अमेरिका और यूरोप से बराबर कमजोरी की खबरें आती रहीं। भारतीय बाजार नीचे और नीचे होता रहा। दुनिया के बाजारों में गिरावट से भारतीय बाजार में घबराहट बढ़ती गई। शुक्र है कि रिटेल निवेशक अभी तक बाजार से बाहर हैं, इसलिए इस बार भुगतान का कोई संकट नहीं खड़ा हुआ। इस मायने में 2011 का सदमा 2008 के सदमे से भिन्न है। 2008 में बाजार यकीनन ओवरबॉट स्थिति में था, वह भी बड़े पैमाने पर मार्जिन या डेरिवेटिव सौदों के जरिए, जिनमें भुगतान की वास्तविक क्षमता से कई गुना ज्यादा निवेश किया जाता है और जिनमें उधार के धन का जोर होता है।
आज भी हम डेरिवेटिव सेगमेंट के ओपन इंटरेस्ट में या प्रवर्तकों द्वारा फाइनेंसरों के पास गिरवी रखे शेयरों और प्रवर्तकों द्वारा जरूरी कैश मार्जिन न देने के चलते बनी इस तरह की ओवर-लीवरेज्ड पोजिशन में स्टॉक्स को न घर, न घाट की स्थिति में पहुंचता देख रहे हैं। अतीत में ऑपरेटर ऑर्किड केमिकल्स व कोर प्रोजेक्ट्स जैसे कई मामलों में प्रवर्तकों को घुटनों के बल खड़ा कर चुके हैं। आज भी हम जीटीएल, एडुकॉम्प सोल्यूशंस और केएस ऑयल्स में यही होता देख रहे हैं। ये सभी शेयर मंदड़ियों के हमलों का आसान शिकार बन गए हैं। ऊपर से दिखता है कि एडुकॉम्प सोल्यूशंस आयकर विभाग के छापों की खबर के बाद 20 फीसदी गिर गया। लेकिन अंदर की कहानी कुछ और है।
एडुकॉम्प सोल्यूशंस 2008 में भी मंदड़ियों का आसान शिकार बना था। लेकिन तब वह किसी तरह बचकर मजबूती से बाहर निकल आया था। अब फिर मंदड़िए अपनी चाल में कामयाब हो गए हैं। शेयर का मूल्यांकन कतई माफिक नहीं रह गया है तो एडुकॉम्प को धन जुटाने की योजना टालनी पड़ी है।
आज अगर वीआईपी इंडस्ट्रीज, टीटीके प्रेस्टिज, नोवार्टिस व केन्नामेटल जैसे स्टॉक बाजार के झटके से बचे रह गए तो इसकी वजह यह है कि इनके पीछे बहुत मजबूत हाथ हैं। असल में हमें इस बात का काफी अचंभा है कि कमजोर आर्थिक स्थिति के बावजूद वीआईपी का शेयर इतनी ऊंचाई क्यों पकड़े हुए है। इधर चीनी मुद्रा युआन महंगा हो गई है जिससे वीआईपी की लाभप्रदता पर असर पड़ेगा क्योंकि उसका 70 फीसदी कच्चा माल चीन से आयात किया जाता है। यह भी विचित्र बात है कि जब कच्चा तेल 32 डॉलर प्रति बैरल पर था, तब वीआईपी घाटे में थी और जब कच्चा तेल 110 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया तो वीआईपी जबरदस्त मुनाफे में आ गई। यह यकीनन बड़ा ब्रांड है। लेकिन कितने लोग वीआईपी के बैग या सूटकेस इस्तेमाल करते हैं?
वैसे, दुनिया के बाजारों की कमजोरी भारत के लिए बहुत सकारात्मक है। कच्चा तेल का बढ़ना थम चुका है और वह नीचे आ रहा है। यह मुद्रास्फीति को रोकने का आवश्यक तत्व है। अगला कदम ब्याज दरों की बढ़त पर पूर्णविराम का होगा। यह भी हो सकता है कि रिजर्व बैंक सिस्टम में तरलता बढ़ाने के लिए सीआरआर (कैश रिजर्व रेशियो या रिजर्व बैंक के पास अनिवार्य रूप से कैश के रूप में रखी जानेवाली बैंकों की कुल जमा का अनुपात) में कमी कर दे ताकि उद्योगों को किसी प्रकार ऋण की तंगी न हो।
सोना 28,300 रुपए प्रति दस ग्राम तक जा चुका है, जबकि हमारा लक्ष्य 28,000 रुपए का था। लेकिन यह उठान चांदी की तरह बहुत तेज है। चांदी भी 40,000 से फटाफट 75,000 रुपए प्रति किलो तक जा पहुंची थी। सोना चालू अगस्त महीने में ही 17 फीसदी बढ़ गया है, जबकि पिछले तीन महीनों में यह 30 फीसदी बढ़ा है। हमारा आकलन है कि सोना अभी सीधा बढ़ता हुआ 32,000 रुपए तक जाएगा, जहां से वह कुल मिलाकर 50 फीसदी बढ़त की मंजिल हासिल करने के बाद लौट सकता है। इसमें नीचे में 23,500 रुपए तक की गिरावट देखी जा सकती है। हालांकि यह कब और कैसे होगा, इसको लेकर संदेह है। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि यहां से सोने में तेजी की धारणा पाले रखना सही नहीं होगा।
कच्चा तेल 72 डॉलर प्रति बैरल की तरफ बढ़ रहा है। चांदी में मंदी का माहौल है। इसलिए केवल इक्विटी ही आस्ति का वह वर्ग है जहां निवेश पर फायदा कमाने का भरपूर मौका नजर रहा है। हालांकि इस वक्त कोई नहीं बता सकता कि बाजार आखिर गिरकर जाएगा कहां तक। मंदड़िए साल भर से निफ्टी को गिराकर 4850 तक ले जाने की तमन्ना पाले हुए थे। अब वो तमन्ना पूरी हो गई है तो हो सकता है कि वे और मनबढ़ हो जाएं।
हर तरफ से परेशान सरकार को शेयर बाजार की गिरावट भी परेशान किए हुए है। लेकिन चिंता के बावजूद वह कोई सकारात्मक कदम नहीं उठा रही है। फिर भी हम निवेशकों से कहेंगे कि मैदान छोड़कर भागे नहीं। घबराहट में बेचकर घाटे का घूंट न पिएं। हो सके तो और खरीदते रहे। वैसे, अब भी बाजार में 5 से 7 फीसदी की गिरावट के अंदेशे को नकारा नहीं जा सकता।
लेकिन एक बात नोट कर लें कि बाजार जब भी सुधरेगा तो यह V के आकार में उठेगा। तब आप नई खरीद करना चाहेंगे तो शेयर पहले से महंगे हो चुके होंगे। लेकिन इस वक्त तो कोई खरीदने के मूड में नहीं है। आप चाहें तो लीक से हटकर चल सकते हैं। इतिहास गवाह है कि आम जीवन ही नहीं, शेयर बाजार में भी लीक से हटकर चलने वाले शेर अंततः फायदे में रहते हैं।