रेल मंत्री ममता बनर्जी ने अपने बजट भाषण में ज़ोर देकर कहा कि हम रेलों का निजीकरण नहीं करने जा रहे हैं और यह एक सरकारी संगठन बना रहेगा। लेकिन पब्लिक, प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) पर बनी रेलवे की समिति के अध्यक्ष अमित मित्रा के नेतृत्ववाले उद्योग संगठन फिक्की का कहना है, “रेल बजट का मुख्य ज़ोर रेलों को निजी क्षेत्र के लिए खोलने पर है ताकि विकास को तेज किया जा सके और अर्थव्यवस्था के 9-10 फीसदी विकास के महत्वाकांक्षी लक्ष्य के साथ कदम मिलाकर चला जा सके।” यह बयान जारी किया गया है कि फिक्की के अध्यक्ष हर्षपति सिंहानिया की तरफ से। अमित मित्रा फिक्की के सेक्रेटरी जनरल हैं और निजी क्षेत्र के प्रतिनिधियों को ममता बनर्जी से मिलवाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। वे कोलकाता और दिल्ली में उद्योगपतियों के साथ ममता बनर्जी की कई बैठकें करा चुके हैं।
असल में ममता के नेतृत्व में भारतीय रेल का साल 2020 जो विजन दस्तावेज दिसंबर 2009 में तैयार किया गया है, उसके अनुरूप निवेश के लिए तब करीब 14 लाख करोड़ रुपए की जरूरत होगी। इस जरूरत को पूरा करने के लिए निजी क्षेत्र के सहयोग से बचा नहीं जा सकता। इसलिए रेल मंत्री पीपीपी के बहाने उद्योगपतियों को लुभा रही हैं। इसी की एक कड़ी है कि उऩ्होंने अपने भाषण में ऐलान किया है कि परियोजनाओं की द्रुत मंजूरी के लिए 100 दिन के भीतर विशेष टास्क फोर्स गठित किया जाएगा।
ममता रेल परिवार को भले ही भावुक आश्वासन दे रही हों कि रेलों का निजीकरण नहीं किया जाएगा, लेकिन निजी क्षेत्र बखूबी जानता है कि ऐसा कहना दीदी की राजनीतिक मजबूरी है। इसलिए वह उनके शब्दों पर नहीं, कर्मों पर जा रहा है। फिक्की अध्यक्ष सिंहानिया ने टास्क फोर्स के प्रस्ताव का मर्म समझा है और उसका स्वागत किया है। उनका कहना है कि इससे प्रशासनिक व नौकरशाही रुकावटें दूर हो जाएंगी। ममता बनर्जी ने नए वित्त वर्ष 2010-11 के लिए आयोजना खर्च 41,426 करोड़ रुपए रखा है जो अब तक का सबसे बड़ा व्यय है। अगर इस साल 1000 किलोमीटर की नई रेल लाइन जोड़ी जाएगी तो सोचिए स्टील कंपनियों को कितने बड़े व नए ठेके मिलेंगे।
मंत्री महोदया ने मालभाड़ा नहीं बढ़ाया है तो इससे थोक मूल्य पर आधारित मुद्रास्फीति को रोकने में मदद मिलेगी जिसका फायदा उद्योग क्षेत्र को लागत घटाने के रूप में मिलेगा। उन्होंने फल और सब्जियों जैसे कृषि उत्पादों के लिए अधिक रेफ्रिजरेटेड वैगन चलाने का प्रस्ताव रखा है। फिक्की का मानना है कि इससे फसल के बाद कृषि उत्पादों की भारी बरबादी को रोका जा सकेगा। यानी, किसान के हाथ से फसल निकल जाने के बाद वह बरबाद न होने पाए, रेल मंत्री ने इसका ध्यान रखा है। अच्छी बात है।
ममता जी ने लगे हाथों बंगाल के आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए इतने प्रस्ताव रखे हैं कि बीजेपी नेता अनंत कुमार रेल बजट के बारे में कह रहे हैं कि बजट में सब कुछ बंगाल, बाक़ी सब कंगाल। बीजेपी सांसद और पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी नवजोत सिंह सिद्धू के मुताबिक यह बजट प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप (पीपीपी) का बजट है, देश का नहीं।
ममता बनर्जी के करीब अमित मित्रा का उद्योग संगठन फिक्की भी मानता है कि “नई लाइनों के विकास, रोलिंग स्टॉक के निर्माण, बंदरगाहों से जुड़ाव, खानों से जुड़ाव और मल्टी लेयर पार्किंग सुविधाओं जैसे कामों में निजी विशेषज्ञता व संसाधनों को आमंत्रित करने का फैसला रेल प्रणाली के आधुनिकीकरण के लिए अहम है। इन परियोजनाओं पर पीपीपी मॉंडल के तहत अमल रेल सेवाओं को सुधारने में मददगार साबित होगा।” यानी फिक्की ममता के शब्दों के मर्म को अच्छी तरह समझता है। आखिर जनता और उद्योग संगठन में यही तो फर्क है कि एक भावना में बहता है तो दूसरा सार को गहता है और भावनाओं जैसी थोथी बातों को उड़ा देता है।