औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) के ताजा आंकड़े आ चुके हैं। दिसंबर में 16.8 फीसदी बढ़त के साथ इसने सोलह सालों का शिखर छू लिया है। भले ही यह छलांग वैश्विक मंदी के दौरान साल भर पहले इसी महीने में 0.2 फीसदी की गिरावट की तुलना में हो, लेकिन इसने हमारी अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौट आने की पुष्टि कर दी है। सोमवार को बाजार खुलेगा तो इस खुशी का खुमार माहौल में छाया रहेगा। ऊपर से सोमवार को अमेरिकी बाजार बंद है। इसलिए हमारे सटोरियों को मंगलवार तक वहां की कोई हवा नहीं लगेगी। लेकिन एक बात मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि रुख मंदड़ियों के खिलाफ है क्योंकि बाजार उन भावों से ऊपर चल रहा है जिन पर उन्होंने शॉर्ट सेलिंग कर रखी है।
बीते हफ्ते बुधवार को बाजार के आखिरी 15 मिनट में 4755 के औसत भाव पर 60 लाख निफ्टी फ्यूचर्स खरीदे गए। जाहिर है कि शार्ट कवरिंग के चक्कर में यह खरीद की गई है क्योंकि एफआईआई आमतौर पर 3.15 बजे सौदे नहीं काटते। इसलिए यकीनन गुरुवार को बाजार बढकर, निफ्टी के 4800 तक पहुंच कर खुलना था, जिसका अनुमान सीएनआई की टीम ने पहले ही बता दिया था और ऐसा हुआ भी। यहां एक बात नोट करनी जरूरी है कि निफ्टी में जब भी ऑपरटरों की तरफ से शॉर्ट कवरिंग या खरीद होती है तो यह 50-100 अंकों के लिए नहीं की जाती। यह रेंज तो रिटेल या हर दिन खेलनेवाले सटोरियों की है। आप समझ सकते हैं कि मैं क्या कहना चाहता हूं…
मंदड़ियों ने निफ्टी को 4650 अंक से नीचे ले जाने की हरचंद कोशिश की। यह तय बात है कि मंदड़िये तीन से चार दिन तक अपना खेल खेलने की कोशिश करते हैं। जब उन्हें लगता है कि अब बाजार को खरीद का समर्थन मिल रहा है और उनकी बिकवाली के बावजूद बाजार बढ़ रहा है, तब वे फंस जाते हैं। वे सौदों का रुख पलट देते हैं। इस चक्कर में फजीहत तकनीकी विश्लेषकों और उनके चार्टों की हो जाती है। वे खांटी कारोबारी और निवेशक होते हैं और कभी भी घाटा खाने के लिए ट्रेडिंग नहीं करते।
इधर भारत में निवेश को लेकर एफआईआई का रुख बराबर सकारात्मक बना हुआ है। सीएनआई द्वारा जारी नई अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक दिसंबर की तिमाही में एफआईआई ने ए और बी ग्रुप की 322 कंपनियों में अपनी इक्विटी हिस्सेदारी बढ़ा ली है, जबकि सितंबर की तिमाही में ऐसी कंपनियों की संख्या 239 थी। इस दौरान बाजार में बेचने का सिलसिला एक्सचेंज ट्रेडेड फंडों (हेज फंडों) ने ही चलाया है। कुछ अल्पकालिक फंड भले ही बेच रहे हों, लेकिन दीर्घकालिक फंडों की खरीद जारी है। एचएनआई (हाई नेटवर्थ इंडीविजुअल), प्रवर्तक और एफआईआई अब भी स्तरीय, अच्छी व मजबूत कंपनियों के शेयर खरीद रहे हैं।
उद्योग की तरफ से भी अच्छी खबरें आ रही हैं। गोदरेज और डीएलएफ की तरफ से आधिकारिक तौर पर कहा जा चुका है कि मांग तेजी से बढ़ रही है और बिक्री की मात्रा में इजाफा हो रहा है। लक्ष्मी मित्तल और रतन टाटा भी ऐसी ही बातें कह चुके हैं। खबरों के अनुसार टाटा स्टील ने 5700 करोड़ रुपए जुटाए हैं। यह सब कुछ दिखाता है कि निजी क्षेत्र का औद्योगिक और इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश बढ़त पर है। वित्त मंत्री तक ऑन-रिकॉर्ड कह चुके हैं कि अक्टूबर से मार्च तक की आर्थिक विकास दर 7.75 फीसदी के आसपास रहेगी। जीडीपी की ऐसी विकास दर के बीच निफ्टी के 3000 तक जाने की बात करना दलाल पथ के 29वें माले से कूदकर खुदकुशी करने जैसा होगा। अरे, 3000 तक जाने से पहले उन्हें 4600 और 4500 का द्वार तोड़ना पड़ेगा, जहां पांच विशालकाय फंड अंगद के पैर की तरह जमे पड़े हैं।
निफ्टी भारी कारोबार के साथ 4820 अंक की पहली बाधा तोड़ चुका है और अब वह एक क्रम से 4850, 4910, 4950 और 5000 का स्तर पार करनेवाला है। असल में अंकों की ये सीमा रेखाएं तकनीकी चार्टों की देन हैं जिन्हें लांघा ही जाना है। पिछले 12 महीनों से ऐसा होता आया है। सेंसेक्स के 10000 पर बाधा थी, फिर 12000, फिर 14700 और फिर 15000 से होते-होते 16500 और 18000 तक जा पहुंची। बाजार ने इन सारी सीमाओं को तोड़ डाला और ऐसा तब हुआ जब तकनीकी विश्लेषक और उनके चार्ट कह रहे थे कि ऐसा हो पाना असंभव है। मजे की बात है कि इन लोगों ने सेंसेक्स के 18000 पर पहुंचने पर पाला बदल लिया और 21000 अंक की बात करने लगे। तभी बाजार लुढ़क गया। ये लोग अब निफ्टी के 3000 और सेंसेक्स के 5600 तक जाने की बात कर रहे हैं। मगर आप जानते ही हैं कि असल में क्या होनेवाला है।
मैंने यहां अपने तथ्यों और आंकड़ों के साथ अपने विचार रखे हैं और यह कतई जरूरी नहीं है कि आप इससे सहमत हों। आप हर पक्ष और राय गौर करने के बाद अपने विवेक, जोखिम उठाने की अपनी क्षमता के आधार पर जो फैसला करेंगे, वही आपके नफा-नुकसान का सबब बनेगा।
एक पुरानी कहावत है कि कढ़ा आदमी अक्सर पढ़े आदमी से बेहतर होता है।
(लेखक बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में सूबीबद्ध कंपनी सीएनआई रिसर्च के सीएमडी हैं)