रिजर्व बैंक ने दिसंबर की मौद्रिक नीति समीक्षा में अनुमान लगाया है कि चालू वित्त वर्ष 2020-21 में हमारी अर्थव्यवस्था में 7.5% ही गिरावट आएगी, जबकि उसका पिछला अनुमान 9.5% की गिरावट का था। अगर ऐसा होता है कि इसका श्रेय भारतीय अवाम और उद्योग क्षेत्र को जाएगा, सरकार को नहीं। कारण, अब तक सरकार के सारे घोषित पैकेज ज़मीनी धरातल पर नाकाम और महज दिखावा साबित हुए हैं। जहां सरकार को जीडीपी बढ़ाने के लिए अपनाऔरऔर भी

फिराक़ गोरखपुरी की महशूर लाइनें हैं – अब अक्सर चुप-चुप से रहे है, यूं ही कभू लब खोले है; पहले फिराक़ को देखा होता, अब तो बहुत कम बोले है। भारतीय रिजर्व बैंक से रघुराम राजन के जाने के बाद कुछ ऐसी ही कमी कम से कम कुछ महीनों तक तो सालती ही रहेगी। इसलिए नहीं कि वे बिना लाग-लपेट बेधड़क अपनी बात रख देते थे, बल्कि इसलिए कि आज के नौकरशाही तंत्र में उनकी जैसी बौद्धिकऔरऔर भी

शेयर, कमोडिटी या फॉरेक्स, हर तरह के वित्तीय प्रपत्रों की ट्रेडिंग स्वभाव से ही रिस्की है। बुनियादी नियम यह भी है कि रिस्क और रिटर्न में सीधा रिश्ता है। रिस्क ज्यादा तो रिटर्न ज्यादा और रिस्क कम तो रिटर्न कम। लेकिन इंसान का अंतर्निहित स्वभाव तो रिस्क से बचना है। ऐसे में न्यूनतम रिस्क में अधिकतम रिटर्न ही सबसे तर्कसंगत तरीका हो सकता है। यही हम सीखने और सिखाने में लगे हैं। परखें अब सोमवार का व्योम…औरऔर भी

ज़रा हिसाब लगाकर देखिए। सौदे आपने वही चुने जिनमें रिस्क-रिवॉर्ड अनुपात एक पर तीन या इससे ज्यादा का है। महीने के 20 सौदे में से 12 गलत निकले तो 2% स्टॉप लॉस से कुल घाटा लगा 24% का, जबकि बाकी आठ सही निकले तो 6% की दर से फायदा हुआ 48% का। इस तरह महीने में कुल मिलाकर 24% का फायदा। यही है ट्रेडिंग में मोटामोटा नफा-नुकसान का आकलन व अनुशासन। अब परखते हैं बुधवार की दशा-दिशा…औरऔर भी

सरकार से लेकर कॉरपोरेट जगत के चौतरफा दबाव के बावजूद रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति की पांचवी द्वि-मासिक समीक्षा में ब्याज दरों को जस का तस रहने दिया। नतीजतन, बैंक जिस ब्याज पर रिजर्व बैंक से उधार लेते हैं, वो रेपो दर 8 प्रतिशत और जिस ब्याज पर वे रिजर्व बैंक के पास अपना अतिरिक्त धन रखते हैं, वो रिवर्स रेपो दर 7 प्रतिशत पर जस की तस बनी रही। रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुरान राजन नेऔरऔर भी

खास खबर का दिन। रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति की दो-दो महीने पर होनेवाली पांचवीं समीक्षा पेश करेगा। सरकार व उद्योग जगत से गवर्नर रघुराम राजन पर दवाब है कि ब्याज दर कम से कम 0.25% घटा दें क्योंकि रिटेल मुद्रास्फीति घट चुकी है। अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चा तेल सस्ता होता जा रहा है। अब आर्थिक विकास को बढ़ाने के लिए ब्याज घटाना ज़रूरी है। लेकिन राजन शायद ही ऐसा कुछ करें। ऐसे में क्या हो ट्रेडिंग रणनीति…औरऔर भी

इस महीने छुट्टियां बहुत हैं। कल से लेकर 6 अक्टूबर सोम तक बाज़ार बंद। फिर 23-24 गुरु-शुक्र को लक्ष्मी पूजन व दिवाली बलि प्रतिपदा। याद करें, छह साल पहले 24 अक्टूबर 2008 को पूरे बाज़ार का दीवाला निकल गया था। उस दिन वैश्विक वित्तीय संकट का झटका बड़ी ज़ोर से लगा और निफ्टी 13% टूटा था। क्या वैसा संकट फिर नहीं आ सकता? ऐसे संकट तक में कमाते हैं ऑप्शन ट्रेडर। अब इस सप्ताह का आखिरी ट्रेड…औरऔर भी

धन का पूरा तंत्र है। कम से कम आज की ग्लोबल दुनिया में शेयर बाज़ार को मुद्रा से स्वतंत्र मानना घातक होगा। लेकिन दोनों में सीधा रिश्ता भी नहीं कि डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत तो शेयर बाज़ार बढ़ेगा, नहीं तो घटेगा। कल रुपया डॉलर के मुकाबले लगातार तीसरे दिन कमज़ोर हुआ, जबकि शेयर बाज़ार तीन हफ्ते में सबसे ज्यादा बढ़ गया। तेल आयातकों की डॉलर मांग बढ़ी तो गिरा रुपया। देखते हैं कहां लगी सबकी नज़र…औरऔर भी

सब कुछ नया-नया। वित्त वर्ष 2014-15 का आगाज़। अभी तक रिजर्व बैंक साल के शुरू में सालाना मौद्रिक नीति पेश किया करता था। फिर उसी के फ्रेम में तिमाही और बीच में मौद्रिक नीति की मध्य-तिमाही समीक्षा पेश करता था। लेकिन समय की गति इतनी बढ़ गई कि रिजर्व बैंक अब हर दो महीने पर मौद्रिक नीति लाना शुरू कर रहा है। आज वित्त वर्ष के पहले दो महीनों की नीति आएगी। अब आज का स्वागतम ट्रेड…औरऔर भी

इस समय दुनिया भर में हाई फ्रीक्वेंसी और अल्गोरिदम ट्रेडिंग पर बहस छिड़ी हुई है। इस हफ्ते सोमवार और मंगलवार को हमारी पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी ने भी इस पर दो दिन का अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन किया। इससे एक खास बात यह सामने आई कि सेकंड के हज़ारवें हिस्से में ट्रेड करनेवाले ऐसे महारथी भी पहले छोटे सौदों से बाज़ार का मूड भांपते हैं और पक्का हो जाने पर बड़े सौदे करते हैं। अब वार बुधवार का…औरऔर भी