वित्त वर्ष 2009-10 में बैकों व अन्य वित्तीय संस्साओं ने देश के 4.56 करोड़ किसानों को कर्ज दिया था। लेकिन चालू वित्त वर्ष 2010-11 में यह संख्या 5.50 करोड़ तक पहुंच जानी चाहिए। राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के चेयरमैन उमेश चंद्र सारंगी ने एक समाचार एजेंसी को दिए गए इंटरव्यू में यह जानकारी दी है।
सारंगी का कहना है कि इस साल के लिए निर्धारित कृषि ऋण 3.75 लाख करोड़ रुपए का है और इस बार पहले की अपेक्षा करीब 21 फीसदी ज्यादा किसान कर्ज ले सकते हैं। इसकी वजह सामान्य मानसून से लेकर अनाजों की बेहतर कीमतें भी हैं। साथ ही किसान कर्जमाफी योजना से ही किसानों का रुझान बैंकों या सहकारिता संस्थाओं से कर्ज लेने की तरफ बढ़ा है।
बता दें कि कृषि व ग्रामीण क्षेत्र के ऋणों की शीर्ष निगरानी संस्था नाबार्ड ही है। नाबार्ड चेयरमैन सारंगी के मुताबिक किसानों की कर्जमाफी योजना का बुनियादी मकसद डिफॉल्टर हो चुके करीब चार करोड़ किसानों को फिर से बैंक कर्ज के दायरे में लाना है। नए साल के लिए तय 3.75 लाख करोड़ रुपए के कृषि ऋण का लक्ष्य पूरा करना संभव है क्योंकि सामान्य मानसून से उधार की मांग बढ़ेगी। दूसरे नए किसान भी ऋण लेने को प्रेरित होंगे।
फिलहाल, कृषि ऋण बढ़ाने में असली मुद्दा लघु व सीमांत किसानों का है। देश के 82 फीसदी किसान लघु व सीमांत किसान की श्रेणी में आते हैं। इन तक सरकारी कर्ज को पहुंचाना जरूरी है। इधर बीज से लेकर खाद तक की लागत बढ़ी है जिसके चलते हो सकता है कि किसान वित्तीय संस्थाओं से कर्ज लेने की दिशा में आगे बढ़ें।