अपने यहां विदेशी व देशी संस्थाओं के साथ बड़े निवेशकों में आते हैं एचएनआई या हाई नेटवर्थ इंडीविजुअल। डेरिवेटिव सेगमेंट में तो ये संस्थाओं पर भी भारी पड़ते हैं। कोटक वेल्थ मैनेजमेंट की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक 25 करोड़ रुपए से ज्यादा निवेशयोग्य धन रखने वाले ऐसे लोगों की संख्या करीब 1.17 लाख हैं। इन्होंने अपने धन का करीब 38% इक्विटी में लगा रखा है। ट्रेडिंग रणनीति में इन पर भी रखें ध्यान। अब दिशा मंगल की…औरऔर भी

ट्रेडिंग तो हर कोई पैसे बनाने के लिए करता है। लेकिन कुछ लोगों का ज्यादा ध्यान इस बात रहता है कि बाज़ार की चालढाल को अच्छी तरह समझकर बेहतर ट्रेडर कैसे बना जाए। वे दूसरों से मिली हर टिप या जानकारी को खुद परखते हैं और अपने व्यक्तित्व के अनुरूप ट्रेडिंग सिस्टम विकसित करते हैं। घाटा खाने पर सिर नहीं धुनते, बल्कि इसकी वजह समझकर कमियां दूर करते हैं। अब बढ़ते हैं मंगलवार की ट्रेडिंग की ओर…औरऔर भी

जूडो-कराटे ही नहीं, गीता तक में भगवान श्रीकृष्ण ने स्थितप्रज्ञ होने की सलाह दी है। ट्रेडिंग में भी कहते हैं कि अपनी भावनाओं को वश में रखो, उन्हें ट्रेडिंग पर कतई हावी मत होने दो। ऐसा करना ज़रूरी है। लेकिन क्या कामयाबी के लिए इतना पर्याप्त है? आप ही नहीं, दुनिया भर के ट्रेडरों का अनुभव इसका जवाब नहीं में देगा। दरअसल, बाज़ार शक्तियों की पूरी मैपिंग आपके दिमाग में होनी चाहिए। पकड़ते हैं मंगलवार का ट्रेड…औरऔर भी

बहुत से लोगों में डर बैठा हुआ है कि अभी विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) के दम पर शेयर बाज़ार जिस तरह उठ रहा है, वह 16 मई को एनडीए की सरकार न बनने पर बैठ सकता है। यकीनन ऐसा होगा। पर ज्यादा समय के लिए नहीं क्योंकि दुनिया के पेंशन फंड भारत में निवेश नहीं करेंगे तो जरूरी रिटर्न हासिल नहीं कर सकते। इसलिए भारत में निवेश एफआईआई की मजबूरी है। अब समझते है मंगलवार की दशा-दिशा…औरऔर भी

शेयरों के भाव लंबे समय में यकीनन कंपनी के कामकाज और भावी संभावनाओं से तय होते हैं। लेकिन पांच-दस दिन की बात करें तो बड़े खरीदार या विक्रेता उनमें मनचाहा उतार-चढ़ाव ला देते हैं। यह भारत जैसे विकासशील बाज़ार में ही नहीं, अमेरिका जैसे विकसित बाज़ार तक में होता है। इधर एल्गो ट्रेडिंग के बारे में कहा जा रहा है कि उसने भावों का पूरा सिग्नल ही गड़बड़ा दिया है। इन सच्चाइयों के बीच हफ्ते का आगाज़…औरऔर भी

न तो दुनिया और न ही शेयर बाज़ार हमारी सदिच्छा से चलता है। लेकिन हम अपनी इच्छाएं थोपने से बाज नहीं आते। सोच लिया कि फलानां शेयर बढेगा तो दूसरों से इसकी पुष्टि चाहते हैं। वही टेक्निकल इंडीकेटर पकड़ते हैं जो हमारी धारणा को सही ठहराते हों। कोई इंडीकेटर उल्टा संकेत देता है तो हम उसे नज़रअंदाज़ कर देते हैं। ध्यान दें, भाव इंडीकेटर के पीछे नहीं, इंडीकेटर भाव के पीछे चलते हैं। अब वार मंगलवार का…औरऔर भी

गिरता स्टॉक थोड़ा उठ जाए तो क्या! बढ़ता स्टॉक थोड़ा गिर जाए तो क्या!! नियम कहता है कि साल-छह महीने से बढ़ते शेयर को शॉर्ट न करें और साल-छह महीने से गिरते शेयर में लांग पोजिशन न पकड़ें। ऐसा नहीं कि गिरते शेयर थोड़े दिन बढ़ नहीं सकते या बढ़ते शेयर कुछ दिन गिर नहीं सकते। लेकिन अपट्रेंडिंग स्टॉक्स में लांग और डाउनट्रेंडिंग स्टॉक्स में शॉर्ट करना ट्रेडिंग में रिस्क को घटाने की रणनीति है। अब आगे…औरऔर भी

बाज़ार में जब भी संस्थागत निवेशकों या एचएनआई (हाई नेटवर्थ इंडीविजुअल्स) का बड़ा धन लगता है तो शेयर फौरन उछल जाते हैं। वहीं उनके बेचने पर शेयर खटाक से गिर जाते हैं। लेकिन रिटेल निवेशकों की खरीद/बिक्री का खास असर शेयरों पर नहीं पड़ता। जिस तरह हाथी के चलने से मिट्टी रौंदी जाती है, उसी तरह बड़ों की मार में छोटे निवेशक पिसते हैं। इसलिए कमाई बड़ों की राह पकड़ने से होती है। अब आज का बाज़ार…औरऔर भी

शेयर के भाव और खबरों का क्या रिश्ता है, इसे टाटा पावर के उदाहरण से समझा जा सकता है। मंगलवार को स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने इसे डाउनग्रेड कर दिया। कहा कि अगले बारह महीनों में ऋणों की देनदारी के चलते इसका कैश-फ्लो कमज़ोर रहेगा। लेकिन कल, बुधवार को इसका शेयर 4.07% बढ़ गया। सच यह है कि छोटी अवधि में खबरों के आगे-पीछे बहुतेरी शक्तियां काम करती हैं जिन्हें हम देख नहीं पाते। अब हाल बाज़ार का…औरऔर भी

हम जितना देख पाते हैं, उतना मानकर चलते हैं। धरती वही। पहले सपाट मानते थे, अब गोल है। मानने को बदल दें तो देखने का फ्रेम/संदर्भ बदल जाता है, तथ्य बदल जाते हैं। मानिए तो शंकर है, कंकर है अन्यथा। यह आस्था की बात है। लेकिन ट्रेडिंग करते वक्त आस्था नहीं, सत्य की दृष्टि काम आती है। जो अपनी धारणाओं से निकलकर जितना सत्य देख पाता है, उतना कामयाब होता है। धारणाओं से ऊपर उठकर देखें बाज़ार…औरऔर भी