वित्तीय आज़ादी है मैराथन दौड़ जैसी
जानकारी हासिल करना आजकल बड़ा आसान है। गूगल पर सर्च करो और पलक झपकते हज़ारों सूचनाएं हाज़िर। लेकिन मंथन के बाद उन्हें ज्ञान तक पहुंचाने और हुनर बनाने में भरपूर वक्त लगता है। इस दौरान किसी साधना जैसा अनुशासन बरतना होता है। इसी तरह ट्रेडिंग में जब तक अपने माफिक पद्धति पा न ली जाए, तब तक धैर्य अपनाना पड़ता है। लेकिन अक्सर किनारे पर पहुचने से ठीक पहले कश्ती डूब जाती है। असल में जानकारी याऔरऔर भी
ट्रेडिंग के लाभ नहीं, चुनौतियां भी देखें
जब कोई शेयर या कमोडिटी जैसे वित्तीय बाज़ार में ट्रेडिग करने की सोचता है तो उसके मन में हर तरफ से लड्डू ही लड्डू फूटते हैं। कितना मज़ा आएगा! न कोई बॉस, न सुबह-सुबह ऑफिस जाने का झंझट! घर पर बैठकर अपने लैपटॉप से ट्रेडिंग। बचत से ढाई लाख रुपए भी लगाए तो महीने में 10% कमाने पर ही 25,000 आ जाएंगे। बाकी मूलधन सुरक्षित। इससे ज्यादा और क्या चाहिए रिटायरमेंट के बाद। ट्रेडिंग में उतरनेवाला हरऔरऔर भी
रिटेल का धन जाए प्रोफेशनल के पास
कई साल पहले दिल्ली में एक बड़ी ब्रोकरेज फर्म के मुखिया से बात हो रही थी। उनको मैंने बताया कि कैसे वित्तीय संस्थाओं व बैंकों की खरीद-बिक्री को हम भावों के चार्ट पर पकड़ सकते हैं और उसके आधार पर देख सकते हैं कि कहां उसकी खरीद आ सकती है और कहां उनकी बिक्री। संस्थाओं व बड़े निवेशको की डिमांड-सप्लाई का नियम मैंने हाल-हाल में सीखा था और उसको लेकर मैं काफी उत्साहित था। लेकिन मेरे सारेऔरऔर भी
सब मिला भाव में तो खेलो भाव पर
फाइनेंस की दुनिया ज्यादा अस्थिर, ज्यादा रिस्की हो चली है। ग्लोबल हरकतें लोकल खबरें बन गई हैं। नेट व चौबीसों घंटे चलते न्यूज़ चैनलों ने सूचनाओं को सर्वसुलभ करा दिया। पर प्रोफेशनल फंड मैनेजर सूचनाओं के आम होने से पहले ही उनका खास इस्तेमाल कर लेते हैं। खबर हम तक पहुंचे, इससे पहले वे उसका रस निकाल लेते है। लेकिन सारी हरकतें जाती हैं भाव में। इसलिए भाव को पकड़ो, भाव पर खेलो। अब देखें बाज़ार मंगल का…औरऔर भी
स्वाभाविक है
पहले दुनिया सिमटी हुई थी। इर्दगिर्द खास कुछ नहीं बदलता था तो लोग सुबह-सुबह नहा-धोकर एकाध घंटे पूजापाठ करते थे। अपने अंदर झांकते थे। अब दुनिया बढ़ते-बढ़ते ग्लोबल हो गई है तो एकाध घंटे अखबारों के जरिए बाहर झांकना जरूरी हो गया है।और भीऔर भी
झांकने की फुरसत
अपने तक सीमित। खूंटे से बंधी ज़िंदगी। परोक्ष रूप से तंतुओं के तंतु भले ही ग्लोबल हो गए हों, लेकिन प्रत्यक्ष रूप से रिश्ते बहुत सिकुड़ गए हैं। ऐसे में हांकनेवालों की मौज है क्योंकि किसी को सिर उठाकर उनकी तरफ झांकने की फुरसत ही नहीं है।और भीऔर भी