पिछले मार्च से इस मार्च के बीच अमेरिकी सरकार के बांडों में भारत का निवेश तीन गुना से ज्यादा हो गया है। देश की तरफ से तकरीबन 99 फीसदी निवेश भारतीय रिजर्व बैंक अपने विदेशी मुद्रा खजाने से करता है। वित्तीय संस्थाओं और कॉरपोरेट क्षेत्र की तरफ से किया गया निवेश एक फीसदी से भी कम रहता है। यूएस ट्रेजरी विभाग की तरफ से जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक मार्च 2008 तक अमेरिकी सरकार के बांडों में भारत का निवेश 11.8 अरब डॉलर था, जो मार्च 2009 के अंत 38.2 अरब डॉलर हो गया है। यह सालाना आधार पर करीब 224 फीसदी की वृद्धि दर्शाता है। बता दें कि अमेरिकी बांडों पर रिटर्न की दर इस समय 1 फीसदी से भी नीचे जा चुकी है।
दिलचस्प बात यह है कि अमेरिकी बांडों में रिजर्व बैंक की तरफ से किए गए निवेश से लगता है कि जैसे सितंबर 2008 में अमेरिका में कोई वित्तीय संकट ही नहीं आया था। वैश्विक आर्थिक संकट के मंदी में बदलने के बावजूद अमेरिकी बांडों में हमारा निवेश बेरोकटोक बढ़ता ही रहा है। साल 2008 में मार्च तक यह निवेश 11.8 अरब डॉलर का था, जून तक 17.7 अरब डॉलर हुआ, सितंबर तक 20.3 अरब डॉलर हुआ और दिसंबर तक 29.2 अरब डॉलर हो गया। साल 2009 में फरवरी और मार्च के बीच इस निवेश में 3.6 अरब डॉलर का इजाफा हुआ है। इसी दौरान हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में प्रतिभूतियों की मात्रा 125.99 अरब डॉलर से 8.8 अरब डॉलर बढक़र 134.79 अरब डॉलर हो गईं। जाहिर है कि एक महीने में 8.8 अरब डॉलर की बढ़ी प्रतिभूतियों का करीब 41 फीसदी हिस्सा रिजर्व बैंक ने अमेरिकी सरकार के बांडों में लगाया है।
उल्लेखनीय है कि हमारा विदेशी मुद्रा भंडार विदेशी मुद्रा प्रतिभूतियों, आईएमएम में आरक्षित जमाराशि, एसडीआर (स्पेशल ड्राइंड राइट्स) और स्वर्ण भंडार को जोडक़र बनता है। मार्च 2009 के अंत तक यह भंडार 241.43 अरब डॉलर का था, जिसमें से विदेशी प्रतिभूतियों की मात्रा 134.79 अरब डॉलर थी और रिजर्व बैंक ने 106.63 अरब डॉलर अंतरराष्ट्रीय बैंकों में जमा के रूप में रखा हुआ था। अमेरिकी सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल मार्च अंत तक रिजर्व बैंक ने कुल विदेशी प्रतिभूतियों का 28.34 फीसदी हिस्सा अमेरिकी सरकार के बांडों में लगा रखा है। बाकी 71.66 फीसदी निवेश का ब्यौरा देने से रिजर्व बैंक के प्रवक्ता ने इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि जितना विवरण हमने अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध कराया है, उससे ज्यादा जानकारी हम नहीं उपलब्ध करा सकते।
इस बारे में आदित्य बिड़ला समूह के प्रमुख अर्थशास्त्री अजित रानाडे का कहना है कि दुनिया के सभी देशों को अपनी विदेशी मुद्रा के निवेश का सुरक्षित माध्यम चाहिए। इसलिए भारत ही नहीं, चीन जैसे तमाम देश अमेरिकी बांडों में निवेश बढ़ा रहे हैं। अमेरिकी बांडों में चीन का निवेश इस साल फरवरी से मार्च के बीच 23.7 अरब डॉलर बढक़र 767.9 अरब डॉलर और जापान का निवेश 24.8 अरब डॉलर बढक़र 686.7 अरब डॉलर हो गया है। लेकिन इसी दौरान जर्मनी ने अमेरिकी सरकार के बांडों में अपना निवेश 1.6 अरब डॉलर घटाकर 55 अरब डॉलर और ब्राजील ने 4.2 अरब डॉलर घटाकर 126.6 अरब डॉलर कर लिया है।