आया कुछ कहां सरकारी खजाने में!

नहीं पता क्यों, बाजार शनिवार को भी 11 बजे से 1 बजे तक दो घंटे के लिए खोला गया। यह ट्रेडिंग क्यों हुई? इसका कोई स्पष्ट कारण पता नही लग सका। हां, निवेशक संस्थाओं के अभाव में बाजार एकदम लस्त-पस्त रहा। एफआईआई ने 13.87 करोड़ की खरीद की तो 23.37 करोड़ रुपए की बिकवाली। वहीं डीआईआई की खरीद 5.46 करोड़ और बिक्री 10.33 करोड़ रुपए की रही। निफ्टी फ्यूचर्स का आखिरी भाव 5399 का रहा है, जब कैश बाजार में निफ्टी 5359.40 पर बंद हुआ है।

एनएसई में कुल वोल्यूम 1315.83 करोड़ रुपए का रहा। बीएसई तो बिचारा इतना शरमा रहा है कि उसने शनिवार के विशेष सत्र के आंकड़े ही नहीं दिए। मामूली से कारोबार के लिए बहुत से लोगों के लिए सप्ताहांत की छुट्टियां बिगाड़ दी गईं। अब तो लगता है कि हमें रविवार को भी ट्रेडिंग की तैयारी कर लेनी चाहिए। कौन जाने? यह सब इसी देश में हो सकता है।

ओएनजीसी की सांसत बढ़ गई है। जैसी कि उम्मीद थी, 303 रुपए पर सब्सक्रिप्शन मिलने के बावजूद यह स्टॉक बढ़ने के बजाय गिरता जा रहा है। फिलहाल 280 रुपए पर पहुंच गया है। सेबी ने सौदों की जांच शुरू कर दी है जो एक स्वागतयोग्य संकेत है। लेकिन इस मसले पर अरुण शौरी ने जो कहा है, वह वाकई गलत है और दुनिया के निवेशकों के सामने भारत की छवि खराब करता है।

समय आ गया है कि सरकार गंभीरता से इस बात पर सोचे कि उसे अब भी विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) पर निर्भर रहना चाहिए या रिटेल निवेशकों को वापस लाने की पुरजोर कोशिश करनी चाहिए। मैं तो सलाह दूंगा कि सभी सस्पेंड की गई कंपनियों को थोड़ी पेनाल्टी लगाकर फिर से लिस्ट करने की इजाजत दी जाए। इससे जहां राजस्व मिलने की थोड़ी राह खुलेगी, वहीं इनमें फंसा भारी धन मुक्त होगा।

सरकार को इन कंपनियों को ओपन ऑफर लाकर नए इच्छुक प्रवर्तकों को बेचने की अनुमति दे देनी चाहिए। निकासी का यह रास्ता पूंजी बाजार में चहक ला सकता है। इससे रिटेल निवेशकों की वापसी होगी और मुक्त हुआ धन सरकारी कंपनियों में आएगा। या, सरकार को शेयरों को बेचने की इजाजत तभी देनी चाहिए, जब वे वहां से निकाला धन सार्वजनिक क्षेत्र की किसी कंपनी के एफपीओ में लगाएं। इससे सीधे-सीधे 64,000 से 70,000 करोड़ रुपए सरकार के खजाने में आ जाएंगे।

ओएनजीसी के इश्यू से सरकार को 12,700 करोड़ रुपए मिले हैं। लेकिन उसने इसमें से 5000 करोड़ रुपए वापस आईडीबीआई और 6000 करोड़ रुपए एसबीआई को दे दिए तो इससे सरकारी घाटे में कमी कहां से आई? टाटा स्टील की सब्सिडियरी टिनप्लेट में टाटा समूह की इक्विटी हिस्सेदारी 80 फीसदी के ऊपर है। टाटा स्टील न्यूनतम 25 फीसदी पब्लिक हिस्सेदारी की शर्त पूरी करने के लिए टिनप्लेट की 5 फीसदी हिस्से खुले बाजार में बेचने के बजाय उसे खुद अपने में मिलाना पसंद करेगी। बहुत जल्द ऐसा होने की संभावना है। टिनप्लेट शनिवार के विशेष सत्र में 17.28 फीसदी बढ़कर 52.25 रुपए पर पहुंच गया।

विशेषज्ञ भी अज्ञानी हो सकते हैं। इसे मानने और इसमें यकीन रखने का नाम ही विज्ञान है।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं पड़ना चाहता। इसलिए अनाम है। वह अंदर की बातें आपके सामने रखता है। लेकिन उसमें बड़बोलापन हो सकता है। आपके निवेश फैसलों के लिए अर्थकाम किसी भी हाल में जिम्मेदार नहीं होगा। यह मूलत: सीएनआई रिसर्च का कॉलम है, जिसे हम यहां आपकी शिक्षा के लिए पेश कर रहे हैं)

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