एक चैनल पर मैं उसी शख्स को देख रहा था जिसने दावा किया था कि निफ्टी 3800 तक गिर जाएगा। मैं उसका चेहरा देखता रह गया क्योंकि वो अब भी कह रहा था कि बाजार में कोई दम नहीं है, तेजी जल्दी ही पिघल जाएगी और अभी कुछ नहीं, बस शॉर्ट कवरिंग चल रही है और बाजार गिरावट के मुहाने पर खड़ा है। अब भी वह शख्स दावे के साथ कह रहा था कि 3800 नहीं तो बाजार (निफ्टी सूचकांक) जरूर गिरकर 4500 अंकों तक चला जाएगा।
बिजनेस चैनलों पर आनेवाले ज्यादातर एनालिस्ट इसी तरह की बातें कर रहे हैं, जबकि हकीकत यह है कि बाजार दूसरी ही दिशा में जा रहा है और लगातार नई ऊंचाई पर जा रहा है। आज सुबह 10.25 बजे जब मैं यह कॉलम लिख रहा था तब बाजार नई ऊंचाई से महज 40-50 अंक दूर था। मुझे पूरा यकीन है कि इस सेटलमेंट में बाजार नए शिखर पर पहुंचेगा।
हालांकि बाजार में अब भी शॉर्ट कवरिंग की ही चर्चा चल रही है, लेकिन मेरे सूत्रों का कहना है कि बहुत सारे स्टॉक हैं जिनमें एफआईआई से लेकर निहित हितों वाले निवेशक खरीदने की जुगत भिड़ा रहे हैं। एनएवी (शुद्ध आस्ति मूल्य) का मसला इसका प्रमुख प्रेरक है। साथ ही एलआईसी के उस बयान ने भी इसे आधार दिया है कि बाजार (बीएसई सेंसेक्स) को 21,000 अंक तक जाना चाहिए। इस बयान को हल्के से नहीं लिया जा सकता क्योंकि यह एक बीमा कंपनी का नहीं, एक सरकारी संस्थान के जरिए आया सरकार का ही बयान है। मुझे यह भी लगता है कि जब तक भारत में एक तरह की आचार संहिता नहीं आती, कोड ऑफ कडक्ट नहीं बनता, तब तक वित्तीय मामलों में तमाम एनालिस्ट, निहित स्वार्थ वाले प्रवर्तक या फ्रॉड करनेवाले ऑपरेटर ऊल-जलूल बयानबाजी या हरकतें करते करेंगे।
निवेशकों ने बहुत बार ऐसी शिकायत की है कि किसी शेयर में खरीद की सिफारिश के बाद उसका भाव 20 से 40 फीसदी घट गया है यानी शेयर ने बाजार में अच्छा रुख नहीं दिखाया है। असल में बहुत सारे पहलू निवेशक देख नहीं पाते। देखा जाना चाहिए कि लाभ देनेवाली खरीद सिफारिशों का अनुपात कुल सिफारिशों में कितना है। एक बात और है कि जब खरीद की कॉल या सलाह दी गई तब बाजार की स्थिति भिन्न थी और कुछ समय के बाद यह स्थिति बदल जाती है और भावों में गिरावट आ जाती है। तीन ऑपरेटर स्टॉक के साथ खेलते हैं और रिटेल निवेशकों के हित को देखते हुए उसके भाव ऊपर-नीचे करते हैं। चार निवेशक कंपनी के बारे में की गई रिसर्च पढ़ते ही नहीं और बंधी-बंधाई सोच के हिसाब से शेयर खरीद लेते हैं और फिर पछताते हैं। निवेशकों की मानसिकता यह है कि वे एक से आठ हफ्ते में रिटर्न चाहते हैं। यह उनके लिए लांग टर्म बन गया है, जबकि उनके लिए शॉर्ट टर्म का मतलब एक से आठ घंटे हो गया है। दिक्कत यह है कि वे इसी पैमाने पर किसी शेयर की प्रगति को परखने की कोशिश करते हैं।
निवेशकों के लिए बेहतर तो यह होता कि वे वास्तविक रिसर्च पढ़ते, रिटर्न कितने समय में आ सकता है, यह समझते और इस समयसीमा को ध्यान में रखते हुए निवेश करते। आप लाखों, करोड़ो में निवेश करते हैं। लेकिन मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि आप इसमें से 10,000 रुपए का भी निवेश रिसर्च के आधार पर नहीं करते जिससे आपकी ही वित्तीय सेहत को नुकसान होता है और आप ही इसके लिए जिम्मेदार हैं। अपनी गलती की जिम्मेदारी दूसरों पर ढेल देना एक कायराना हरकत है।
सीएनआई ने एक बार फिर ऐसा कर दिखाया है और सारी दुनिया को साबित कर दिया है कि वह भारतीय बाजार में मध्यम से लेकर दीर्घकालिक निवेश के बारे में बाजार की दशा-दिशा का अनुमान लगाने में सर्वश्रेष्ठ रही है। यहां आपको याद दिला दूं कि सीएनआई एक रिसर्च कंपनी है। वह न तो ब्रोकर है और न ही बाजार की ऑपरेटर। दूसरे लोग बाजार में अपने वित्तीय जुड़ावों या स्वार्थों के आधार पर खरीद-बिक्री का अनुमान लगाते और सिफारिश करते हैं। लेकिन सीएनआई बिना किसी जुड़ाव के अपनी सलाह देती है और उसकी सिफारिशों का नतीजा शानदार रहा है।
हम हमेशा हर किसी को संतुष्ट नहीं रख सकते क्योंकि हर किसी इंसान की मानसिकता अलग होती है। लेकिन टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, आईडीबीआई, एसबीआई, एसीसी, आईएफसीआई, एस्सार ऑयल, बॉम्बे डाईंग, आईएमएफए और सेंचुरी जैसे कई शेयरों की ताकत को सबसे पहले सीएनआई ने पहचाना और इन सभी ने संजीदा किस्म के निवेशकों को उनके पैसे पर अच्छा रिटर्न दिया है। यह भी सच है कि बाजार चाहे नीचे जाए या ऊपर, सीएनआई अपने संजीदा सदस्यों को कभी नुकसान में नहीं पड़ने देती। वह हमेशा उनके हितों का ख्याल रखती है।
ऐसा बी ग्रुप के शेयरों पर भी लागू होता है। लेकिन यहां काफी धैर्य की दरकार होती है। बी ग्रुप के शेयर हमेशा अपनी चाल से चलते हैं, लेकिन इनमें ए ग्रुप की तुलना में ज्यादा चंचलता होती है। अभी बाजार की जो व्यवस्था है उसके चलते इनके भाव कम समय में उठते-गिरते हैं। इन्हें दोगुना होने में महज पांच दिन लगते हैं। लेकिन फिर 20-20, 10-10, 10-10, 10 होते हुए बी ग्रुप के ये शेयर ट्रेड टू ट्रेड श्रेणी में पहुंच जाते हैं। ऑपरेटर 20-20 के इस खेल का इस्तेमाल कई मौकों पर करते हैं। उन्हें सही वक्त का अंदाजा रहता है। इसलिए जब भी चाहते हैं भाव नीचे गिरा देते हैं। आखिरकार, निवेशकों को नुकसान उठाना पड़ता है क्योंकि कभी लालच तो कभी डर के चलते वे गलत फैसले करते हैं। इसके लिए असली दोष उन्हीं का है। आज के हालात में केवाईएस यानी अपने स्टॉक को जानना बहुत जरूरी है। किसी स्टॉक को अच्छी तरह जान लेने के बाद ही उसमें निवेश करें। लेकिन दिक्कत यह है कि हम अच्छी रिसर्च के बजाय सुनी-सुनाई बातों और कानाफूंसी पर ज्यादा यकीन करते हैं। यह तो वही बात हुई कि…
मुझे किसी अच्छे लेखक की लिखी हुई बातें नहीं, बल्कि फुसफुसा कर कही गई बातें ज्यादा पसंद हैं।
(चमत्कार चक्री एक काल्पनिक नाम है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है लेकिन फालतू के वैधानिक लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। अंदर की बात बताना और सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)