केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के एक नए सर्कुलर ने ऐसी तमाम कंपनियों को सकते में डाल दिया है जो करेंसी फ्यूचर्स सौदों में हुए मार्क टू मार्क नुकसान के दम पर कर में छूट हासिल करती रही है। सीबीडीटी ने स्पष्ट किया है कि जब तक विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव या करेंसी फ्यूचर्स सौदे असल में पूरे नहीं हो जाते, तब उन पर होनेवाले सांकेतिक नुकसान का फायदा कर रियायत के लिए नहीं मिल सकता।
असल में होता यह है कि करेंसी फ्यूचर्स सौदे होते तो अभी हैं, लेकिन परिपक्व अपने नियम समय पर बाद में होते हैं। इस बीच विनिमय दर में घट-बढ़ होती रहती है। अगर आपने कोई सौदा 100 डॉलर में किया है और उसका दाम मान लीजिए दो महीने बाद घटकर 95 डॉलर हो जाता है तो आपको 5 डॉलर का नुकसान हो गया जिसके अनुरूप आपको अपने खाते में नुकसान दिखाना पड़ता है जिसे मार्क टू मार्केट (एम टू एम) कहते हैं। नुकसान या फायदे दोनों ही सूरत में कंपनियों या अन्य निवेशकों को अपने खाते में एम टू एम दिखाना पड़ता है।
कंपनियां विदेशी मुद्रा दरों में उतार-चढ़ाव के जोखिम से बचने के लिए बैंकों के साथ कांटैक्ट करती रही हैं। जैसे, कोई कंपनी किसी बैंक के साथ करार करती है कि वह भावी तारीख पर उसे एक नियत दर डॉलर बेचेगा। मान लीजिए इस बीच डॉलर-रुपए की विनिमय दर बदल जाती है और जहां डॉलर की नियत दर 45 रुपए थी, अब 55 रुपए हो गई तो जाहिर है कंपनी को ज्यादा रकम देनी पड़ेगी और उसे नुकसान उठाना पड़ेगा। लेकिन यह नुकसान तब तक सांकेतिक है जब तक करार में निर्धारित भावी तारीख नहीं आ जाती। लेकिन कंपनी भावी तिथि आने तक इस सौदे का नुकसान अपने खातों में दिखाती रही हैं जिस पर उन्हें कर छूट मिलती रही है। आगे से ऐसा होना मुश्किल हो जाएगा।
साथ ही सीबीटीडी यह भी जांचेगा कि कंपनी ने विदेशी मुद्रा के सौदे वास्तविक व्यवसाय के लिए किया है या सट्टेबाजी के लिए क्योंकि पिछले दिनों इस तरह के तमाम मामले सामने आए थे जब कंपनियों ने बैंकों से विदेशी मुद्रा लेकर बाजार में सट्टेबाजी से कमाई की थी। इसमें वह ओटीसी (ओवर द काउंटर) सौदों या करेंसी फ्यूचर एक्सचेंजों के बाहर दो पक्षों में होनेवाले सौदों को अलग करके देख रहा है। वह एक्सचेंज पर हुए सौदों को उचित मानेगा। यानी, एमसीएक्स स्टॉक एक्सचेंज या नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में सौदों को सही माना जाएगा और इनमें हुए नफे-नुकसान को आठ सालों के लिए कैरी-फॉरवर्ड किया जा सकता है। लेकिन ओटीसी सौदों की पूरी जांच-परख की जाएगी। कॉरपोरेट क्षेत्र का कहना है कि सीबीडीटी का नया सर्कुलर जटिलताएं बढ़ा देगा और इससे नए-नए मुकदमे शुरू हो जाएंगे।