पूंजी बाजार की नियामक संस्था सेबी और बीमा क्षेत्र की नियामक संस्था आईआरडीए में अपने हलके को लेकर तलवारें खिंच चुकी हैं। अभी तक आईआरडीए को यकीन था कि जीवन बीमा कंपनियों की तरफ से जारी बीमा कवर व निवेश पर फायदे का लाभ देनेवाले यूलिप (यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान) पर केवल उसी का नियंत्रण चलेगा। लेकिन शुक्रवार को देर शाम सेबी ने आदेश सुना दिया कि कोई भी बीमा कंपनी बिना उससे रजिस्ट्रेशन लिए न तो नए यूलिप जारी कर सकती है न ही पुराने यूलिप में नए सब्सक्रिप्शन ले सकती है क्योंकि इनका बड़ा हिस्सा म्यूचुअल फंडों की तरह पूंजी व ऋण बाजार में निवेश का होता है। इसके बाद सुबह होते-होते जीवन बीमा कंपनियों और उनकी संरक्षक संस्था, आईआरडीए में खलबली मच गई है। बीमा कंपनियां अपने साझा मंच लाइफ इश्योरेंस काउंसिल के तहत कल सोमवार को खास बैठक करनेवाली हैं। सूत्रों के मुताबिक यह बैठक मुंबई या दिल्ली में हो सकती है और इसके बाद उनके प्रतिनिधि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी से भी मिल सकते हैं।
सेबी ने अपना आदेश सेबी एक्ट 1992 के अनुच्छेद 11, 11(बी), 12(1बी) और 19 के तहत सुनाया तो आईआरडीए ने इश्योरेंस एक्ट 1938 के अनुच्छेद 34(1)(ए) व (बी) के तहत मिले अधिकारों का हवाला देते हुए कहा कि बीमा कंपनियों को सेबी के आदेश की कोई परवाह करने की जरूरत नहीं है और वे पहले की तरह यूलिप उत्पादों का प्रचार-प्रसार व बिक्री जारी रख सकती हैं। यह कदम आईआरडीए के चेयरमैन जे हरिनारायण ने संस्था की सलाहकार समिति के साथ बैठक करने के बाद उठाया। इससे पहले एक बयान जारी कर यूलिप स्कीमों के पॉलिसीधारकों को आश्वस्त किया है कि ये पॉलिसियों पूरी तरह सुरक्षित हैं और सेबी के हाल के आदेश से उपजे मसले से कानूनी तरीके से उपयुक्त फोरम पर जल्द से जल्द निपटा जाएगा।
इस विवाद पर तनी तलवारों देखकर हमारी-आपकी बिसात ही क्या, बीमा कंपनियां तक दिगभ्रमित हो गई हैं कि सही कौन है। अटकलें लगाई जा रही है कि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी खुद हस्तक्षेप करके इस मसले को शांत करेंगे। बता दें कि वित्तीय क्षेत्र के नियामकों (रिजर्व बैंक, सेबी, आईआरडीए और पीएफआरडीए) को मिलाकर एक उच्चस्तरीय को-ऑर्डिनेशन कमिटी (एचएलसीसी) बनी हुई है जिसकी बैठकों में वित्त सचिव भी हिस्सा लेते हैं। नियामकों के आपसी विवाद इसी कमिटी की बैठकों में हल किए जाते हैं। इसके अलावा वित्त मंत्री ने इस साल के बजट में फाइनेंशियल स्टैबिलिटी एंड डेवलपमेंट काउंसिल (एफएसडीसी) के गठन की घोषणा की है। कहा जा रहा है कि यूलिप पर नियंत्रण का मसला एफएसडीसी में भी ले जाया जा सकता है। लेकिन खुद वित्त मंत्री स्पष्ट कर चुके हैं कि यह परिषद कोई सुपर-रेगुलेटर नहीं है। वैसे अभी तक यह परिषद बनी भी नहीं है। वित्त सचिव अशोक चावला पहले ही कह चुके हैं कि इस विवाद को सेबी और आईआरडीए को आपस में मिल-बैठकर हल करना है।
इसलिए यूलिप पर सेबी और आईआरडीए का झगड़ा कैसे और किस मंच पर हल होगा, यह अभी तक साफ नहीं है। आईआरडीए चेयरमैन जे हरिनारायण ने यकीनन सेबी के आदेश को कानूनी चुनौती देने का इशारा कर दिया है। इसलिए हो सकता है कि जब तक मध्यस्थता चल रही हो, तब तक आईआरडीए सुप्रीम कोर्ट से सेबी के आदेश पर स्टे ले आए। ध्यान देने की बात है कि सेबी ने पहला नोटिस 14 दिसंबर 2009 को जारी किया था और अंतिम आदेश उसने 9 अप्रैल 2010 को सुनाया है। इसी से साफ है कि आईआरडीए एक्ट 1999, इंश्योरेंस एक्ट 1938 और सेबी एक्ट 1992 के सारे कानूनी नुक्तों की जांच-परख और पूरे होमवर्क के बाद उसने अपना आदेश सुनाया है। इसलिए आईआरडीए के लिए इस आदेश को कानूनी तौर पर काटना काफी मुश्किल होगा।
यही वजह है कि वह करोड़ों पॉलिसीधारकों के हितों जैसे भावनात्मक तर्क दे रहा है। आईआरडीए चेयरमैन के मुताबिक वित्त वर्ष 2008-09 के अंत तक देश में कुल यूलिप पॉलिसियों की संख्या 7.03 करोड़ थी जिनमें कुल 90,645 करोड़ रुपए का प्रीमियम जमा था। इसके बाद 1 अप्रैल 2009 से 28 फरवरी 2010 के बीच 16.7 लाख नई यूलिप बेची गई हैं और उनसे 44,611 करोड़ रुपए का प्रीमियम जुटाया गया। इस तरह फरवरी 2010 तक कुल करीब 7.20 करोड़ यूलिप पॉलिसियों में 1,35,256 करोड़ रुपए की प्रीमियम जमा है। जिन 14 जीवन बीमा कंपनियों को सेबी ने नोटिस दिया है उनकी इक्विटी पूंजी 16,281 करोड़ रुपए की है।
आईआरडीए का कहना है कि सेबी के आदेश से जहां इन पॉलिसियों का रिन्यूवल रुक जाएगा और समय पहले ही इनको सरेंडर करने से करोड़ों पॉलिसीधारकों को नुकसान पहुंचेगा, वहीं प्रीमियम न आने से बीमा कंपनियां का धंधा चौपट हो जाएगा। बता दें कि इस समय बीमा कंपनियों का 85 फीसदी धंधा यूलिप पॉलिसियों से आता है। वे कितनी तेजी से इन्हें बेच रही हैं, यह बात इसी से साफ हो जाती है कि 2009-10 में फऱवरी तक के 11 महीनों में ही उन्होंने अब तक यूलिप पॉलिसियों से कुल प्रीमियम का तकरीबन एक तिहाई हिस्सा जुटाया है।