मैं ये तो नहीं कहता कि एफआईआई मूरख हैं। आखिर वे हमारे बाजार की दशा-दिशा तय करते हैं। लेकिन इतना जरूर है कि उन्हें बहुत आसानी से मूर्ख बनाया जा सकता है या ऐसा भी हो सकता है कि वे आसानी से मूर्ख बनने का स्वांग करते हों। उन्होंने अपने इर्दगिर्द 200 करोड़ रुपए के बाजार पूंजीकरण की लक्ष्मण रेखा खींच रखी है। वे वही स्टॉक इतने या इससे ज्यादा बाजार पूंजीकरण पर खरीदते हैं जिन्हें ऑपरेटर 40-50 करोड़ रुपए के बाजार पूंजीकरण पर खरीद चुके होते हैं। समझ में नहीं आता कि वे ऑपरेटरों को कैसे 300 फीसदी प्रीमियम देना पचा पाते हैं। क्या यह भलमनसाहत में किया जाता है या इसके पीछे कुछ ऐसा खेल है जिसे हम, आप और तमाम निवेशक नहीं देख पाते?
वीआईपी 400 रुपए था तो उसकी सारी कहानी सामने आ चुकी थी। लेकिन एफआईआई इसे 500 रुपए पर खरीद रहे हैं। फर्क इतना है कि इस दौरान वीआईपी का बाजार पूंजीकरण (शेयर के भाव और कुल जारी शेयरों का गुणनफल) बढ़ गया है। ऐसे 1000 स्टॉक हैं जिनका नाम मैं यहां गिना सकता हूं। मैं जानता हूं कि निवेशक भी किसी स्टॉक में तभी घुसना चाहते हैं जब उसमें बड़े खिलाड़ी आ चुके होते हैं। उन्हें लगता है कि इससे फटाफट नोट बनाए जा सकते हैं। लेकिन जो भी ऐसा करते हैं, उनमें खुद अपने ऊपर भरोसा नहीं होता।
किसी भी धंधे में पैसा बनाना आसान है, बशर्ते आप उस धंधे को समझें, सोचा-समझा जोखिम उठाएं और सही तरीके से कारोबार करें। महज शौक के लिए शेयर खरीदना आपको बरबाद कर सकता है। हमने सोने, हीरे और शेयर के धंधे में बहुत से लोगों को दिवालिया होते देखा है महज इसलिए कि अतिविश्वास में उनके ऊपर ट्रेडिंग का जुनून सवार था। मीडिया उन्हें और झाड़ पर चढ़ा देता है।
आपको बताऊं कि बीएसई सेंसेक्स जब 8100 के स्तर पर था, तब मैं छह विश्वस्तरीय फंड मैनेजरों से मिला था। उन्होंने बेलाग अंदाज में कहा था कि लेहमान की कड़ी का कोई अंत नहीं है और उन्हें बाजार से हट जाना चाहिए। हुआ क्या? गलत धारणा के कारण उन्हें भारी घाटा उठाना पड़ा और आज की तारीख में सेंसेक्स के 18,000 अंक के स्तर पर भी वे निवेश नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि उनका अपने ही ऊपर से भरोसा उठ चुका है।
बाजार में कुछ बुरे तत्व होते हैं और आप उनके शिकार बन जाते हैं। मसलन, आरडीबी इंडस्ट्रीज को बेवजह 160 रुपए से पटक कर 50 रुपए पर लाया गया और निवेशकों को चूना लग गया क्योंकि वे इस स्टॉक को जानते-समझते नहीं थे। इसके बाद यह तेजी से बढ़कर 50 से 80 रुपए तक चला गया। रिसर्गेयर माइंस का उदाहरण ले लीजिए। एक पर दो बोनस शेयर देने की घोषणा के बाद भी यह शेयर 120 रुपए से गिरकर 80-85 रुपए पर आ गया है केवल इसलिए कि कोई ऑपरेटर इसे बटोरने का खेल कर रहा है। जब बाजार नियामक तक को ऐसे मामलों की खबर नहीं है तब हम-आप इसमें आखिर क्या कर सकते हैं?
इसीलिए एक्सचेंज हमेशा कहते हैं कि आप ए ग्रुप के शेयर खरीदो। लेकिन इस ग्रुप का कौन-सा स्टॉक भारती, आइडिया और मारुति बन जाएगा, कोई नहीं जानता। यहां भी जोखिम है। तरीका एक ही है कि आप अपने यकीन पर यकीन करो जो पढ़ने से ही आ सकता है। अगर आप खुद को अच्छा समझदार निवेशक मानते हो तो जिस स्टॉक को आप खरीदना चाहते हैं, उसके बारे में खूब पढ़ें, जानकारी जुटाएं। अगर आप खुद को बाजार का चतुर सुजान खिलाड़ी समझते हैं तब तो कोई गारंटी ही नहीं है और आपके भाग्य का फैसला हो चुका है। आपको कोई नहीं बचा सकता।
जब तक अमेरिकी बैंकों के बारे में कोई बुरी खबर नहीं आती, तब तक मुझे नहीं लगता कि बाजार को लेकर नकारात्मक होने की कोई वजह बनती है। एस एंड पी एक बार फिर 50 डीएमए (डेली मूविंग एवरेज) को पार कर गया है। विलय और अधिग्रहण की रफ्तार तेज हो गई है। केयर्न और सेसा गोवा से तब तक दूर रहें जब तक वे नई तलहटी पर नहीं पहुंच जाते। वेदांता द्वारा अधिग्रहण की पहल दोनों के लिए ही बुरी है। लेकिन पेट्रोलियम तेल का मूल्यांकन वीडियोकॉन के लिए अच्छी खबर है। कंपनी तेल, टेलिकॉम और कंज्यूमर ड्यूरेबल कारोबार को तीन अलग-अलग कंपनियों में डीमर्ज कर सकती है। एस्सार ऑयल के लिए भी अच्छी बात है क्योंकि यह मूल्य का नया आधार बन सकता है।
मैंने टाटा कम्युनिकेशंस (पुराना नाम वीएसएनएल) के बारे में तब लिखा था जब उसका भाव 280 रुपए था। अब यह 340 रुपए पर है और यह साबित करता है कि एक एफआईआई हाउस की तरफ से इसे डाउनग्रेड करना सही नहीं था। फिर वजह क्या थी, इसका पता आप लगाइए।
आप सकारात्मक नजरिए व सृजनात्मक रुख के साथ अपनी दिशा का चुनाव करें। फिर बड़ी से बड़ी कठिनाई भी आपको आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती।
(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)