लोग कहते हैं कि भारत में निवेश की लांगटर्म स्टोरी खत्म हो गई। लेकिन ऐसा अमेरिका, जापान या जर्मनी में हो सकता है, भारत में नहीं। कारण, बड़े देशों में अर्थव्यवस्था या तो ठहराव की शिकार है या कांख-कांख कर बढ़ रही है, जबकि भारत में असली उद्यमशीलता तो अब करवट ले रही है। भारतीय अर्थव्यवस्था को कम-से-कम अभी 25 साल लगेंगे खिलने में। तब तक यहां फलता-फूलता रहेगा लांगटर्म निवेश। परखते हैं ऐसा ही एक निवेश…औरऔर भी

स्टर्लिंग बायोटेक दवा उद्योग से जुड़ी कंपनी है। मुख्य रूप से जेलैटिन बनाती है। कंपनी का दावा है कि दुनिया के जेलैटिन बाजार में उसकी 7.5 फीसदी और भारतीय बाजार में 60 फीसदी हिस्सेदारी है। वह मानव कोशिकाओं में बहुतायत से पाया जानेवाला पोषक यौगिक, यूबिक्विनोन या को-एनजाइम क्यू-10 भी बनाती है। वह फरमेंटेशन के जरिए यह उत्पाद बनानेवाली दुनिया की चुनिंदा कंपनियों में शुमार है। गुजरात की कंपनी है। वडोदरा जिले के मासर गांव में उसकाऔरऔर भी

अरंडी बड़े ही जीवट वाला ऐसा पौधा है जो देश में उत्तर से दक्षिण तक कहीं भी आपको सड़क किनारे उगा हुआ मिल जाएगा। गुजरात, राजस्थान व आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में जमकर इसकी व्यावसायिक खेती होती है। भारत दुनिया में अरंडी व इससे बने उत्पादों का सबसे बड़ा उत्पादक है। दुनिया के बाजार का 65 फीसदी हिस्सा इसके पास है। अरंडी की खली से लेकर तेल तक में औषधीय गुण होते हैं। हिंदी भाषी इलाकों केऔरऔर भी

डाई अमीन्स एंड केमिकल्स वडोदरा की कंपनी है। 1982 से विशिष्ट किस्म के रसायन बना रही है। देश के इथाइल अमीन्स के संगठित बाजार की वह इकलौती खिलाड़ी है। इथाइल अमीन्स के एक सेगमेंट पिपराज़ाइन के घरेलू बाजार का लगभग 40 फीसदी हिस्सा उसके कब्जे में है। बहुत सारे उत्पाद उसने देश में पहली बार बनाकर बाजार में उतारे हैं। इस समय वह करीब 20 रसायन बनाती है जिनकी मुख्य खपत दवा उद्योग में होती है। कंपनीऔरऔर भी

शेयर बाजार में भले ही छोटे समय में ऑपरेटरों और उस्तादों की चलती हो, लेकिन लंबे समय में हमेशा निवेशकों की ही चलती है। बस जरूरत है तो मजबूत व संभावनामय कंपनियों के चयन की। और, बाजार में ऐसी कंपनियों की कोई कमी नहीं है। एक ताजा अध्ययन में बाजार में लिस्टेड ऐसी 500 कंपनियों की सूची पेश की गई है, जिन्होंने पिछले दस सालों (नवंबर 2001 से लेकर नवंबर 2011) में निवेशकों को लाभांश व शेयरोंऔरऔर भी

कंपनियों के शेयरों के भाव इस पर भी निर्भर करते हैं कि उसे चाहनेवाले कितने हैं। दिक्कत यह है कि हमारे यहां चाहनेवालों में निवेशक कम, ऑपरेटर ज्यादा हैं। लेकिन लंबे समय में ऑपरेटरों का करतब नहीं, कंपनी की असली ताकत ही चलती है। नहीं तो जिस पेंटामीडिया ग्राफिक्स को केतन पारेख ने फरवरी 2000 में 2275 रुपए तक उठा दिया था, वह आज 1.33 रुपए पर नहीं डोल रहा होता। इसलिए, ट्रेडिंग में सब चलता है,औरऔर भी

कहने को अलेम्बिक लिमिटेड 104 साल पुरानी 30 जुलाई 1907 को बनी भारतीय दवा कंपनी है। ललित मोदी की जगह आईपीएल के चेयरमैन व कमिश्नर बने चिरायु अमीन इसके सीएमडी हैं। एक संयंत्र वडोदरा (गुजरात) तो दूसरा संयंत्र बड्डी (हिमाचल प्रदेश) में है। दुनिया के लगभग 75 देशों में उसकी पहुंच है। कल उसने चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के नतीजे घोषित किए हैं। इनके मुताबिक जून 2011 में खत्म तिमाही में उसने 39.55 करोड़ रुपएऔरऔर भी

वोल्टैम्प ट्रांसफॉर्मर्स लिमिटेड (बीएसई – 532757, एनएसई – VOLTAMP) नाम के अनुरूप बिजली के ट्रांसफॉर्मर बनाती है, अलग-अलग तरह के। 1967 से इसी काम में लगी है। वडोदरा (गुजरात) में उसकी फैक्टरी है। जर्मनी की दो कंपनियों मोरा और एचटीटी के साथ उसका तकनीकी गठबंधन है। कंपनी सरकारी व अर्ध-सरकारी परियोजनाओं, राज्य बिजली बोर्डों, रिफाइनरी, उर्वरक संयंत्र, फार्मा, स्टील, कागज व सीमेंट जैसे उद्योगों को अपने उत्पाद बेचती है। एबीबी, सीमेंस व एल एंड टी जैसी इंजीनियरिंगऔरऔर भी