खबर आई है कि पिछले हफ्ते पूंजी बाजार के 13 उस्तादों ने मुंबई में जुहू के फाइव स्टार होटल में एक मीटिंग की जिसमें तय किया गया कि उन्हें आगे कैसे और क्या करना है। इस मीटिंग में कुछ एफआईआई ब्रोकरों से लेकर प्रमुख फंड मैनेजरों व ऑपरेटरों ने शिरकत की। उनके बीच जो भी खिचड़ी पकी हो, लेकिन इससे इतना तो साफ हो गया है कि वे एक कार्टेल की तरफ काम कर रहे हैं जो मुक्त बाजार के सिद्धांतों के खिलाफ है। समझ में नहीं आता कि हमारी बाजार नियामक संस्था, सेबी इन क्रूर सच्चाइयों को अनदेखा कर कैसे भारतीय पूंजी बाजार का विकास कर सकती है? वैसे, इतिहास इस बात का साक्षी है कि सेबी हमेशा बाजार को उठाने के सौदों के खिलाफ कार्रवाई करती है, जबकि शॉर्ट सौदों को लेकर वह अपनी सारी आंखें मूंद लेती है।
हमें पूरा यकीन था कि अमेरिका में क्यूई-3 (क्वांटीटेटिव ईजिंग का तीसरा दौर) अभी नहीं आएगा क्योंकि सिस्टम में तरलता बढाने के दूसरे तमाम उपाय उपलब्ध हैं। इसलिए फेडरल रिजर्व के चेयरमैन बेन बरनान्के द्वारा शुक्रवार को जैक्शन होल में दिए गए भाषण से बहुतों को निराशा हुई होगी, हमें नहीं। अमेरिकी सरकार इस समय अल्कालिक बांड बेचेगी और 30 साल की लंबी परिपक्वता वाले बांड खरीदेगी। अमेरिका के अल्पकालिक बांड खरीदनेवालों की कमी नहीं है। बराक ओबामा सार्वजनिक तौर यह बात कह चुके हैं। उन्होंने यहां तक कहा कि अगर आप अमेरिका में इक्विटी बेचते हैं तो उस धन को लगाएंगे कहां? अमेरिकी बांड ही इसका विकल्प है क्योंकि विकास के कमजोर आंकड़ों के बावजूद अमेरिकी अर्थव्यवस्था का मूलाधार अब भी मजबूत है।
इस बीच बाजार को अपने शिकंजे में ले चुका कार्टेल हर दिन 2 बजकर 45 मिनट पर हमला किए जा रहा है। उसके लिए माहौल बनाने का काम किया है कि रिजर्व बैंक के इन बयानों ने कि मुद्रास्फीति अब भी काबू में नहीं आ रही है। यह हमलावर कार्टेल सिस्टम की इस कमजोरी से वाकिफ है कि कोई भी डीआईआई (घरेलू निवेशक संस्थाएं) या एचएनआई (हाई नेटवर्थ इंडीविजुअल या अमीर निवेशक) 2.45 बजे से लेकर 3.30 बजे तक खरीद का नया ऑर्डर नहीं डालता। उस दरमियान तो ज्यादातर लोगों को क्या हो रहा है, इसे देखने-समझने की फुरसत ही नहीं होती।
यह रिजर्व बैंक और सरकार की नाकामी है कि 12 बार ब्याज दरें बढ़ाने के बावजूद मुद्रास्फीति बेलगाम भागी चली जा रही है। उनकी सारी समयसीमाएं छलावा साबित हुई हैं। मुझे नहीं लगता कि अगले 12 महीनों में हकीकत में यह काबू में आएगी। हमारा मानना है कि ब्याज दरें बढ़ाना ही मुद्रास्फीति का सबसे बड़ा कारण है क्योंकि ब्याज दरों से प्रभावित हर कारोबारी अपनी सेवाओं का शुल्क या उत्पाद के दाम बढ़ा दे रहा है। रिजर्व बैंक की नीति ऊपर की एक फीसदी परत के लिए कारगर हो सकती है। लेकिन 99 फीसदी परतें उसकी नीति से महंगाई के दुष्चक्र में फंसती जा रही हैं। एक फीसदी को थामने की कोशिश 99 फीसदी लोगों की जिंदगियां दूभर किए जा रही है। यह सच्चाई फाइव स्टार एयरकंडीशन घरों में बैठकर नहीं महसूस की जा सकती।
किसानों को कर्ज में मिली 70,000 करोड़ रुपए की राहत ने कृषि उत्पादन बढ़ाने के बजाय गांवों में ऑडी से लेकर बीएमडब्ल्यू व मर्सिडीज जैसी कारों की मांग बढ़ा दी है, जबकि नौकरीपेशा तबका अपनी पहली क्लास के बच्चे की बढ़ी हुई स्कूल फीस तक जुटाने में पसीना-पसीना हुआ जा रहा है। उन्हें बच्चों की शिक्षा के लिए दूसरों के सामने हाथ फैलाना पड़ रहा है, कर्ज लेना पड़ रहा है। मुद्रास्फीति को नियंत्रण में लाने का एक ही तरीका है सप्लाई को बढ़ा देना और यह तभी संभव है जब कमोडिटी डेरिवेटिव्स में फिजिकल सेटलमेंट को खत्म कर दिया जाए। फिजिकल सेटलमेंट को तत्काल इक्विटी डेरिवेटिव्स पर लागू कर दिया जाना चाहिए।
हाल ही में समाचार एजेंसी ब्लूमबर्ग ने एक रिपोर्ट छापी है जिसमें बताया गया है कि अल्गोरिदम ट्रेडिंग कैसे शेयर बाजार की गहराई व व्यापकता को मारकर उसे संकुचित बनाती जा रही है। इससे धीरे-धीरे आम ब्रोकर समुदाय ही खत्म हो जाएगा क्योंकि अल्गोरिदम ट्रेडिंग के लिए महज एक पीसी (परसनल कंप्यूटर) और सॉफ्टवेयर चाहिए होता है। उसके लिए ब्रोकरों जैसे तामझाम व इंफ्रास्ट्रक्चर की कोई जरूरत नहीं होती।
इसके साथ ही कैश बाजार को विकसित करने के बजाय ज्यादा से ज्यादा डेरिवेटिव उत्पादों को बढ़ावा देने की गलत नीतियों के चलते रिटेल निवेशकों की बची-खुची स्थिति भी मिटती जा रही है। शेयर बाजार में ब्रोकिंग का पूरा धंधा ऊपर की पांच फर्मों के हाथों में सिमटा है। उसी तरह जैसे देश में ऑडिट का काम ऊपर की पांच बड़ी ऑडिट फर्मों के कब्जे में है। ब्रोकरों के एक्सचेंज के रूप में जाना जानेवाला बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) हर स्तर पर नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) से पिछड़ता जा रहा है। मुझे नहीं लगता कि अब छोटे व मध्यम आकार के पुराने ब्रोकरों के लिए कोई गुंजाइश बची है। उन्हें फौरन किसी दूसरे धंधे की तलाश में लग जाना चाहिए।
खैर, सप्ताहांत पर अमेरिका डाउ जोन्स सूचकांक बढ़ा है। फिर भी कल सोमवार को हमारे यहां मंदड़ियों की रैली देखी जा सकती है। बीते सेटलमेंट के आखिरी दो कारोबारी दिनों में निफ्टी में 5000 की सीरीज में कॉल ऑप्शंस में 8 करोड़ शेयरों से ज्यादा का वोल्यूम हुआ है। यह सेबी के 1 सितंबर से लागू होनेवाले नियम के चलते मुनाफे को यहां से वहां ट्रांसफर करने का शातिर खेल हो सकता है।
ताजा हाल यह है कि मंदड़िए किसी भी सूरत में निफ्टी को 4000 तक पहुंचाने में लगे हैं। वे कह रहे है कि अपनी पूंजी बजाकर चलो। हम कहते हैं कि औरों की कमजोरी को अपनी ताकत बना डालो। आपको ध्यान होगा कि जब निफ्टी 2800 पर था, तब हमने कहा था कि वह 6000 तक पहुंचेगा और ऐसा होकर रहा। अब हमारा मानना है कि भले ही निफ्टी 4000 तक पहुंच जाए, लेकिन 18 महीनों में इसका 7000 पर पहुंचना तय है। ऐसा होने से कोई नहीं रोक सकता।