विश्वास का संकट
सत्ता की विश्वसनीयता हमेशा संदिग्ध होती है। इसलिए वह हर विरोधी आवाज़ को अविश्सनीय बनाने में जुटी रहती है। उसकी कोशिश रहती है कि हर व्यक्ति, हर संस्था को अविश्वसनीय बना दो ताकि लोग इसे आम मानकर हताश हो जाएं।और भीऔर भी
सत्ता की विश्वसनीयता हमेशा संदिग्ध होती है। इसलिए वह हर विरोधी आवाज़ को अविश्सनीय बनाने में जुटी रहती है। उसकी कोशिश रहती है कि हर व्यक्ति, हर संस्था को अविश्वसनीय बना दो ताकि लोग इसे आम मानकर हताश हो जाएं।और भीऔर भी
होना यह चाहिए था कि निजी क्षेत्र की जीवन बीमा कंपनियां ऐसी होड़ देती हैं कि ग्राहक सरकारी कंपनी एलआईसी को छोड़कर उनकी तरफ दौड़े चले आते। लेकिन साल 2000 में जीवन बीमा कारोबार को खोलने के बाद बराबर हो रहा है इसका उल्टा। बीमा नियामक संस्था, आईआरडीए (इरडा) के ताजा आंकडों के मुताबिक फरवरी 2012 तक एलआईसी की कुल गैर-एकल प्रीमियम वाली व्यक्तिगत पॉलिसियों की संख्या 2,65,37,802 हो गई है। यह संख्या फरवरी 2011 तक 2,53,60,881औरऔर भी
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