आज सेंसेक्स 68.40 अंक बढ़कर 18,090.62 और निफ्टी 14.80 अंक बढ़कर 5432 पर बंद हुआ है। लेकिन भारतीय बाजार दीवाली के बाद से अब तक 14.5 फीसदी की भारी गिरावट या करेक्शन का शिकार हो चुका है। इसकी बहुत सारी वजहें गिनाई गई हैं – भ्रष्टाचार, घोटाले, रिश्वतखोरी व मुद्रास्फीति से लेकर ब्याज दरों में वृद्धि की चिंता, इससे चलते आनेवाली औद्योगिक सुस्ती और अंततः भारत से विदेशी निवेश का निकलकर विकसित देशों में चले जाने की आशंका तक।
आमतौर पर इस तरह का करेक्शन लंबी गिरावट या पक्की मंदी के बाजार की शुरुआत में देखा जाता है। अतिवादी सोच वाले लोग यह कह सकते हैं कि भारत के जीडीपी की विकास दर लुढ़क कर 4 फीसदी या इससे भी नीचे जा सकती है। इसलिए इतनी गिरावट का आना लाजिमी है। बल्कि अभी तो और गिरावट आनी है। हां, गिरावट कितनी आएगी, इसके बारे में अलग-अलग लोगों का अनुमान अलग-अलग हो सकता है।
लेकिन मैं इस सोच तो स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हूं क्योंकि शेयर बाजार में तेजी के दौर के जनक होते हैं जिंस, खासकर कच्चा तेल और सोना जो अब भी दीर्घकालिक तेजी के दौर में हैं। एक तो छोटी अवधि के मंदी के दौर (शॉर्ट टर्म बियर फेज) और लंबी अवधि के तेजी के दौर (लांग टर्म बुल फेज) की कोई मूलभूत धारणा है ही नहीं और अगर है भी तो इसे करेक्शन कहा जाता है। यहां तक कि 2008 में 15 महीनों तक चली गिरावट एक गहरा करेक्शन ही थी जो बहुत कुछ 1992 व 2001 में 15 महीनों तक चली रैली या तेजी की जोड़ीदार थी।
असल में इक्विटी या शेयर बाजार कमोडिटी या जिंस बाजार का अनुसरण करता है क्योंकि मांग व आपूर्ति इसी पर निर्भर रहती है। अभी अपने यहां जिस तरह तकरीबन हर उद्योग में पूंजी निवेश का सिलसिला चल रहा है, वह तेजी के बाजार के जारी रहने का जीवंत प्रमाण है। जिंस बाजार में तेजी का चरण 2015 से 2016 तक चलेगा। इसलिए कोई तुक नहीं बनता कि मैं मान लूं कि हम मंदी के बाजार में प्रवेश कर चुके हैं। भारत की विकासगाथा अक्षुण्ण है। भारतीय अर्थव्यवस्था विश्वस्तर पर अपनी समकक्ष अर्थव्यवस्थाओं से कहीं ज्यादा आकर्षण है क्योंकि दूसरी अर्थव्यवस्थाएं या तो ठहराव या अस्थायित्व व अवनति का शिकार हो चुकी हैं। इस समय समूची दुनिया में भारत व चीन ही निवेशकों के लिए दो सुरक्षित विकल्प हैं जहां वे अपनी दौलत को बढ़ाने के अवसर और संभावना देख सकते हैं।
भारत की विशाल जनसंख्या छिपा हुआ वरदान बन गई है। यह एशिया में घरेलू उपभोक्ताओं की सबसे बड़ी फौज के रूप में उभरी है। वास्तव में, बहुत सारे विकसित देश अपनी अर्थव्यवस्था के ठहराव से मुक्ति पाने के लिए इस आबादी की तरफ देख रहे हैं। आज हम पश्चिम देशों के तारणहार बन गए हैं। हम यह पक्के तौर पर जानते हैं कि एफआईआई और कुछ ऑपरेटर कार्टेल बनाकर भारतीय बाजार को हर दिन अस्थिर करने में लगे हैं, जबकि किसी भी सूरत में ऐसा नहीं होना चाहिए। ऐसा कार्टेल बनाने पर भारतीयों पर हमेशा के लिए बंदिश लगा दी जाती है, लेकिन एफआईआई के बारे में हम इतनी ढील दे सकते हैं कि कुछ करोड़ रुपए की पेनाल्टी लगाकर उन्हें ट्रेड करने दिया जाए। वैसे, कितने अफसोस की बात है कि ब्रिटिशों के चले जाने के बाद भी अपने यहां ‘ब्रिटिश राज’ कायम है।
हम सब अच्छी तरह जानते हैं कि भारतीय शेयर बाजार में हर दिन का औसत कारोबार 1.6 लाख करोड़ रुपए का रहता है। यह पूरी दुनिया में दूसरा सबसे बडा वोल्यूम है। लेकिन एफआईआई की तरफ से 1000 करोड़ रुपए निकालना भी इस पर भारी पड़ता है। क्यों? पूरी दुनिया में हमारा इकलौता बाजार है जहां डेरिवेटिव सौदों में फिजिकल सेटलमेंट नहीं है। हम भारतीय हर साल सरकारी खजाने में 5 लाख करोड़ रुपए का टैक्स (टैक्स की औसत दर 15 फीसदी) भरते हैं। फिर भी हम इक्विटी बाजार में 5 लाख करोड़ रुपए का निवेश नहीं कर पाते और एफआईआई के निवेश के मोहताज बने हुए हैं! हमारी सारी नीतियां रिटेल निवेशकों के नहीं, बल्कि एफआईआई के माफिक हैं। दिक्कत यह है कि हमारे पास अपना बाजार बनाने के लिए कोई बैक-अप प्लान तक नहीं है।
11 फरवरी को तमाम भारतीय भ्रष्टाचार के खिलाफ सड़कों पर उतर रहे हैं। यह है अवाम की ताकत। परंपरा की ताकत हम पहले देख चुके हैं। 130 साल पुराने बदला सिस्टम ने बहुत से भारतीयों की किस्मत बना दी थी, जबकि 10 साल पुराने डेरिवेटिव सिस्टम बहुत से भारतीयों को बरबाद कर दिया है। कब तक अपने ही देश में भारतीयों को नजरअंदाज किया जाएगा और निवेशक समुदाय कब तक इस सौतेले बर्ताव को सहता रहेगा? कहीं न कहीं केंद्र सरकार की यह जिम्मेदारी तो बनती ही है कि वह शेयर बाजार से जुड़े 2 फीसदी भारतीयों के हितों की हिफाजत करे। आज मेरे साथ आवाज मिलाकर बोलिए…
हम भारतीय हैं और हम इस तरह अपने बाजार का नाश होते कतई नहीं देख सकते।
(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)
हम भारतीय हैं और हम इस तरह अपने बाजार का नाश होता कतई नहीं देख सकते।