हां, यह सच है कि नए साल के बजट में आम शहरी के लिए कुछ नहीं है क्योंकि साल भर में बचाया गया 2060 रुपए का टैक्स किसी अच्छे रेस्तरां में परिवार के लिए एक समय के भोजने के लिए भी पूरा नहीं पड़ेगा। यह निवेशकों के लिए भी अच्छा बजट नहीं है। इसलिए अगर बाजार विश्लेषक कह रहे हैं कि वित्त मंत्री अच्छा मौका चूक गए तो यह एक तरीके से सही है। लेकिन शायद आपने अमिताभ बच्चन की फिल्म आखिरी रास्ता देखी होगी जिसमें बिग बी ने 6 और 9 का अंतर दिखाया है। यह बजट भी 6 और 9 के फर्क का एक अच्छा उदाहरण है। आप इसे 6 भी देख सकते हैं और 9 भी। मैं इसे 9 के रूप में देख रहा हूं।
याद रखें कि जब सब कुछ दुरुस्त हो तब सबको अच्छा लगनेवाला बजट पेश करना कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन जब हर तरफ सब कुछ नकारात्मक हो, तब अच्छा बजट देना 110 मंजिल की इमारत के टॉप फ्लोर जैसा ऊंचा काम बन जाता है। सीमित संसाधनों और सीमाओं के बावजूद, खासकर तब जब सरकार घोटाले, भ्रष्टाचार और गंदी राजनीति के जाल में उलझी हो, वित्त मंत्री ने मेरे लिहाज से सराहनीय काम किया है। हमने एक ही बजट में आर्थिक विकास और राजकोषीय संतुलन का ऐसा मेल पहले कभी नहीं देखा है। बहुत से विशेषज्ञ अब भी कहे जा रहे हैं कि राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 4.6 फीसदी तक नहीं बांधा जा सकता। लेकिन वित्त मंत्रालय स्पष्ट कर चुका है कि कैसे यह लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।
सरकार ने इस बार शुद्ध बाजार उधारी का लक्ष्य 3.43 लाख करोड़ रुपए रखा है, जबकि चालू वित्त वर्ष में वास्तविक उधारी 3.45 लाख करोड़ रुपए की रही है। नए साल में अर्थव्यवस्था के 8.75 से लेकर 9.25 फीसदी बढ़ने का अनुमान लगाया गया है जो काफी संयमित है। वैसे, हमें तो लगता है कि अगर इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए तय 2.44 लाख करोड़ रुपए की रकम खर्च कर दी गई तो जीडीपी की विकास दर 9.5 फीसदी के ऊपर पहुंच सकती है। भारतीय अर्थव्यस्था का आधार पिछले छह सालों में एक लाख करोड़ डॉलर से बढ़कर दो लाख करोड़ डॉलर हो चुका है। फिर भी हमारा तंत्र ऐसा है जैसे कि हम 50,000 करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था हों। इसलिए मुझे नहीं लगता कि सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए निर्धारित 2.44 लाख करोड़ रुपए खर्च कर पाएगी। और, अगर खर्च कर भी दिया तो निश्चित रूप से राष्ट्रमंडल खेलों से भी बड़ा घोटाला समाने आ सकता है।
एसईजेड (विशेष आर्थिक क्षेत्र) और एलएलपी (लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप) फर्म पर टैक्स और म्यूचुअल फंड में सीधे विदेशी निवेशकों को खींचना अच्छे कदम हैं। सब्सिडी सीधे पानेवाले तक कैश के रूप में पहुंचाना भी सराहनीय सुधार है। हालांकि कहा जा रहा है कि यह नए तरह के भ्रष्टाचार को जन्म दे सकता है। 15 फीसदी लाभांश देकर कंपनियां कालेधन को वापस अर्थव्यवस्था में ला सकती हैं। विनिवेश से 40,000 करोड़ रुपए यकीनन जुटा लिए जाएंगे क्योंकि इस साल के 18,000 करोड़ इस मद में पहले से ही डाल दिए गए हैं।
वित्त मंत्री ने कुछ और भी बेहतर पहल की है। दुनिया के निवेशक पुर्तगाल, आयरलैंड, ग्रीस व स्पेन (पिग्स) और आइसलैंड व दुबई वगैरह के ऋण संकट को लेकर परेशान रहे हैं। वित्त मंत्री भारत में ऋण व जीडीपी के अनुपात को 53 फीसदी से घटाकर इस बार 42 फीसदी पर ले आए हैं। आप जानते ही है कि भारी धन वही लोग आसानी से जुटा पाते हैं जो बीएमडब्ल्यू, पोर्शे या फेरारी में चलते हैं। इसलिए भारत में बहुत सारा विदेशी धन आना तय है। प्रणव दा सरकार की ब्याज अदायगी और कर-राजस्व का अनुपात भी पिछले साल के 36 फीसदी से घटाकर इस साल 33.9 फीसदी पर ले आए हैं।
बजट की ये ऐसी बारीक बाते हैं जो नंगी आंखों से नहीं नजर आतीं। इसके लिए खास नजर और विश्लेषण की जरूरत है। वित्त मंत्री ने आर्थिक सुधारों का संकेत भी दिया है और भ्रष्टाचार खत्म करने के कदम भी उठाए हैं। किसी ने भी ध्यान नहीं दिया कि इस बार के बजट में न्याय विभाग का आयोजना व्यय करीब तीन गुना बढ़ाकर 1000 करोड़ रुपए कर दिया गया है। सरकार न्यायिक इंफ्रास्ट्रक्चर को और मजबूत करने में लग गई है।
बजट की तमाम बारीक बातें दिखाती हैं कि वित्त मंत्री एक अच्छी टीम व योजना के साथ सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। शेयर बाजार जल्दी ही बजट के सत्व को समझ जाएगा। इसलिए हम मानते हैं कि नए वित्त वर्ष में बाजार नई ऊंचाई पर जाएगा। जो लोग अब भी कहे जा रहे हैं कि निफ्टी गिरकर 4800 तक चला जाएगा, वे असल में झांसा दे रहे हैं क्योंकि उनके खाने के दांत और दिखाने के दांत अलग हैं। सबके सामने मंदी का आतंक पैदा करते हैं और खुद तेजी की धारणा के साथ खरीद करते हैं। उनको यकीन है कि वे आपको मूर्ख बनाकर लूट सकते हैं। इन फिरंगियों को पता है कि तीन सौ सालों तक उनकी यह चाल कामयाब रही है और आजादी के 64 सालों में भी भारतीयों की सोच खास नहीं बदली है। लेकिन यह उनकी नादानी है। हम ठान लें तो वही कर सकते हैं जैसा 1942 में जापान ने अमेरिका के साथ किया था।
हम पूरी शिद्दत से मानते हैं कि रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार का घड़ा अब फूटने की कगार पर है और इससे निपटने की तैयारियां हो चुकी हैं। इससे देश में ज्यादा अनुशासन व मजबूती आ सकती है। इससे राजनीति ही नहीं, आम जनजीवन में भी ईमानदारी को बढ़ावा मिलेगा। वैसे भी, देश हमेशा किसी भी व्यक्ति से बड़ा होता है। हम-आप चाह लें तो किसी को अर्श से फर्श पर पहुंचा सकते हैं। वंदे मातरम…