चिदंबरम व रामदौस की अध्यक्षता में बने आयोग ने बीकासूल और डाइजीन समेत दस दवा दवाओं को अगस्त 2005 में ही फालूत करार दिया था। डाइजीन, कॉम्बीफ्लेम, डेक्सोरेंज, बीकासूल, लिव-52, कोरेक्स जैसी दस दवाओं को अगस्त 2005 में केंद्रीय वित्तमंत्री पी. चिदंबरम व स्वास्थ्य मंत्री डॉ. ए. रामदौस की अगुवाई में बने एक आयोग ने बेतुकी और गैर जरूरी, यहां तक कि खतरनाक बताया था। इस आयोग की रिपोर्ट सरकार स्वीकार भी कर चुकी है। लेकिन करीब चार साल बाद भी वे दवाएं धड़ल्ले से देश भर के बाजारों में बेची जा रही हैं और हम आप सभी इनका जमकर इस्तेमाल करते हैं। उपभोक्ता संरक्षण संस्थाओं द्वारा सरकार का ध्यान बार-बार इस मुद्दे पर आकर्षित कराए जाने के बावजूद इन दवाओं पर कोई रोक नहीं लग पाई है।
नेशनल कमीशन ऑन माइक्रो इकनॉमिक्स एंड हेल्थ ने सरकार को सौंपी एक रिपोर्ट में दर्द निवारक, खांसी, लीवर, विटामिन, खून बढ़ाने, अपच वगैरह के इलाज के लिए बिकने वाली 25 प्रमुख दवाओं में से दस दवाओं को बेकार, अनुपयोगी व घातक बताया था। इनके उपयोग से वह बीमारी या तकलीफ तो दूर होती नहीं, उल्टे ग्राहक की जेब पर हल्की हो जाती है और किसी-किसी दवा का तो खतरनाक दुष्प्रभाव भी पड़ता है।
रिपोर्ट में फाइजर कंपनी की बीकासूल व कोरेक्स, हिमालया ड्रग्स की लिव-52, रैनबैक्सी की रिवाइटल, फ्रेंक्रो-इंडियन की डेक्सोरेंज, एबोट की डाइजीन, अवेंटिस की कॉम्बीफ्लेम, ईमर्क की पॉलीबियन व एवियन और हाइंज की ग्लूकोन-डी को फालतू पाया गया है। इसके बावजूद ये दवाएं देश भर में काफी लोकप्रिय है और डॉक्टर धड़ल्ले से इनका नुस्खा लिखते हैं।
उपभोक्ता संरक्षण संस्था कंज्यूमर वॉयस के सीईओ असीम सान्याल ने बताया कि इस विषय पर सरकार ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है और वे आम चुनावों के बाद बनने वाली नई सरकार का ध्यान इन मुद्दे पर खींचेंगे। इस विषय पर ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) से जुड़े अधिकारियों ने टिप्पणी करने से मना कर दिया। लेकिन महाराष्ट्र स्टेट ड्रग्स कंट्रोल आर्गेनाइजेशन के सहायक आयुक्त एम.जी. केकतपुरे के मुताबिक रिपोर्ट में जिन-जिन दवाओं का नाम शामिल है उन पर मरीजों का पैसा खर्च तो हो जाता है लेकिन इनसे उन्हें कोई लाभ नहीं पहुंचता है।