सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि ग्रामीण इलाकों में रोजगार के अवसर पैदा करनेवाली सरकार की महत्वाकांक्षी योजना नरेगा में धन के वितरण की कोई समान नीति नहीं है। बुधवार को एक मामले की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस के जी बालाकृष्णन की अध्यक्षता में बनी तीन सदस्यीय खंडपीठ ने कहा कि इस योजना में भारी-भरकम रकम डाली गई है। लेकिन यह रकम या तो सही लाभार्थियों तक न पहुंचकर गलत हाथों में चली जाती है या खर्च न हो पाने के कारण वह बेकार पड़ी रहती है। इस पर स्पष्ट नीति बनाने की जरूरत है।
इस मामले में खंडपीठ ने राज्यों से कहा है कि वे अपने जवाब चार हफ्तों में जमा करा दें। उसका कहना है कि महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी एक्ट के तहत गांवों के लिए पैसा बनाया जाना चाहिए। नियम एकदम सीधा-साधा है कि आप इसकी परियोजना में मजदूरी करते हो जिसके एवज में आपको पैसा मिलता है। इसलिए सच्चे लाभार्थियों को फायदा मिलना चाहिए, न कि गलत लोगों को।
कोर्ट ने गौर किया कि कैसे क्षतिपूरक वनारोपण फंड मैनेजमेंट अथॉरिटी (सीएएएफएमए) का पैसा गांवों को उनके विकास के लिए दिया जा रहा है। लेकिन जमीनी स्तर पर कोई विकास नहीं हो रहा। इसे दुरुस्त किया जाना चाहिए। खंडपीठ में शामिल एक जज के अनुसार चीफ जस्टिस बालाकृष्णन नरेगा में दिलचस्पी ले रहे हैं। इसको लेकर वे खुद देश भर में जगह सेमिनार भी करवा रहे हैं।