फाइनेंस की दुनिया ज्यादा अस्थिर, ज्यादा रिस्की हो चली है। ग्लोबल हरकतें लोकल खबरें बन गई हैं। नेट व चौबीसों घंटे चलते न्यूज़ चैनलों ने सूचनाओं को सर्वसुलभ करा दिया। पर प्रोफेशनल फंड मैनेजर सूचनाओं के आम होने से पहले ही उनका खास इस्तेमाल कर लेते हैं। खबर हम तक पहुंचे, इससे पहले वे उसका रस निकाल लेते है। लेकिन सारी हरकतें जाती हैं भाव में। इसलिए भाव को पकड़ो, भाव पर खेलो। अब देखें बाज़ार मंगल का…औरऔर भी

पहले दुनिया सिमटी हुई थी। इर्दगिर्द खास कुछ नहीं बदलता था तो लोग सुबह-सुबह नहा-धोकर एकाध घंटे पूजापाठ करते थे। अपने अंदर झांकते थे। अब दुनिया बढ़ते-बढ़ते ग्लोबल हो गई है तो एकाध घंटे अखबारों के जरिए बाहर झांकना जरूरी हो गया है।और भीऔर भी

अपने तक सीमित। खूंटे से बंधी ज़िंदगी। परोक्ष रूप से तंतुओं के तंतु भले ही ग्लोबल हो गए हों, लेकिन प्रत्यक्ष रूप से रिश्ते बहुत सिकुड़ गए हैं। ऐसे में हांकनेवालों की मौज है क्योंकि किसी को सिर उठाकर उनकी तरफ झांकने की फुरसत ही नहीं है।और भीऔर भी

शेयरों के भाव किस हद तक ग्लोबल और किस हद तक लोकल कारकों से प्रभावित होते है, इसका तो ठीकठाक कोई पैमाना नहीं है, लेकिन इतना तय है कि आज के जमाने में कंपनियों के धंधे पर दोनों कारकों का भरपूर असर पड़ता है। इसीलिए शायद अंग्रेजी के इन दोनों शब्दों को मिलाकर नया शब्द ‘ग्लोकल’ चला दिया गया है। ये ग्लोकल असर कैसे कंपनी को कस लेते हैं, इसका एक उदाहरण है भारत की सबसे बड़ीऔरऔर भी