अपने शेयर बाज़ार में 3 अक्टूबर से 17 नवंबर के दौरान जब विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने शुद्ध रूप से 37,472.82 करोड़ रुपए निकाले, उसी दौरान देशी संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) ने 37,489.85 करोड़ रुपए की शुद्ध खरीद की। एफपीआई से थोड़ी-सी ज्यादा। असल में डीआईआई के भीतर खास भूमिका निभा रहे हैं म्यूचुअल फंड और म्यूचुअल फंडों में नियमित धन का प्रवाह सुनिश्चित कर दिया है आम लोगों द्वारा की जा रही एसआईपी या सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लानऔरऔर भी

शेयर बाज़ार के निवेश में समझदार कौन? विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) या देशी संस्थागत निवेशक (डीआईआई)? इनमें से कौन तय करता है हमारे बाज़ार की दशा-दिशा? आम मान्यता है कि एफपीआई या एफआईआई ही इसे तय करते हैं। लेकिन यह मान्यता अब हकीकत से दूर जाती नज़र आ रही है। पहले विदेशी निवेशकों के बेचने से अपना बाज़ार जितना गिरता था, अब उतना गिर तो नहीं ही रहा, बल्कि बढ़ जा रहा है। मसलन, अगस्त 2011 मेंऔरऔर भी

सरकारी दावों पर यकीन करें तो देश में अब कोई बेहद गरीब नहीं बचा और स्वास्थ्य, शिक्षा व जीवन स्तर जैसे तमाम पहलुओं को मिलाकर देखें तो बहुआयामी गरीब लोगों का आबादी में हिस्सा 2015-18 से 2019-21 के बीच 24.85% से घटकर 14.96% पर आ चुका है। लेकिन देश की लगभग 60% आबादी या 80 करोड़ गरीबों को पांच किलो राशन मुफ्त देने की कोरोनाकाल में साल 2020 में शुरू की गई योजना पांच साल और बढ़ाऔरऔर भी

मोदी सरकार को दो काम बखूबी आते हैं। एक मीडिया व हेडलाइंस को मैनेज करते हुए जमकर हल्ला मचाना और दूसरा टैक्स बढ़ाना। उसने इन दोनों ही कामों को अभीष्टतम स्तर तक पहुंचा दिया है। बहुत सारा अनाप-शनाप सरकारी खर्च उसने जमकर बढ़ा दिया। लेकिन अर्थव्यवस्था के स्वस्थ व संतुलित विकास के लिए निजी निवेश, निजी खपत और निर्यात को भी बढ़ाना पड़ता है। सरकारी खर्च के रूप में अर्थव्यवस्था को बढ़ाने का केवल एक इंजिन चलऔरऔर भी

सत्य के आधार पर ही जीवन-जगत का विकास होता है। सारा विज्ञान सत्य पर ही आधारित है। ज़रा-सी चूक बंटाधार कर देती है। चूक तो अनजाने में होती है। लेकिन झूठ तो जान-बूझकर सच्चाई को छिपाने के लिए बोला जाता है। सच नकारात्मक कभी नहीं, हमेशा सकारात्मक होता है। नए वर्ष व सम्वत 2080 की शुरुआत हमें सत्य के साथ ही करना चाहिए। आखिर हमारी अर्थव्यवस्था के द्रुत विकास का सच क्या है? चालू वित्त वर्ष 2023-24औरऔर भी

दीपावली के साथ इस साल का त्योहारी सीजन अब खत्म हो गया। यह हमारी कंपनियों के लिए घरेलू बाज़ार से कमाई का सबसे अच्छा मौसम होता है। निर्यात से कमाई तो क्रिसमस तक चलती रहती है। लेकिन निर्यात का मोर्चा तो बराबर ठंडा चल रहा है। सितंबर में हमारा निर्यात 2.6% घटा था, जबकि अक्टूबर से दिसंबर तक अनुमान है कि यह 6.3% बढ़ सकता है। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने हिसाब लगाया है कि हमारे कॉरपोरेट क्षेत्रऔरऔर भी

आज के दौर में धनलक्ष्मी सभी को चाहिए क्योंकि हर कोई न हर चीज पैदा कर सकता है, न हर सेवा जुटा सकता है। यहां तक कि तथाकथित संतों और बाबाओं ने भी धन की धुनी रमा रखी है। बाबा रामदेव ने देखते ही देखते 3000 करोड़ की नेटवर्थ बना ली है। लेकिन आबादी के हर तबके के पास लक्ष्मी लाने के अलग-अलग तरीके हैं। हर कोई कुछ न कुछ बनाता और बेचता है। भिखारी तक अपनीऔरऔर भी

हर तरफ उजाला हो। जीवन के हर क्षेत्र में पारदर्शिता हो। मन में भी कोई छल-कपट व अंधेरा न हो। किसी को हर जानकारी हो, यह कतई ज़रूरी नहीं। आज के दौर में तो कोई भी जानकारी कभी भी हासिल की जा सकती है। यह भी ध्यान रहे कि इस दुनिया-जहान में सब कुछ हर पल बदल रहा है तो कोई भी जानकारी या सत्य अंतिम नहीं। सदियों पहले जो धन या लक्ष्मी का स्वरूप था, वहऔरऔर भी

हर तरफ उजाला हो। सार्वजनिक जीवन के सभी क्षेत्रों में पारदर्शिता हो। पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों का आगाज़ हो चुका है। क्या चुनावों के धन में पारदर्शिता है? क्या राजनीति में जवाबदेही है? इन सवालों का शेयर बाज़ार से सीधा तो नहीं, लेकिन घुमा-फिराकर रिश्ता बनता है। राजनीतिक चंदों में जब तक पारदर्शिता नहीं होगी, जब तक वहां कालाधन आता रहेगा, तब तक शेयर बाज़ार में भावों के साथ खेल व धोखा चलता रहेगा और बाज़ारऔरऔर भी

दीपावली पर हम संकल्प लें कि हमें जीवन के हर क्षेत्र में अंधेरे से उजाले की तरफ और अज्ञान से ज्ञान की तरफ जाना है। इसके लिए पारदर्शिता ज़रूरी है। दिन में सूरज का उजाला और रात में स्ट्रीट लाइट नहीं होगी तो रास्ता कैसे दिखेगा! शेयर बाजार में पूरी पारदर्शिता होनी ही चाहिए। कल को एनएसई और बीएसई आंकड़े छिपाने या गलत आंकड़े देने लग जाएं तो भयंकर घोटाला हो जाएगा और लाखों ट्रेडरों का जीवनऔरऔर भी