मैं लगातार इस बात पर कायम हूं कि भारत सचमुच विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) के लिए जबरदस्त आकर्षण का स्रोत बना हुआ है। यूरोप के ऋण संकट ने विदेशी पूंजी के प्रवाह को भारत की तरफ मोड़ा है। यह बात पिछले कुछ दिनों में वित्त मंत्रालय के आला अधिकारी भी स्वीकार कर चुके हैं।
जिस तरह कल भारतीय रिजर्व बैंक ने इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए विदेशी वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) की शर्तों में ढील दी और गवर्नर डी सुब्बाराव अब रुपए को पूंजी खाते में परिवर्तनीय बनाने की बात कर रहे हैं, वह सब टी-20 मैचों की तरह सही वक्त पर लिए जा रहे सही फैसले हैं।
संदेश एकदम साफ है। हम किसी तरह के विदेशी पूंजी प्रवाह को संभालने को तैयार हैं और हमारा विदेशी मुद्रा भंडार इस समय जरूरत से काफी ज्यादा है। भारत सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के विनिवेश से 40,000 करोड़ रुपए जुटाने की राह पर है। 3 जी स्पेक्ट्रम की नीलामी से जितनी उम्मीद थी, उससे ज्यादा रकम सरकार को मिल रही है। यह रकम अब 60,000 करोड़ रुपए से ज्यादा हो सकती है, जबकि बजट में इसका अनुमान 35,000 करोड़ रुपए का था। इसके अलावा सरकार को 15,000 से 20,000 करोड़ रुपए 2 जी स्पेक्ट्रम से मिलने जा रहे हैं। इसका मतलब हुआ कि सरकार को इस माध्यम से लगभग 80,000 करोड़ रुपए मिल सकते हैं जो शुरुआती लक्ष्य से 45,000 करोड़ रुपए अधिक है। जाहिर है, इससे केंद्र सरकार पर राजकोषीय घाटे का बोझ काफी हल्का हो जाएगा।
देश में इक्विटी पूंजी का प्रवाह जितना ज्यादा होगा, केंद्र सरकार के कर्ज की लागत उतनी घटती जाएगी क्योंकि उसे पहले की तुलना में कम कर्ज लेना पड़ेगा। अभी तो यही हालत है कि जब दुनिया के दूसरे देश नोट छापकर धन जुटा रहे हैं, तब भारत धन के प्रवाह को समेटने में लगा हुआ है।
मैं अपने देश के बारे में बार-बार यही कहना चाहूंगा कि यहां सब कुछ चकाचक है। मैं फिर कहूंगा कि निफ्टी के बारे में मेरा लक्ष्य 5700 से 6400 और 7000 अंक तक का है, भले ही पिग्स (पुर्तगाल, इटली, आयरलैंड, ग्रीस व स्पेन) देशों का ऋण संकट बरकरार रहता है।
कुछ बिजनेस न्यूज चैनल गोल्डमैन सैक्स के बाद अमेरिकी सिक्यूरिटीज एक्सचेंज कमीशन (एसईसी) द्वारा मॉरगन स्टैनली के डेरिवेटिव सौदों की जांच का मसला उठा रहे हैं। लेकिन इसे जान-बूझकर कुछ वजहों से ज्यादा ही बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है। हमें समझना चाहिए कि यह बाजार को गिराने के लिए की जा रही मंदड़ियों की चाल है। बाजार गिरेगा तभी तो वे सस्ते भावों पर खरीद कर शॉर्ट सेलिंग में बेचे गए सौदों से लाभ कमा सकेंगे।
भारतीय अर्थव्यवस्था की जो स्थिति है और यहां निवेश के जिस तरह के अवसर हैं, उसे देखते हुए मंदी की धारणा पालने का कोई तुक नहीं है। इस समय तो आपका भरोसा ही मायने रखता है। अगर आप मेरी राय से इत्तेफाक रखते हैं तो पूरे विश्वास के साथ बाजार में जमकर खरीद कीजिए। नहीं तो इस समय मंदड़ियों ने बेचो-बेचो का शोर मचा रखा है और आप उनके शोरशराबे के शिकार हो ही सकते हैं।
आप जो कर सकते हैं, उसे करने में क्या कमाल! कमाल तो वह काम करने में है जिसके बारे में आप सोचते हैं कि उसे आप नहीं कर सकते।
(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है । लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)