पंजाब में इस बार गेहूं की बंपर फसल हुई है। इसी अप्रैल माह के पहले हफ्ते से गेहूं की नई फसल मंडियों में आनी शुरू हो जाएगी। उम्मीद है कि इस बार वहां गेहूं का उत्पादन कम से कम 157 लाख टन रहेगा, वह भी तब जब इस बार 35.21 लाख हेक्टेयर में गेहूं की खेती हुई है, जो पिछले साल के बुवाई रकबे 35.38 लाख हेक्टेयर से 17,000 हेक्टेयर कम है। ताजा हालात यह हैं कि वहां इतनी सारी उपज को रखने की जगह ही नहीं है। सारे गोदाम पहले से भरे पड़े हैं। पिछले कई सालों का गेहूं खुले में पड़ा हुआ है। राज्य सरकार ने केंद्र से दरखास्त की है कि वह खुले में बरबाद हो रहे गेहूं को उठाने का कोई बंदोबस्त करे ताकि नई फसल के लिए जगह निकल सके।
अभी जो स्थिति है उसमें इस बार की उपज को स्कूलों के मैदान या पंचायतों की खाली जमीन पर रखना पड़ेगा। राज्य सरकार ने कुछ दिनों पहले ही जिलाधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे अपने-अपने जिलों में पता लगाएं कि कहां-कहां कितनी जगह है जहां नए गेहूं को रखा जा सकता है। इस समय राज्य के गोदामों में करीब 60 लाख टन गेहूं और 40 लाख टन धान पड़ा हुआ है। वैसे पंजाब में गेहूं की उपज को खुले में रखने का चलन है क्योंकि वहां से गेहूं उठाकर जल्दी से जल्दी उठाकर देश के दूसरे इलाकों में भेज दिया जाता है। यह काम ज्यादा से ज्यादा पांच महीनों में हो जाता है। पिछले कुछ सालों में हुआ यह है कि पंजाब में गेहूं की खरीद की व्यवस्था तो बढ़िया कर ली गई है। लेकिन उसके अनुरूप भंडारण के इंतजाम नहीं किए गए।
जानकारों के मुताबिक इसके पीछे सोच यह भी रही है कि जिन राज्यों को गेहूं की जरूरत है, वहीं भंडारण की व्यवस्था की जाए। लेकिन दिक्कत यह है कि केंद्र सरकार ने 31 मार्च तक देश में गेहूं के आयात की इजाजत दे रखी है। इसलिए दक्षिण के राज्य ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से गेहूं आयात कर रहे हैं जो उन्हें 900 रुपए प्रति क्विंटल पड़ता है, जबकि अगर यही गेहूं वे भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) से लेते हैं तो यह उन्हें करीब 1400-1500 रुपए प्रति क्विंटल का पड़ता है। बता दें कि पंजाब अपने गेहूं उत्पादन का तकरीबन 90 फीसदी हिस्सा केंद्रीय पूल में देता है जो इस साल करीब 125 लाख टन रहेगा।
यह भी हकीकत है कि पंजाब व हरियाणा में गेहूं की प्रति क्विंटल लागत अंतरराष्ट्रीय मूल्यों से काफी अधिक है। इसलिए अतिरिक्त गेहूं का निर्यात भी कर पाना मुश्किल है। दूसरे देश में इसके भंडारण की पूरी व्यवस्था नहीं है। इस बार के बजट में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने खुद स्वीकार किया था कि एफसीआई के पास भंडारण क्षमता की भारी कमी के कारण बफर स्टॉक और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के लिए खरीदे गए अनाज की बरबादी होती है।