हम सही सवाल पूछना शुरू कर दें तो समझिए कि सच तक पहुंचने की हमारी आधी यात्रा पूरी हो गई। लेकिन हम तो ‘होता है, चलता है’ की सोच के ऐसे आदी हो गए हैं कि चौंकते ही नहीं, सवाल ही नहीं पूछते।और भीऔर भी