कुल विदेशी निवेश में एफडीआई का हिस्सा 30.04 फीसदी है तो पोर्टफोलियो निवेश है 20.45 फीसदी। देश में दीर्घकालिक निवेश के लिए आ रही है ज्यादा पूंजी और घट रहा है हॉट मनी का हिस्सा। देश में हो रहे कुल विदेशी निवेश में प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) का हिस्सा पिछले एक साल से बढ़ रहा है और अब यह पोर्टफोलियो निवेश से ज्यादा हो गया है। भारत के अंतरराष्ट्रीय निवेश पर जारी रिजर्व बैंक की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक मार्च 2009 के अंत तक देश में कुल विदेशी निवेश 415.32 अरब डॉलर का था, जिसमें 124.76 अरब रुपए एफीडीआई के रूप में और 84.92 अरब डॉलर पोर्टफोलियो निवेश के रूप में आए थे। इस 84.92 अरब डॉलर के पोर्टफोलियो निवेश में भी 64.77 अरब डॉलर इक्विटी में और 20.15 अरब डॉलर ऋण प्रपपत्रों में लगाए गए थे।
गौरतलब है कि राजनीति हलकों में अभी तक विदेशी निवेश की आलोचना इस बात को लेकर होती रही है कि विदेशी पूंजी यहां बहुत थोड़े समय के लिए मुनाफा कमाने के लिए आती है। देश में उसके निवेश का दीर्घकालिक लक्ष्य नहीं है। लेकिन रिजर्व बैंक की ताजा रिपोर्ट ने इस धारणा को फिलहाल गलत साबित कर दिया है। बता दें कि पोर्टफोलियो निवेश शेयर या बांड बाजार में आता है, जबकि एफडीआई दीर्घकालिक उद्देश्य से सीधे कंपनियों या परियोजनाओं में लगाया जाता है।
रिजर्व बैंक के मुताबिक देश में विदेशी निवेश में बदलाव का ताजा रुझान जून 2008 से शुरू हुआ है। इससे पहले तक कुल विदेशी निवेश में एफडीआई का हिस्सा हमेशा पोर्टफोलियो निवेश से कम रहता था। मार्च 2007 में एफडीआई 24.95 फीसदी था तो पोर्टफोलियो निवेश 25.73 फीसदी था। मार्च 2008 में यह अनुपात 26.98 : 27.40 का हो गया है। लेकिन जून 2008 से यह मामला उलट गया और देश में हुए कुल विदेशी निवेश में एफडीआई का हिस्सा बढक़र 28.34 फीसदी और पोर्टफोलियो निवेश का हिस्सा घटकर 25.17 फीसदी पर आ गया। उसके बाद से ही यह रुझान मजबूत होता जा रहा है। सितंबर 2008 में यह अनुपात 28.71 : 24.16 और दिसंबर 2008 में 29.23 : 22.22 का हो गया। अब मार्च 2009 तक यह बढ़ते-बढ़ते 30.04 : 20.45 पर पहुंच गया है।
एचडीएफसी बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री अभीक बरुआ कहते हैं कि यह रुझान साफ करता है कि हमारे विदेशी मुद्रा रिजर्व की क्वालिटी बढ़ रही है। अब देश में ज्यादा विदेशी निवेश दीर्घकालिक पूंजी के रूप में हो रहा है और जिसे हम हॉट मनी कहते रहे हैं, वैसा पोर्टफोलियो निवेश घट रहा है। इससे वह सोच दूर हो जानी चाहिए कि विदेशी पूंजी देश में केवल रातोंरात कमाई करने के लिए आती है और संकट आने पर बोरिया-बिस्तर समेट कर यहां से उडऩ-छू हो जाएगी।
वैसे, रिजर्व बैंक के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि विदेशी निवेश का 49.51 फीसदी यानी लगभग आधा हिस्सा अब भी अन्य निवेश के रूप में आता है और पिछले दो सालों से यह कमोवेश इसी स्तर पर बना हुआ है। अन्य निवेश में व्यापार क्रेडिट, कर्ज, करेंसी व डिपॉजिट और अन्य देयताएं शामिल हैं। मार्च 2009 तक देश द्वारा विदेश में किया गया कुल निवेश 349.98 अरब डॉलर का था, जबकि देश में आया विदेशी निवेश 415.32 अरब डॉलर का था। इस तरह देश की विदेशी देयता 65.34 अरब डॉलर की थी। मार्च 2009 तक देश पर कुल विदेशी ऋण 229.9 अरब डॉलर का था, जबकि हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 251.9 अरब डॉलर का था जो विदेशी ऋण से पूरे 22 अरब डॉलर ज्यादा था।