पिछले महीने पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी की तरफ से यूलिप (यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस पॉलिसी) पर कसे गए शिकंजे ने लगता है हमारी बीमा नियामक संस्था, आईआरडीए (इरडा) को झकझोर कर रख दिया है। अब वह एक-एक कर ऐसे कदम उठा रही है जो सेबी की तरफ से उठाए गए एतराज का जवाब लगते हैं। इरडा ने यूलिप उत्पादों व कालातीत या लैप्स हो चुकी पॉलिसियों को लेकर नया रेगुलेशन लाने की पेशकश की है। इसमें खास प्रस्ताव यह है कि अगर पॉलिसीधारक ने किसी वजह से यूलिप में प्रीमियम नहीं भरा है और वह लैप्स हो गई है तो वह उसे दोबारा केवल रिस्क कवर वाली पॉलिसी के रूप में जारी रख सकता है।
गौरतलब है कि सेबी की खास आलोचना यही थी कि यूलिप उत्पादों में प्रीमियम का केवल 2 फीसदी हिस्सा ही रिस्क कवर में जाता है और बाकी 98 फीसदी हिस्सा म्यूचुअल फंडों की तरफ निवेश किया जाता है। इस तरह की भी रिपोर्टें आ चुकी हैं तमाम पॉलिसीधारक एक दो साल के बाद भारी शुल्कों से तंग आकर यूलिप का प्रीमियम ही भरना बंद कर देते हैं। इरडा ने अपने नए प्रस्ताव ने इन्हीं बातों का समाधान निकालने की कोशिश की है।
उसने पांच पन्नों का एक प्रारूप जारी किया है जिस पर बीमा कंपनियों सहित अन्य पक्षों से 27 मई तक प्रतिक्रिया मांगी गई है। इसके बाद इरडा की बीमा सलाहकार समिति और बोर्ड इन प्रस्तावों को अंतिम रूप दे देगा। इरडा का कहना है कि ज्यादातर जीवन बीमा कंपनियां यूं तो यूलिप के संचालन में अंतरराष्ट्रीय स्तर का पालन करती रही हैं। लेकिन पॉलिसी के रिवाइवल, लैप्सेशन व सरेंडर के बारे में अलग-अलग तरीके अपनाए जाते रहे हैं। इसलिए इन सभी के लिए अब समान मानक बनाने की कोशिश की जा रही है।
इसके तहत प्रस्ताव है कि अगर 10 साल से कम अवधि की यूलिप को कोई पहले साल ही सरेंडर करता है तो उससे फंड वैल्यू का अधिकतम 12.5 फीसदी, दूसरे साल 10 फीसदी, तीसरे साल 7.5 फीसदी, चौथे साल 5 फीसदी और पांचवें साल 2.5 फीसदी शुल्क काटा जाएगा। इसके बाद कोई सरेंडर शुल्क नहीं होगा। 10 साल से अधिक की यूलिप पर सरेंडर शुल्क पहले छह सालों के दौरान क्रमशः 15, 12.5, 10, 7.5, 5 और 2.5 फीसदी रहेगा। ध्यान रहे कि यह सरेंडर शुल्क की अधिकतम सीमा है।
पॉलिसीधारक को पांच साल के भीतर लैप्स यूलिप को रिवाइव करने का मौका दिया जाना चाहिए। लेकिन बीमा कंपनी चाहे तो नैतिक या मेडिकल आधार पर पॉलिसी को रिवाइव करने से मना भी कर सकती है। रिवाइव करने पर पॉलिसीधारक को सारा बकाया प्रीमियम ब्याज व पेनाल्टी समेत देना पड़ेगा। लेकिन नई बात यह है कि पॉलिसीधारक को विकल्प दिया गया है कि वह चाहे तो यूलिप का केवल बीमा कवर वाला हिस्सा जारी रख सकता है। इसके बाद बची फंड वैल्यू पर उसे कम से कम बचत खाते की ब्याज दर यानी 3.5 फीसदी ब्याज दिया जाएगा।
बीमा कंपनी इस तरह लैप्स हो गई पॉलिसियों की जमा रकम शेयरधारकों के खाते में नहीं रख सकती। उसे यह राशि तय समय के भीतर ब्याज समेत पॉलिसीधारक को लौटा देनी होगी। यह भी शायद पहली बार होगा क्योंकि अभी तक तो लैप्स पॉलिसियों के ज्यादातर मामलों में जमा प्रीमियम जब्त ही कर लिया जाता रहा है। बता दें कि यूलिप का धंधा जीवन बीमा कंपनियों के लिए काफी अहमियत रखता है। 2009-10 में बीमा व्यवसाय में यूलिप का हिस्सा 50.95 फीसदी से बढ़कर 54.80 फीसदी हो गया है। इस दौरान यूलिप की वृद्धि दर 35.33 फीसदी रही है, जबकि पूरे जीवन बीमा व्यवसाय की वृद्धि दर 25.83 फीसदी है। पहले साल के प्रीमियम की बात करें तो 2008-09 में यूलिप से मिला प्रीमियम 44,332.40 करोड़ रुपए था जो 2009-10 में बढ़कर 59,996.46 करोड़ रुपए हो गया।