बाजार में आम निवेशकों की संख्या 2 फीसदी से बढ़कर कम से कम 5 फीसदी पर पहुंच जाएगा। इसका सबसे बड़ा फायदा भारत सरकार को अपनी कंपनियों के विनिवेश कार्यक्रम में मिलेगा। फिलहाल नए साल 2011 के लिए ‘क्या करें, क्या न करें’ के कुछ सूत्र आपके सामने पेश कर रहा हूं। मुलाहिजा फरमाइए।
- किसी भी सेक्टर की 30 से ज्यादा पी/ई अनुपात वाली लार्ज कैप कंपनियों से दूर रहें।
- रीयल्टी, इंफ्रास्ट्रक्चर, घरेलू खपत, सिविल एविएशन, रिटेल, चाय, फर्टिलाइजर और आईटी सेक्टर की 15 से कम पी/ई अनुपात वाली कंपनियों में निवेश करें।
- किसी भी सेक्टर की ऐसी मिड कैप व स्मॉल कैप कंपनियों से दूर रहें जिनका पी/ई अनुपात 20 से ज्यादा है।
- आईबी (खुफिया विभाग) की जांच के घेरे में आए सभी स्टॉक्स से बचें जिनमें प्रवर्तकों और ऑपरेटरों के दुष्चक्र का खुलासा हो चुका है।
- रीयल्टी, इंफ्रास्ट्रक्चर, घरेलू खपत, सिविल एविएशन, रिटेल, चाय, फर्टिलाइजर और छोटी आईटी कंपनियों, शिक्षा, इंटरनेट व सुरक्षा से जुड़े सेक्टर को ऐसी स्मॉल व मिड कैप कंपनियों में निवेश करें, जिनका पी/ई अनुपात 5 से 15 तक है।
- ऐसे मजबूत शेयरों को खरीदें जो विकास की राह पर बढ़ रहे हैं जिन्हें अर्थव्यवस्था से गति मिलती है और जिन पर ऑपरेटरों की सक्रियता या निष्क्रियता से कोई फर्क नहीं पड़ता।
आखिर में एक बार फिर हम आपको आश्वस्त कर दें कि भारतीय बाजार की दशा-दिशा दुरुस्त है। अगले वित्त वर्ष 2011-12 में कंपनियों के लाभ में 22 फीसदी बढ़त की उम्मीद है। अगर पी/ई अनुपात को 18 से 20 मानें तो सेंसेक्स को 23,000 से 26,000 अंक तक पहुंच जाना चाहिए। असल में नकदी के आगम और निवेश के पैटर्न के बदलने से भारतीय बाजार का पी/ई अनुपात बढ़ सकता है।
भारतीय बाजार के लिए ऐतिहासिक रूप से स्वीकृत पी/ई अनुपात 15 से 16 का रहा है। लेकिन अब यब बदल रहा है। भारत कोने में प़ड़े एक देश से महाशक्ति बनने की दिशा में अग्रसर है। यह दुनिया की अर्थव्यवस्था के विकास का एक इंजिन बन गया है। माना जाने लगा है कि यह यूरोप व अमेरिका की संकटग्रस्त अर्थव्यवस्थाओं तक का उद्धार कर सकता है। इसलिए भारतीय बाजार का मानक पी/ई अनुपात अब 16 से बढ़कर 20 हो जाएगा। बता दें कि अमेरिका में शेयर बाजार का पी/ई अनुपात 25 से ज्यादा है।