शेयरों की टिप्स, एनालिस्ट और बिजनेस चैनल

सोमवार से लेकर शुक्रवार तक यह सिलसिला चलता है। 8 बजे सुबह से ‘राइट-टाइम’ शुरू हो जाता है और शाम को 3.30 बजे बाजार बंद होने तक चलता रहा है। हिंदी-अंग्रेजी के बिजनेस चैनलों पर तथाकथित एनालिस्ट डट जाते हैं। इस अंदाज में बोलते हैं जैसे सारा बजार उन्हीं की उंगलियों के इशारे पर चलता है, एकदम ज्योतिषी की तरह। खरीद, बिक्री और स्टॉप लॉस। इसे खरीदो, इसे बेचो और इतने पर स्टॉप लॉस लगा दो। लग गया तो तीर नहीं तो तुक्का। गिरते हुए बाजार में भी बहुत से शेयर बढ़ते हैं। जैसे, शुक्रवार को बीएसई सेंसेक्स 271 अंक (1.57 फीसदी) की गिरावट आई। लेकिन एक्सचेंज में जिन 2962 शेयरों में ट्रेडिंग हुई उनमें से 844 बढ़े, 2019 गिरे और 99 के भाव जस के तस रहे। इसी तरह एनएसई में 85.40 अंक 91.65 फीसदी) की गिरावट आई। लेकिन जिन 1374 शेयरों में ट्रेडिंग हुई उनमें से 269 बढ़े, 1068 गिरे और 37 के भाव स्थिर रहे।

जब इतनी गिरावट के बावजूद 800 से ज्यादा शेयरों में बढ़त दर्ज की जा रही हो जिसमें बी, एस, टी, टीएस या जेड ग्रुप के ही नहीं, एक ग्रुप के शेयर भी शामिल हों, तो सोचिए टिप्स देनेवालों का काम कितना आसान है। कहीं से कोई-सा चुन लो। शेयर या तो बढ़ेंगे या घटेंगे या स्थिर रहेंगे। बढ़ गए तो आपके ज्ञान की दाद दी जाएगी। घट गए तो बाजार के बहुत सारे कारक जिम्मेदार होंगे। ठहरे रहे तो कोई बात नहीं। लोगबाग इस पर जोर नहीं देते कि गहराई से उद्योग व कंपनी का अध्ययन कर निवेश का फैसला किया जाए। बल्कि वे टिप्स के शॉर्ट कट के चक्कर में पड़े रहते हैं।

उनकी मानसिकता को भुनाने के लिए अब इसी तरह की टिप्स तमाम वेबसाइट व पोर्टल भी देने लगे हैं। खरीदो, बेचो, स्टॉप लॉस। अब तो एसएमएस से भी ऐसी ‘जबरदस्त’ टिप्स मिलने लगी हैं। पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी इसी साल फरवरी महीने में ऐसी टिप्स के बारे में निवेशकों को आगाह कर चुकी है कि इन सबका कोई वैज्ञानिक व ठोस आधार नहीं है। इसलिए इनमें फंस कर निवेशक खुद को अनावश्यक जोखिम में डाल रहे हैं। लेकिन सेबी के पास इन्हें रोकने का कोई जरिया नहीं है क्योंकि यह सुबह से लेकर शाम तक चलनेवाला धंधा है।

टिप्स देनेवाले बस टिप्स देते हैं। यह नहीं बताते कि यह कंपनी कैसी है, उसके प्रवर्तक कैसे हैं, कंपनी धंधा क्या करती है, उसका इतिहास क्या है और उसका वित्तीय ट्रैक रिकॉर्ड कैसा है। इन जानकारियों के अभाव में निवेशक लालच में फंस कर बह जाता है। कभी फायदा हो जाता है तो कभी घाटा। फायदा हो जाता है कि टिप्स देनेवाला खुद की पीठ थपथपाता है कि देखो, मैने बताया था न! और घाटा होता है तो वह चुप्पी साध जाता है। चैनलों की हालत तो गजब है। उनको देखकर कभी लगता ही नहीं कि देश के वित्तीय व आर्थिक जगत में इसके अलावा भी कुछ और हो रहा है। कभी आईआरडीए व सेबी के झगड़े या अंबानी बंधुओ के विवाद का मसला आ गया तो जरूर वे इन खबरों पर टूट पड़ते हैं। नहीं तो कंपनियों का पीआर सरेआम चलता रहता है।

इनसाइडर ट्रेडिंग के खिलाफ सेबी के नियम बने हुए हैं। लेकिन ‘इनसाइड’ की खबरें ऐसे दी जाती हैं जैसे कंपनी का प्रवर्तक अभी-अभी इनके कान में फुसफुसाकर गया हो। यह कानूनन गलत है। वैसे भी, हमारा शेयर बाजार विकास की जिस अवस्था में है, उसमें सकारात्मक या नकारात्मक खबरें अक्सर बाजार को प्रभावित नहीं करतीं। बाजार को अगर कोई चीज प्रभावित करती है तो वह है ऑपरेटरों का खेल। और, हमारे एऩालिस्ट और उनको शानदार मंच देनेवाले बिजनेस चैनल इस खेल में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मदद करते हैं। एक हिंदी बिजनेस चैनल में तो कुछ साल पहले मार्केट बैंड के लोगों को इसलिए हटा दिया गया था क्योंकि वे पहले खुद पेनी स्टॉक्स को खरीदकर उनमें खरीद की सिफारिश करवाते थे और शेयर के भाव बढ़ते ही उनसे बेचकर निकल जाते थे। हटाए जाने के पहले ये लोग लाखों बना चुके थे।

मेरा बस यही कहना है कि बाजार में सक्रियता के लिए सनसनी या सटोरिया गतिविधि जरूरी है। सब कुछ पहले से पता रहेगा तो सब्जी-भाजी खरीदने और शेयर खरीदने में अंतर ही क्या रह जाएगा। सट्टेबाजी से शेयर में हलचल नहीं आएगी तो हो सकता है कि आपका बहुत सॉलिड शेयर भी इल-लिक्विड हो जाए। मतलब उसमें सौदे ही न हों और बेचना भी चाहें तो न बेच सकें। इसलिए डे-ट्रेडरों या सटोरियो की अपनी भूमिका है। लेकिन हमारे आप जैसे लोगों के लिए बेहतर यही होगा कि हम अगर किसी कंपनी के शेयरों में निवेश का फैसला करें तो सिर्फ टिप्स के दम पर नहीं। बल्कि हम यह भी देखें कि कंपनी की मूल ताकत क्या है, उसके फंडामेंटल कितने मजबूत हैं। इसीलिए अर्थकाम भी धारा के साथ बहते हुए ‘चुटकी भर टिप्स’ देने की कोशिश करता है, लेकिन आप देखते होंगे कि हम उसके साथ कंपनी की सारी कुंडली भी पेश करते हैं।

इधर कुछ विशेषज्ञ यह भी कहने लगे हैं कि आम निवेशकों को शेयर बाजार से ही दूर रहना चाहिए और उन्हें अपना इक्विटी निवेश म्यूचुअल फंडों के माध्यम से करना चाहिए। यह बात मुझसे खुद रेयरिंग बुल राकेश झुनझुनवाला ने करीब साल भर पहले एक संक्षिप्त बातचीत में कही थी। लेकिन मैं मानता हूं कि इसका मतलब यही हुआ कि मलाई हमें खाने दो, आप माठे या छाछ से काम चलाओ। अरे, यह कोई बात हुई!! शेयर बाजार जब हमें कंपनियों की समृद्धि में हिस्सेदारी का मौका दे रहा है तो हम उसे क्यों छोड़ें? जो कंपनियां सुरक्षित हैं, जैसे सार्वजनिक क्षेत्र की अच्छी कंपनियां, उनमें तो हमें शेयर खरीदना ही चाहिए।

हां, वित्तीय क्षेत्र की कंपनियों से जरूर हमें दूर रहना चाहिए क्योंकि उनके खेल निराले हैं और उनमें भारी जोखिम है। जब लेहमान ब्रदर्स की ऐसी-तैसी हो सकती है, दुनिया की सबसे बड़ी बीमा कंपनी एआईजी का बीमा निकल सकता है तो औरों की बात ही क्या की जाए। अभी स्टेट बैंक या आईसीआईसीआई बैंक बहुत अच्छा चल रहा है, लेकिन कल उनके गले में एनपीए की चट्टान लटक गई तो वे अपने साथ हमें भी ले डूबेंगे। इसलिए राम-राम बोलो। हमारे-आप जैसे लोगों के लिए इस पूरे क्षेत्र से ही दूर रहने में भलाई है।

5 Comments

  1. काफी अच्छी सलाहें, पर लोग मानते नहीं, मार्केट है ही वो बला

  2. Your articals cum tips are no doubt are very attractive. Most of them hits there target. But the stock which don’t achieve there targets and go below, I request you to pls carry those in your daily articals. so that we can’t loose our patience. pls tell us more about future of Tata steel and IDBI.
    Sudarshan
    Your daily reader and investor

  3. bahut accha evam upyogi lekh hai ….dhanyawaad

  4. very nice artical and also usefull to us to know the real fact of the market game

  5. bhuat aacha

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