देश में म्यूचुअल फंडों के निवेशकों की संख्या 4.33 करोड़ है जिनमें से 4.20 करोड़ (96.86 फीसदी) आम निवेशक है, जबकि कॉरपोरेट व संस्थागत निवेशकों की संख्या महज 5.02 लाख (1.16 फीसदी) है। लेकिन म्यूचुअल फंडों की शुद्ध आस्तियों में से 56.55 फीसदी पर कॉरपोरेट व संस्थागत निवेशकों का कब्जा है, जबकि इतनी भारी तादाद के बावजूद इसमें आम निवेशकों की हिस्सेदारी महज 36.93 फीसदी है। वह भी तब, जब संस्थागत निवेशकों में अनिवासी भारतीय और विदेशी फंड (एफआईआई) शामिल नहीं हैं। यह तथ्य पूंजी बाजार की नियामक संस्था सेबी ने मार्च 2008 तक के आंकड़ों के आधार पर पेश किया है।
लेकिन 31 मार्च 2009 तक के सेबी के आंकड़ों से निकला तथ्य और भी चौंकानेवाला है। यह तथ्य है म्यूचुअल फंडों की ऋण और इक्विटी स्कीमों में भारी अंतर का। वित्त वर्ष 2008-09 में अप्रैल से मार्च सभी म्यूचुअल फंडों ने 599 ऋण प्रपत्र आधारित स्कीमों से 53.84 लाख करोड़ रुपए जुटाए। इसी दौरान उन्होंने 340 इक्विटी आधारित स्कीमों से ३२८०५ करोड़ रुपए और 35 बैलेंस फंड (मोटे तौर पर आधा ऋण और आधा इक्विटी) आधारित स्कीमों से 2695 करोड़ रुपए जुटाए। इस तरह इक्विटी और बैलेंस फंड से जुटाई गई कुल राशि 35,500 करोड़ रुपए रही है। यह राशि ऋण स्कीमों से जुटाई गई रकम की महज 0.66 फीसदी है।
म्यूचुअल फंड उद्योग के एक विश्लेषक ने अपनी पहचान न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि इस आंकड़े पर गौर करने की जरूरत है क्योंकि देश के आम निवेशक इक्विटी या ज्यादा से ज्यादा बैलेंस फंड में निवेश करते हैं, जबकि ऋण आधारित फंडों में तकरीबन सारा निवेश कॉरपोरेट या संस्थागत निवेशक करते हैं। जाहिर है कि म्यूचुअल फंड उद्योग के 96.86 फीसदी आम निवेशक जोखिम भरे प्रपत्रों में डुबकी खा रहे हैं, जबकि 1.16 फीसदी बड़े निवेशक ऋण प्रपत्रों से सुरक्षित कमाई कर रहे हैं। उद्योग के जानकार ने बताया कि म्यूचुअल फंडों को 99 फीसदी से ज्यादा निवेश ऐसे ही बड़े ग्राहकों से मिल रहा है, इसलिए वे उन्हीं का ध्यान रखते हैं और आम निवेशकों को महज विज्ञापनों से सब्जबाग दिखाते रहते हैं।
ऐसा तब हो रहा है, जब म्यूचुअल फंडों को सबसे ज्यादा विमोचन का बोझ ऋण स्कीमों में ही उठाना पड़ा है। अप्रैल 2008 से मार्च 2009 के बीच इन स्कीमों से करीब 5.42 लाख करोड़ रुपए निकाले गए हैं। इस तरह इन स्कीमों से शुद्ध निकासी 32,161 करोड़ रुपए की रही है। दूसरी तरफ इक्विटी व बैलेंस फंड में निकासी के बजाय शुद्ध निवेश 4085 करोड़ रुपए का रहा। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो आम निवेशक जहां म्यूचुअल फंड की आस्तियां बढ़ा रहे हैं, वहीं कॉरपोरेट निवेश महज अपने फायदे के लिए इनका इस्तेमाल कर रहे हैं।
उद्योग के जानकार का कहना है कि कॉरपोरेट क्षेत्र इसलिए भी म्यूचुअल फंडों की ऋण स्कीमों में निवेश करता है क्योंकि उसे इस पर टैक्स छूट मिलती है, जबकि यही धन बैंक की एफडी में रखने पर उसे टैक्स देना पड़ता है। अगर सरकार टैक्स की यह छूट खत्म कर दे, तब म्यूचुअल फंडों पर कंपनियों का आधिपत्य खत्म किया जा सकता है और उन्हें सही मायनों में आम निवेशकों का निवेश माध्यम बनाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि सेबी इस हकीकत से भलीभांति वाकिफ है।