हमारा कंपनी अधिनियम किसी कंपनी मे स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति के बारे में कुछ नही कहता। लेकिन लिस्टिंग समझौते के अनुच्छेद-49 के अनुसार स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध हर कंपनी को अपने बोर्ड में स्वतंत्र निदेशकों को रखना जरूरी है। फिर भी स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध 130 कंपनियों ने इस नियम का पूरी तरह पालन नहीं किया है। इसमें से 83 कंपनियां बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) की हैं तो 47 कंपनियां नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) की। यह जानकारी आज खुद कॉरपोरेट मामलात मंत्री सलमान खुर्शीद ने लोकसभा में दी। उनका कहना था कि यह जानकारी उन्हें भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) से हासिल हुई है।
मंत्री महोदय ने यह तो नहीं बताया कि इन दोषी कंपनियों में से खुद सरकार की कंपनियां कितनी हैं। लेकिन सीएजी (नियंत्रक एवं महालेखाकार) की एक पुरानी रिपोर्ट के मुताबिक स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध 44 सरकारी कंपनियों में से 21 कंपनियों ने स्वतंत्र निदेशकों के निर्धारित मानक का पालन नहीं किया है। नौ सरकारी कंपनियों के बोर्ड में तो एक भी स्वतंत्र निदेशक नहीं हैं। इसके बाद एनएमडीसी और ऑयल इंडिया जैसी कुछ अन्य सरकारी कंपनियां भी स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध हुई हैं और इनमें से ज्यादातर ने इस नियम का पालन किया है। लेकिन स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (सेल) और भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स (बीएचईएल) जैसी पुरानी कंपनियों ने अब भी इस नियम को नजरअंदाज किया है।
बीएसई और प्राइम डाटाबेस की तरफ से निदेशकों पर अपनी तरह के पहले डाटाबेस के मुताबिक सेल के बोर्ड में कुल 11 निदेशक हैं, जिनमें से मात्र दो स्वतंत्र निदेशक हैं। यह डाटाबेस 5 मई 2010 तक अपडेट किया हुआ है। इसी तरह बीएचईएल के 19 सदस्यीय बोर्ड में से केवल चार स्वतंत्र निदेशक हैं। ऐसा तब हो रहा है जब केंद्र सरकार ने 25 मार्च 2010 से सार्वजनिक क्षेत्र के सभी 246 केंद्रीय उद्यमों (सीपीएसई) में कॉरपोरट गवर्नेंस के नियमों का पालन अनिवार्य कर दिया। यह नियम स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध और गैर सूचीबद्ध दोनों तरह की सरकारी कंपनियों के लिए बाध्यकारी हैं। नियम कहता है कि निदेशक बोर्ड में सदस्यों की संख्या 50 से ज्यादा नहीं होनी चाहिए और इसमें से कम से कम एक तिहाई सदस्य स्वतंत्र निदेशक होने चाहिए।
किसी भी पब्लिक लिमिटेड कंपनी के बारे में लिस्टिंग समझौते का अनुच्छेद कहता है कि उसके निदेशक बोर्ड में स्वतंत्र निदेशकों की संख्या कम से कम 50 फीसदी होनी चाहिए। लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों पर यह नियम लागू नहीं होता। यही वजह है कि एमएमटीसी 11 में पांच और हिंदुस्तान पेट्रोलियम 10 में से चार स्वतंत्र निदेशक रखकर काम कर रही हैं। दिक्कत यह भी है कि सूचीबद्ध होने के बावजूद सरकारी कंपनियों पर सेबी का वश नहीं चलता है। वह कंपनी प्रबंधन को पत्र लिखती है और कंपनी प्रबंधन संबंधित मंत्रालय को भेज देता है। फिर मामला ठंडा पड़ जाता है।
निजी कंपनियों की भी स्थिति कोई बेहतर नहीं है। उक्त डाटाबेस के मुताबिक हिंदुस्तान यूनिलीवर के बोर्ड में कुल 11 निदेशकों में से केवल 3 ही स्वतंत्र निदेशक हैं। इस मसले पर प्राइम डाटाबेस के सीईओ का सुझाव है कि अनुच्छेद-49 के उल्लंघन पर कंपनियों को सजा दी जानी चाहिए। स्टॉक एक्सचेंज की वेबसाइट पर नाम डाल देना कोई सजा नहीं है। डीलिस्टिंग भी कोई सही उपाय नहीं है क्योंकि इससे आम शेयरधारकों का नुकसान होता है। बल्कि इससे तो कंपनियां खुद को डीलिस्ट कराने के लिए यह तरीका अपनाने लगेंगी। इसे लागू करने का इकलौता कारगर उपाय यही है कि कंपनियों के प्रवर्तकों व प्रबंधन पर भारी जुर्माना लगाया जाए।