ज़िंदगी इतनी अनिश्चित नहीं होती, दुनिया इतनी जटिल नहीं होती, लोग इतने कुटिल नहीं होते तो जीने में मज़ा ही क्या रहता! सब कुछ रूटीन, बेजान, एकदम ठंडा!! संघर्ष की ऊष्मा ही तो जीवन है।और भीऔर भी

जब वर्तमान बेकार और भविष्य अनिश्चित हो, तभी कोई अतीतजीवी बनता है। वरना, किसी को इतनी फुरसत कहां कि गुजरे कल को महिमामंडित करता फिरे! अतीतजीविता मर्ज का लक्षण है, निदान नहीं।और भीऔर भी