हफ्ते का पहला दिन कारोबारियों के लिए बेहद बोरिंग रहा। निफ्टी में किसी तरह का कोई उत्साह नहीं नजर आया, जबकि मुद्रास्फीति का मसला ऐसे मोड़ पर है जहां उसे प्रतिक्रिया करनी चाहिए। हमारा मानना था कि निफ्टी 5136 का स्तर पार करने के बाद अच्छी-खासी चमक दिखाएगा क्योंकि ज्यादातर कारोबारी मुद्रास्फीति के बढ़ने के बाद शॉर्ट सेलिंग कर चुके हैं। यहां तक कि वे रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) में शॉर्ट हैं क्योंकि इस सेटलमेंट में इसका चार्ट 1037 पर टॉप दिखा रहा है। लेकिन निफ्टी थोड़ा-बहुत इधर-उधर होने के बाद 5136 पर बंद हुआ जो ब्रेक आउट का स्तर है। अपने आप में इस स्तर का कोई मतलब नहीं है क्योंकि मेरी राय में निफ्टी जल्दी ही 5200 अंक को पार कर जाएगा और मई अंत तक 5600 तक जा सकता है।
बाजार में इस समय केवल इस जेब से निकालकर उस जेब में डालनेवाले सौदे हो रहे हैं। तमाम कारोबारी शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स और लांग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स के चक्कर में पहले से खरीदे गए शेयर दूसरे खाते में ट्रांसफर कर रहे हैं। ऐसा हाल वित्त वर्ष के अंत तक रहेगा क्योंकि अधिकांश कारोबारी अपनी होल्डिंग इधर-उधर करके टैक्स देने से बचने की जुगत भिड़ाते हैं। ऐसा म्यूचुअल फंडों के फंड मैनेजर भी करेंगे। वे घाटा दिखाकर टैक्स से बचने के लिए ब्लॉक डील के जरिए एक स्कीम के पोर्टफोलियो के शेयर दूसरी स्कीम में डाल देंगे।
अभी तक अग्रिम कर संग्रह के आंकड़े अच्छे रहे हैं। यह दिखाता है कि चालू वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में कंपनियों की आय यकीकन काफी अच्छी रही है। बहुत सारे विदेशी फंड के प्रमुख भी अब भारत में निवेश की सभावनाओं का बखान कर रहे हैं। इसलिए आनेवाले दिनों में देश में विदेशी फंड का प्रवाह बढ़ना तय है। शनिवार को वित्त मंत्री का वह बयान कोई मामूली बयान नहीं है कि हम रुपए की पूर्ण परिवर्तनीयता की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। इससे देश में विदेशी मुद्रा की बाढ़ आ सकती है।
बहुत से लोगों को पता नहीं होगा। इसलिए बता दूं कि इस साल अब तक विदेशों में भारत का निवेश 50 अरब डॉलर के पार जा चुका है। यह वाकई काफी महत्वपूर्ण है और स्पष्ट करता है कि रुपए में दांव लगानेवाली उड़नछू किस्म की एफआईआई (विदेशी संस्थागत निवेशक) पूंजी का प्रभाव धीरे-धीरे कमजोर हो रहा है। साथ ही भारतीयों ने देश के बाहर जो संपदा खड़ी की है, उससे भारतीयों की बढ़ने और फैलने की अदम्य चाहत का अहसास होता है। और यह भी कि भविष्य में विदेशी मुल्कों को पूंजी निवेश के लिए भारत पर काफी ज्यादा निर्भर रहना पड़ेगा।
इसलिए रुपए को पूरी तरह परिवर्तनीय मुद्रा बनाने का मुनासिब वक्त करीब आता जा रहा है। मुझे यकीन है कि ऐसा होने पर चार-पांच सालों के भीतर देश में कम से कम एक लाख करोड डॉलर का निवेश आएगा। जो लोग इसके लिए तैयार होंगे, इस मौके को पकड़ेंगे, उन्हें इसका फायदा भी निश्चित तौर पर मिलेगा। भारत के पास अपने समकक्ष देशों की तुलना में ज्यादा खरबपति हैं। सीएनआई ने अपने विकास की राह के साथ ही अपने सहयोगियों, सदस्यों व बाजार की भावी दशा-दिशा तय करते वक्त इन सारे पहलुओं को ध्यान में रखा है।
जो भी अल्पकालिक नजरिया रखते हैं वे तेजी हो या मंदी, दोनों ही हालात में कष्ट उठाएंगे क्योंकि छोटी अवधि के निवेशकों को डर और लालच मौका पड़ने पर धर दबोचते हैं। भारत में अभी तक दीर्घकालिक निवेशकों ने बाजार में मध्यस्थ कारोबारियों तक से ज्यादा पैसा बनाया है क्योंकि मध्यस्थ कारोबारी तो हमेशा छोटी अवधि के निवेशकों को ही साधने में लगे रहते हैं। इस अंतर की तुलना टेस्ट मैच और टी-20 से की जा सकती है।
मेरा मानना है कि भले ही अग्रिम टैक्स की देनदारियां हों, एनएमडीसी के इश्यू में लगी पूंजी हो, साल के अंत में हाथ समेटने या ताजा फाइनेंसिंग का सवाल हो, निफ्टी को बढ़ना ही बढ़ना है क्योंकि उसमें लांग सौदों से कहीं ज्यादा शॉर्ट सौदे हो रखे हैं। मैंने जो भी कारक गिनाए हैं, वे निफ्टी की राह में कभी भी बाधा नहीं बन सकते।
सफलता का पुराना फॉर्मूला नए हालात में अक्सर काम नहीं आता। पीछे मुड़-मुड़ कर देखने से राह में ठोकर लगने का अंदेशा बढ़ जाता है।
(चमत्कार चक्री एक काल्पनिक नाम है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है लेकिन फालतू के वैधानिक लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। अंदर की बात बताना और सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)